रिपोर्ट: सोनिया मिश्रा
चमोली: उत्तराखंड में पांच प्रयाग हैं, जिसमें से विष्णुप्रयाग, नंदप्रयाग और कर्णप्रयाग ये तीनों चमोली जिले में स्थित हैं. एक प्रयाग रुद्रप्रयाग जिले में है और देवप्रयाग टिहरी गढ़वाल जिले में स्थित है. विष्णुप्रयाग में अलकनंदा और धौलीगंगा का संगम होता है और आगे चलकर यह नदी अलकनंदा के नाम से जानी जाती है. इसी संगम के नजदीक एक ऐसा मंदिर है, जहां भगवान विष्णु विराजमान हैं.
विष्णुप्रयाग बद्रीनाथ धाम से 35 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है, जिसकी समुद्र तल से ऊंचाई 1372 मीटर है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, नारद ऋषि के ध्यान और तपस्या के उपरांत भगवान विष्णु ने प्रसन्न होकर इस स्थान पर उनको दर्शन दिए थे और तभी से इस जगह का नाम विष्णुप्रयाग पड़ा. एक मान्यता यह भी है कि इस मंदिर से एक रास्ता विष्णु कुंड की ओर जाता है. इस कुंड का पवित्र जल अलकनंदा और धौलीगंगा नदी के संगम पर गिरता है. इसी मंदिर के नाम पर इस संगम का नाम विष्णुप्रयाग रखा गया है.
अहिल्याबाई ने की थी विष्णु मंदिर की स्थापना
विष्णु मंदिर की स्थापना 1889 ई. में इंदौर की महारानी अहिल्याबाई ने की थी. इसका आकार अष्टकोणीय है. विष्णुप्रयाग में चार धाम के तीर्थयात्री बद्रीनाथ मंदिर जाने से पहले यहां संगम पर जरूर आते हैं.
तब यात्रा और भी फलदायी हो जाती है
भगवान बद्री विशाल की यात्रा से पूर्व श्रद्धालु विष्णुप्रयाग में स्नान कर इस स्थान पर विष्णु भगवान के मंदिर में पूजा करते हैं, तब बद्रीनाथ को जाते हैं. मान्यता है कि इसके बाद उनकी यात्रा और भी फलदायी हो जाती है.
उपेक्षा का शिकार विष्णुप्रयाग
विष्णुप्रयाग का जितना अधिक पौराणिक महत्व है, उतना ही सरकारी उपेक्षा के चलते इसकी अब अनदेखी भी हो रही है. स्थानीय लोगों को कहना है कि यदि तीर्थ और पर्यटन विभाग विष्णुप्रयाग के सौंदर्यीकरण के साथ ही स्नान घाट और यात्रियों की सुरक्षा के बेहतर इंतजाम करे तो इस स्थान की महत्वता का और भी अधिक प्रचार-प्रसार होगा. इससे यहां व्यापार और आजीविका के भी अवसर स्थानीय लोगों को मिलेंगे, जिससे उनकी आमदनी बढ़ेगी.
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