12 से 14 हजार फुट की ऊंचाई पर यह क्षेत्र गढ़वाल की बहुत खास जगहों में से एक है
रिपोर्ट- सोनिया मिश्रा
रुद्रप्रयाग. उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में एक ऐसा शिव मंदिर है, जो अपनी ट्रेकिंग, सुन्दरता के साथ-साथ ऊंचाई के लिए भी जाना जाता है. जहां हर मौसम में श्रद्धालुओं की तांता लगा रहता है. तुंगनाथ पर्वत पर स्थित तुंगनाथ मंदिर 3640 मीटर की ऊंचाई पर बना शिव मंदिर है. यह मंदिर पंच केदार (तुंगनाथ, केदारनाथ, मध्य महेश्वर, रुद्रनाथ और कल्पेश्वर) में सबसे ऊंचाई पर स्थित है. माना जाता है कि यह मंदिर प्राचीन काल का है. यहां भगवान भोलेनाथ की भुजाओं की विशेष पूजा की जाती है क्योंकि इस स्थान पर भगवान शंकर भुजा के रूप में विद्यमान हैं.
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, तुंगनाथ मंदिर का निर्माण पांडवों ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए किया था क्योंकि शिव महाभारत के युद्ध में नरसंहार के कारण पांडवों से रुष्ट हो गए थे.यह भी माना जाता है कि माता पार्वती ने भोलेनाथ से विवाह से पहले उन्हें खुश करने के लिए तुंगनाथ की धरती पर ही तपस्या की थी.
तुंगनाथ मंदिर की विशेषता
प्राचीन मंदिर के अलावा अपनी सुन्दरता के लिए भी तुंगनाथ का रास्ता मशहूर है. 12 से 14 हजार फुट की ऊंचाई पर यह क्षेत्र गढ़वाल की बहुत खास जगहों में से एक है. वैसे तो जनवरी-फरवरी में यह पूरा क्षेत्र बर्फ की चादर से ढका होता है और चांदी सी चमक बिखेरते रहता है लेकिन इस साल अभी तक बर्फ की कमी देखने को मिली है. बर्फ, मखमली घास, सुंदर खिले फूल और साथ में चंद्रशिला की तरफ बादलों की धुंध से घिरा क्षेत्र मन को मंत्रमुग्ध कर देता है. और इसी के चलते इस जगह को मिनी स्विट्जरलैंड कहने से भी पर्यटक नहीं चूकते हैं.
चंद्रशिला के दर्शन से पूरी होती है यात्रा
समुद्र तल से 12000 फीट की ऊंचाई पर रावण शिला मौजूद है और यह तुंगनाथ मंदिर से डेढ़ किलोमीटर की ऊंचाई पर कर आपको दिख जाएगी. साथ ही कहा जाता है कि तुंगनाथ की यात्रा तभी पूरी मानी जाती है जब चंद्रशिला के दर्शन पूरे होते हैं. चंद्रशिला में गंगा मंदिर स्थित है.
कैसे पहुंचे तुंगनाथ की वादियों में?
चोपता पहुंचने के लिए दो रास्ते से होकर तुंगनाथ तक पहुंचा जा सकता है. पहला ऋषिकेश से गोपेश्वर (चमोली) होकर और दूसरा ऋषिकेश से ऊखीमठ (रुद्रप्रयाग) तुंगनाथ मंदिर पहुंचने के लिए चोपता से तीन किलोमीटर की चढ़ाई पर पैदल चलकर पहुंचा जा सकता है. यहां मई से नवंबर तक मंदिर के कपाट खुले रहते हैं और सर्दियों में मंदिर के कपाट बंद कर दिए जाते हैं.
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