बागेश्वर में नेटवर्क के इंतजार में बैठे रहते हैं लोग.
बागेश्वर. मोबाइल आजकल जरुरत का एक अहम हिस्सा है. मोबाइल पर हर कोई आश्रित है क्योंकि इसके जरिए बहुत से काम आसानी से हो जाते हैं. यही कारण है कि आजकल हर मोबाइल कम्पनी अपने नेटवर्क को लेकर प्रचार प्रसार करती रहती है लेकिन बागेश्वर गांव में यह सब बेमानी सा है. दरअसल यहां लोगों के हाथ में मोबाइल तो है लेकिन नेटवर्क ना होने के कारण यह मोबाइल उनके लिए सिर्फ एक डिब्बा हैं. यहां सरकार का डिजिटल इंडिया का सपना अधूरा है. यही कारण है कि यहां मोबाइल शोपीस बनकर रह गए हैं.
80 से अधिक गांवों में नहीं नेटवर्क
मोबाइल का इस्तेमाल करने के लिए ग्रामीणों को विशेष जगह का चयन करना पड़ता है. आपातकालीन स्थिति में समस्या दोगुनी हो जाती है. देश 5g की तैयारी कर रहा है वहीं जिले के कई गांव संचार सुविधा से वंचित हैं. गरुड़, कपकोट, कांडा तहसील के 80 से अधिक गांवों में मोबाइल नेटवर्क नहीं है. साथ ही दो दर्जन से अधिक गांवों में 3जी और 4जी की सुविधा न होने से लोग इंटरनेट सुविधा से महरुम हैं.
गौरतलब है कि पहाड़ी इलाकों में मोबाइल नेटवर्क की खस्ताहाली से संबंधित सवाल राज्यसभा सांसद अनिल बलूनी 2019 में संसद में उठा चुके हैं. लेकिन दो साल बाद भी कपकोट के दूरस्थ क्षेत्र के ग्रामीण संचार सुविधा के लिए नंगे पैर पद यात्रा निकालने को मजबूर हैं. जिले की जटिल भगौलिक स्थिति है.
नेटवर्क ना होने से कितनी समस्या होता इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि हाल में सुंदरडूंगा ट्रैक पर 5 ट्रेकर्स बर्फ में फंस गए और उनकी जान चली गई. संचार सेवा ना होने के कारण घटना की जानकारी जिला मुख्यालय तीन दिन बीतने के बाद पहुंची. अगर समय रहते जानकारी मिलती तो शायद ट्रेकर्स की जान बच सकती थी. लिहाजा ऐसे में दूरसंचार सेवाओं को दुरुस्त रहना जरूरी है क्योंकि सूचनाओं का आदान-प्रदान समय पर होता रहे.
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