देहरादून. प्रमुख राजनीतिक पार्टियों ने उम्मीदवार चुनने में पहला फॉर्मूला तो ‘जिताऊ’ कैंडिडेट का अपनाया, भले ही उसके लिए ‘नैतिकता’ को ताक पर रखना पड़ा हो. उत्तराखंड चुनाव के लिए एक और फॉर्मूले के तौर पर पार्टियों ने ‘परिवारवाद’ को ही तरजीह दी. हालांकि बीजेपी अक्सर इस आधार पर राजनीति के लिए कांग्रेस को कोसती रही है, लेकिन इस चुनाव के लिए दोनों ही पार्टियों ने इस आधार पर टिकट जारी करने में दिलचस्पी दिखाई. यह मुद्दा दिलचस्प इसलिए हो गया क्योंकि एक या दो विधानसभाओं नहीं बल्कि देवभूमि की एक दर्जन से ज़्यादा सीटों पर यह फॉर्मूला कारगर दिखाई दिया.
कहीं किसी नेता के बेटे को टिकट मिला, तो किसी की बेटी को भी, किसी सीट पर किसी नेता की बहू उम्मीदवार बनाई गई, तो किसी पर किसी की पत्नी. उत्तराखंड में 14 फरवरी को 70 सीटों के लिए मतदान होना है और उससे पहले सभी पार्टियों के उम्मीदवारों का ऐलान हो चुका है क्योंकि शुक्रवार को नामांकन भरने की प्रक्रिया भी संपन्न हो चुकी. 31 जनवरी को नामांकन वापस लेने की अंतिम तिथि है, इसके बाद तस्वीर एकदम साफ हो जाएगी. पीटीआई की एक रिपोर्ट के मुताबिक इस बीच 20% से प्रत्याशी ऐसे हैं, जो जनता के बीच अपने पिता, ससुर, भाई या पति की छवि के नाम पर वोट मांगने जा रहे हैं.
परिवारवाद और भाजपा के टिकट
भाजपा ने देहरादून कैंट से 8 बार विधायक रहे दिग्गज हरबंस कपूर की पत्नी सविता कपूर को टिकट दिया. इसी तरह भाजपा ने पूर्व मुख्यमंत्री बीसी खंडूरी की बेटी ऋतु को भी इस बार सीट बदलकर कोटद्वार से चुनाव मैदान में उतारा. यही नहीं, पूर्व सीएम वियज बहुगुणा के बेटे सौरभ को सितारगंज से बीजेपी ने टिकट दिया. भाजपा ने और किन किन राजनीतिक परिवारों के सदस्यों को टिकट दिए, देखिए.
1. खानपुर सीट से विधायक कुंवर प्रणव सिंह चैंपियन की पत्नी कुंवरानी देवयानी.
2. काशीपुर सीट से विधायक हरभजन सिंह चीमा के बेटे त्रिलोक सिंह.
3. पिथौरागढ़ से स्व. प्रकाश पंत की पत्नी चंद्रा पंत.
4. सुरेंद्र सिंह जीना के भाई महेश जीना को सल्ट से.
5. लैंसडौन सीट पर दिलीप सिंह रावत को टिकट, जो भरत सिंह यादव के बेटे हैं.
परिवारवाद और कांग्रेस के टिकट
कांग्रेस ने दिग्गज नेता इंदिरा हृदयेश के निधन के बाद उनके बेटे सुमित को हल्द्वानी से उम्मीदवार बनाया है. वहीं, पार्टी ने पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत को लालकुआं से उम्मीदवार बनाने के साथ ही उनकी बेटी अनुपमा रावत को हरिद्वार ग्रामीण से टिकट दिया, जहां से हरीश रावत पिछला चुनाव हारे थे. साथ ही, कांग्रेस ने पार्टी में वापसी करने वाले यशपाल आर्य और उनके बेटे संजीव आर्य को भी टिकट दिया. इस लिस्ट में भी नाम और हैं.
1. हरक सिंह रावत की बहू अनुकृति गुसाईं को कांग्रेस ने लैंसडौन से उम्मीदवार बनाया. पीटीआई की रिपोर्ट की मानें तो हरक सिंह अपनी ‘दबंग’ छवि से यह सीट भाजपा से छीन सकते हैं.
2. पूर्व मंत्री सुरेंद्र राकेश की पत्नी ममता राकेश को भगवानपुर सीट से दूसरी बार टिकट.
3. पूर्व सांसद केसी सिंह बाबा के बेटे नरेंद्र सिंह को काशीपुर से टिकट.
वंशवाद पर बंटी हुई है भाजपा की सोच?
चार चुनाव जीतने वाले भाजपा के त्रिलोक सिंह चीमा का कहना है कि पिता की विरासत बच्चे संभालते ही हैं. ‘जब समाज के अन्य क्षेत्रों में ऐसा होता है, तो राजनीति में क्यों नहीं? क्या एक राजनीतिक का बेटा होना गुनाह है?’ लेकिन देहरादून कैंट से सविता कपूर के टिकट पर विरोध करने वाले भाजपा नेता विनय गोयल का कहना है कि पार्टी को कार्यकर्ता के किए गए काम के आधार पर ही देना चाहिए, पारिवारिक पृष्ठभूमि पर नहीं.
कांग्रेस में फॉर्मूले सबके लिए एक-से नहीं?
हरीश रावत का कहना है कि अनुपमा को टिकट इसलिए मिला क्योंकि वह विधानसभा क्षेत्र में 20 सालों से कांग्रेस कार्यकर्ता के रूप में काम कर रही हैं. वहीं, पार्टी ने इस चुनाव के लिए ‘एक परिवार एक टिकट’ फॉर्मूले को लेकर काफी बातचीत भी की और कहा जाता है कि हरक सिंह रावत को टिकट इसलिए नहीं दिया गया क्योंकि उनकी बहू को दिया. लेकिन एक परिवार से एक टिकट का फॉर्मूला हरीश रावत और यशपाल आर्य के मामले में लागू नहीं हुआ.
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