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जनता को चुकानी पड़ती है बिजली विभाग के अधिकारियों की लापरवाही की कीमत

उत्तराखंड में बिजली परियोजनाओं में देरी की वजह से बढ़ने वाली लागत भी उपभोक्ताओं से ही वसूली जाती है.

उत्तराखंड में बिजली परियोजनाओं में देरी की वजह से बढ़ने वाली लागत भी उपभोक्ताओं से ही वसूली जाती है.

विद्युत नियामक आयोग कई मामलों में परियोजनाओं की बड़ी दरों का भुगतान रोक देता है लेकिन कई बार इसे टैरिफ में जोड़ भी दिया ज ...अधिक पढ़ें

    ऊर्जा प्रदेश में बिजली अधिकरियों की लापरवाही की कीमत राज्य के बिजली उपभोक्ताओं को चुकानी पड़ रही है. आलम यह है की लेटलतीफी के कारण परियोजनाओं की लागत बढ़ने का दंड भी उपभोक्ताओं को ही चुकाना पड़ रहा है.

    ऊर्जा विभाग के तीनों निगम हर साल दिसंबर में उत्तराखंड विद्युत नियामक आयोग में टैरिफ़ बढ़ाने की याचिका दाखिल करते हैं. इसमें निगम अपने सभी खर्चों सहित साल भर में किए गए कार्यों में हुए भुगतान के खर्च को भी दिखाते हैं. राज्य में चल रही बिजली परियोजनाओं पर हुए खर्चे भी इस याचिका में दर्शाए जाते हैं. ऐसी बहुत सी परियोजनाएं हैं जो समय पर पूरी नहीं हो पातीं और उनकी लागत बढ़ जाती है. यह बढ़ी हुई लागत भी टैरिफ़ बढ़ाने का आधार बनती है और उपभोक्ताओं पर भार डालती है.

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    एक नज़र ऐसी परियोजनाओं पर जो समय पर पूरी नहीं हुईं और उनकी लागत बढ़ गई....


    • श्रीनगर-काशीपुर हाईटेंशन लाइन बिछान की लागत शुरु में 700 करोड़ थी समय पर कार्य न होने से अब यह 1700 करोड़ हो गई है.

    • कर्णप्रयाग के शिमली में ऋषिकेश लाइन पर 20 करोड़ थी समय पर कार्य न होने से लाइन 120 करोड़ रूपये में बन पाई.

    • लखवाड़ जलविद्युत परियोजना 140 करोड़ की लागत से बननी थी जिसकी लागत चार हजार करोड़ पहुंच गई हैं.


    विद्युत नियामक आयोग के अध्यक्ष सुभाष कुमार भी मानते हैं कि विभागीय लापरवाही से परियोजनाओं की लागत बढ़ जाती है. आयोग कई मामलों में परियोजनाओं की बड़ी दरों का भुगतान रोक देता है लेकिन कई बार इसे टैरिफ में जोड़ भी दिया जाता है.

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    विभागीय अधिकारी भी यह मानते हैं कि कई बार लापरवाही से परियोजनाओं की लागत बढ़ जाती है लेकिन जनता से वसूला जा रहा बढ़ी दरों का भुगतान कैसे रुकेगा इसका जवाब किसी के पास नहीं है.

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    Tags: Cost of electricity, Dehradun news, Uttarakhand news

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