ज़हरीली कच्ची शराब पीकर मरने वालों का आंकड़ा सैकड़ों की संख्या को पार करने के बाद ज़िम्मेदार अधिकारी नींद से जागे हैं और अब कार्रवाई करने के दावे कर रहे हैं. लेकिन आंकड़े बता रहे हैं किअगर यही कार्रवाई अगर समय रहते की गई होती तो शायद उत्तराखंड और यूपी में इतनी बड़ी संख्या में लोगों की जानें नहीं जातीं. आंकड़े बता रहे हैं कि लगातार अवैध ढंग से कच्ची शराब बनाने वालों को पकड़ा जाता रहा लेकिन कोई प्रभावशाली कार्रवाई नहीं की गई.
ये आंकड़े आबकारी विभाग की तरफ से बीते चार साल और इस सवा महीने में की गई कार्रवाई के हैं. इनसे पता चलता है कि राज्य में लगातार बड़े पैमाने पर कच्ची शराब का कारोबार चलता रहा है. छुटपुट कार्रवाई भी की जाती रही लेकिन ऑर्गेनाइज़इड अभियान कभी नहीं चलाया गया.
कच्ची शराब की सबसे ज़्यादा मांग ग्रामीण और देहात के क्षेत्रों में है. इसके अलावा शहरी इलाकों में भी इसका काफी चलन है. राजधानी देहरादून में ही कई इलाक़ों में धड़ल्ले से कच्ची शराब बनाई जाती है. पुलिस और आबकारी विभाग के द्वारा की गई कार्रवाई इसकी पुष्टि कर रही है.
दरअसल देहरादून दो राज्यों की सीमाओं से जुड़ा है. पहला यूपी और दूसरा हिमाचल, इसलिए बॉर्डर इलाकों पर भी अवैध कच्ची शराब की तस्करी बड़े पैमाने पर होती है. जानकार मानते हैं कि कच्ची शराब की आपूर्ति पर रोक न लग पाने के पीछे बड़ी वजह कड़े कानून के तहत कार्रवाई न होना है.
पुलिस अधिकारी भी मान रहे हैं कि शराब तस्करों के खिलाफ कड़े कानून न होना भी एक बड़ी वजह है जिसका फायदा शराब तस्कर उठाते हैं और थाने, न्यायालय में मामूली जुर्माना देकर आसानी से छूट जाते हैं. हालांकि डीजी (कानून-व्यवस्था) अशोक कुमार कहते हैं कि आरोपियों के खिलाफ अब गुंडा एक्ट और गैंगस्टर की धाराओं में भी कार्रवाई की जाएगी. इसके साथ ही सभी बॉर्डर पर सुरक्षा बढ़ाकर चेकिंग अभियान चलाने के निर्देश भी दिए गए हैं.
राज्य गठन के 18 सालों में पुलिस और आबकारी विभाग ने कागजों का पेट तो पूरा भर दिया लेकिन अवैध शराब का कारोबार करने वालों पर इसका कोई असर नहीं पड़ा और नतीजा है ज़हरीली शराब से हुई ये मौतें. अब उम्मीद ही की जा सकती है कि कम से कम इस बार कोई माकूल सबक लिया जाएगा.
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FIRST PUBLISHED : February 11, 2019, 19:41 IST