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सीएजी की रिपोर्ट हमेशा से ही राजनीतिक गलियारों में हलचल पैदा करने वाली होती है लेकिन उत्तराखण्ड में इस बार सीएजी की रिपोर्ट पर कोई हो-हल्ला नहीं हो रहा है. न तो सत्ता पक्ष की ओर से और न ही विपक्ष की ओर से. ऐसा इसलिए क्योंकि सीएजी की रिपोर्ट ने सत्तापक्ष और विपक्ष दोनों की ही सरकारों को आईना दिखाया है. लिहाजा दोनों पक्षों ने यही उचित समझा कि एक दूसरे पर तलवार तानने से बेहतर है कि उन्हें म्यान में ही रहने दिया जाए.
सीएजी रिपोर्ट में 2017 से पहले की कांग्रेसी सरकार पर जहां भारी वित्तीय गड़बड़ियों का आरोप लगाया गया वहीं मौजूदा भाजपा सरकार पर झूठ बोलने का आरोप मढ़ा गया है. अब क्योंकि जिनके घर शीशे के होते हैं वे दूसरों पर पत्थर नहीं फेका करते... इसीलिए दोनों चुप हैं. बात करते हैं 2017 से पहले रही कांग्रेसी सरकार की. सीएजी ने 2012 से लेकर 2017 तक की कांग्रेसी सरकार पर 877 करोड़ रुपये के गड़बड़झाले का आरोप जड़ा है. ये गड़बड़ियां ऊर्जा, पीडब्ल्यूडी, आबकारी और वन विभाग में पकड़ी गई हैं.
लेकिन कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह को इसमें कोई समस्या नज़र नहीं आती. वह राज्य सरकार को सीएजी रिपोर्ट पर कार्रवाई करने की चुनौती देते हैं.
लेकिन कांग्रेसी सरकार के दौरान की गई इतनी बड़ी वित्तीय गड़बड़ी पर भी भाजपा चुप है. इसका कारण बड़ा है क्योंकि सीएजी ने कुछ महीने की भाजपा सरकार की नीयत पर ही सवाल खड़े किये हैं. रिपोर्ट में त्रिवेन्द्र सरकार पर झूठ बोलने का आरोप लगाया गया है. सबसे बड़ा आरोप तो स्वच्छ भारत मिशन को पलीता लगाने से जुड़ा हुआ है.
सीएजी रिपोर्ट के अनुसारः
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