अब नर करेंगे भगवान बदरी विशाल की पूजा, छह महीने बाद आएगा देवताओं का नंबर

आज सुबह ब्रह्म मुहूर्त मेष लग्न में ठीक चार बजकर पंद्रह मिनट पर आम श्रद्धालुओं के लिए खोल दिए गए.
कपाट खुलने के पहले दिन जहां श्रद्धालुओं को अखंड ज्योति संग भगवान बदरीश के निर्वाण दर्शन होते हैं और घृतकम्बल का प्रसाद मिलता है.
- News18 Uttarakhand
- Last Updated: May 10, 2019, 1:09 PM IST
भू-वैकुंठ धाम स्थित भगवान बदरी विशाल जी के कपाट श्रद्धालुओं के दर्शनार्थ खुल चुके हैं. आज सुबह ब्रह्म मुहूर्त मेष लग्न में ठीक चार बजकर पंद्रह मिनट पर आम श्रद्धालुओं के लिए खोल दिए गए. कपाट खुलने के पहले दिन जहां श्रद्धालुओं को अखंड ज्योति संग भगवान बदरीश के निर्वाण दर्शन होते हैं और घृतकम्बल का प्रसाद मिलता है जो कि माणा गांव की कुंवारी कन्याओं द्वारा बनाया जाता है. शीतकाल में जब भगवान श्री हरि के कपाट आम श्रद्धालुओं के लिए बंद होते हैं उससे पहले इस ऊनी कम्बल के साथ घी का लेप कर भगवान श्री नारायण के विग्रह पर ओढ़ाया जाता है. यही प्रसाद स्वरूप आज श्रद्धालुओं को मिलता है.
षटमासे पूज्यते देवः षटमासे मनवास्थिताः इस धाम में श्री नारायण विष्णु भगवान की पूजा परम्परा का इसी तरह चक्र है. माना जाता है कि शीतकाल में छह महीने श्री हरि की पूजा देवताओं की और से देवर्षि नारद करते हैं और माता लक्ष्मी उनको भोग लगाती हैं. ग्रीष्मकाल में जब पूजा ‘नर हस्ते’ यानि मनुष्यों के हाथ आती है. तब यहां नंबूदरी ब्राह्मण यानि रावल जी द्वारा की जाती है और भोग डिमरी ब्राह्मण द्वारा पकाया जाता है.
सतयुगे मुक्तिप्रदाप्रसिद्धि त्रेतायांयोगसिद्धिदा, द्वापरे विशाला च कलियुगेस्चबद्रिकाश्रमा: सनातन धर्म में अन्य तीर्थो का वर्णन एक युग में मिलता है लेकिन बदरीनाथ धाम अकेला ऐसा है जिसकी महत्ता चारों युगों में विद्यमान रही है. सतयुग में इसे मुक्तिप्रदा धाम कहा गया है, त्रेता में योगसिद्धि के नाम से जाना गया, द्वापर में विशाला नाम से प्रसिद्ध हुआ है और कलियुग में बद्रिकाश्रम यानि बदरीधाम के नाम से प्रसिद्ध है.
बहूनिसन्ति तीर्थानि दिविभूमौ च रसातल, बदरी सदृशंतीर्थो न भूतो न भविष्यतिः श्री बदरीधाम के बारे में मान्यता है कि सम्पूर्ण जगत जिस तरह से बदरीधाम की अलौकिक महत्ता है उस तरह की महत्ता विश्व में किसी अन्य धाम की न तो भूतकाल में थी और न वर्तमान में है और न भविष्य में कभी होगी.Facebook पर उत्तराखंड के अपडेट पाने के लिए कृपया हमारा पेज Uttarakhand लाइक करें.
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षटमासे पूज्यते देवः षटमासे मनवास्थिताः इस धाम में श्री नारायण विष्णु भगवान की पूजा परम्परा का इसी तरह चक्र है. माना जाता है कि शीतकाल में छह महीने श्री हरि की पूजा देवताओं की और से देवर्षि नारद करते हैं और माता लक्ष्मी उनको भोग लगाती हैं. ग्रीष्मकाल में जब पूजा ‘नर हस्ते’ यानि मनुष्यों के हाथ आती है. तब यहां नंबूदरी ब्राह्मण यानि रावल जी द्वारा की जाती है और भोग डिमरी ब्राह्मण द्वारा पकाया जाता है.
सतयुगे मुक्तिप्रदाप्रसिद्धि त्रेतायांयोगसिद्धिदा, द्वापरे विशाला च कलियुगेस्चबद्रिकाश्रमा: सनातन धर्म में अन्य तीर्थो का वर्णन एक युग में मिलता है लेकिन बदरीनाथ धाम अकेला ऐसा है जिसकी महत्ता चारों युगों में विद्यमान रही है. सतयुग में इसे मुक्तिप्रदा धाम कहा गया है, त्रेता में योगसिद्धि के नाम से जाना गया, द्वापर में विशाला नाम से प्रसिद्ध हुआ है और कलियुग में बद्रिकाश्रम यानि बदरीधाम के नाम से प्रसिद्ध है.
बहूनिसन्ति तीर्थानि दिविभूमौ च रसातल, बदरी सदृशंतीर्थो न भूतो न भविष्यतिः श्री बदरीधाम के बारे में मान्यता है कि सम्पूर्ण जगत जिस तरह से बदरीधाम की अलौकिक महत्ता है उस तरह की महत्ता विश्व में किसी अन्य धाम की न तो भूतकाल में थी और न वर्तमान में है और न भविष्य में कभी होगी.Facebook पर उत्तराखंड के अपडेट पाने के लिए कृपया हमारा पेज Uttarakhand लाइक करें.
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