(रिपोर्ट – नितिन सेमवाल)
जोशीमठ. उत्तराखंड में एक मांसाहारी पौधे की खोज हुई है, जिसे राज्य की जैवविविधता के लिहाज़ से काफी अच्छा समाचार माना जा रहा है. जानकार बता रहे हैं कि हिमालय की पश्चिम रेंज में पहली बार यह दुर्लभ पौधा पाया गया है. अपनी जैव विविधता के लिए प्रसिद्ध उत्तराखंड राज्य के चमोली की मंडल घाटी में 2000 फीट पर पाए गए इस पौधे को देश में 36 साल बाद ऐसी खोज बताया जा रहा है. कीट-पतंगे खाने वाले पौधे की दुर्लभ प्रजाति यूट्रीकुलेरिया फर्सिलेटा का यह पौधा आखिरी बार 1986 में सिक्किम व दार्जिलिंग देखा गया था.
यह कीटभक्षी पौधा मांसाहारी पौधों के उस समूह में है, जिसे ब्लैडरवर्ट के नाम से भी जाना जाता है. इनके अंदर एक अद्भुत संरचना होती है, जिसके द्वारा यह अपने शिकार को पकड़ते हैं और उसका शिकार करते हैं. यह मांसाहारी पौधा पानी में पाया जाता है. पानी में मेंढक के टैडपोल, मच्छरों के लार्वा, विभिन्न प्रकार की क्रीमी जैसे ही इस पौधे की संरचना के बाहरी हिस्से को छूते हैं, इस मांसाहारी पौधे का मुंह खुल जाता है और इन्हें शिकार बना लेता है.
आखिर क्यों बहुत खास है यह खोज?
उत्तराखंड तथा पश्चिमी हिमालय क्षेत्र के साथ-साथ जैव विविधता में रुचि रखने वाले लोगों के लिए यह मांसाहारी पौधा अच्छा समाचार लेकर भी आया है. आईएफएस संजीव चतुर्वेदी ने जानकारियां देते हुए बताया कि इस पौधे की खोज इन मायनों में महत्वपूर्ण है कि फसलों को कीट पतंगों से किस तरह बचाया जा सकता है. साथ ही उन्होंने पुष्टि करते हुए कहा, यह पौधा उत्तराखंड ही नहीं पश्चिमी हिमालयी रेंज में पहली बार देखा गया है.
उत्तराखंड वन अनुसंधान विभाग इस खोज से काफी उत्साहित इसलिए भी है क्योंकि उसकी इस मेहनत को 106 साल पुरानी जापानी शोध पत्रिका ‘जर्नल ऑफ जापानी बॉटनी’ में बतौर शोध जगह मिली है. मुख्य वन संरक्षक के पद पर कार्यरत चतुर्वेदी के मुताबिक यह खोज उस वैज्ञानिक प्रोजेक्ट के तहत हुई, जिसमें उत्तराखंड में पाए जाने वाले कीटभक्षी पौधों को लेकर स्टडी की जा रही थी.
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