जानिए किन दिग्गजों के लिए जीने मरने से कम नहीं 2019 लोकसभा चुनाव
जानिए किन दिग्गजों के लिए जीने मरने से कम नहीं 2019 लोकसभा चुनाव
लोकसभा चुनाव 2019- कांग्रेस और भाजपा में बंटी प्रदेश की राजनीति के दस बड़े नेताओं की किस्मत इवीएम में बंद हो जाएगी.
उत्तराखंड की सभी पांच सीटों पर गुरुवार को वोटिंग हो जाएगी. दो पार्टियों कांग्रेस और भाजपा में बंटी प्रदेश की राजनीति के दस बड़े नेताओं की किस्मत इवीएम में बंद हो जाएगी.
उत्तराखंड की सभी पांच सीटों पर गुरुवार को वोटिंग हो जाएगी. दो पार्टियों कांग्रेस और भाजपा में बंटी प्रदेश की राजनीति के दस बड़े नेताओं की किस्मत इवीएम में बंद हो जाएगी. वैसे तो लोकसभा का चुनाव लड़ रहे चेहरों में चाहे वो भाजपा का हो या कांग्रेस का, एक भी चेहरा ऐसा नहीं है जो प्रदेश की राजनीति में नया हो. बावजूद इसके कुछ नेताओं के लिए ये चुनाव जीने मरने से कम नहीं है. चुनाव के नतीजों से उनकी आगे की राजनीति की दिशा तय होगी.
हरीश रावत नैनीताल-ऊधमसिंह नगर से कांग्रेस कैंडिडेट- चुनाव में सबसे बड़ी साख हरीश रावत की लगी है.
* रावत न सिर्फ सीएम रहे बल्कि कुमाऊं में उनकी साख भी मजबूत मानी जाती है. हरीश रावत अल्मोड़ा से तीन बार सांसद रहे हैं.
* हरीश रावत सभी उम्मीदवारों में सबसे सीनियर और उम्रदराज हैं. उनका सीधा मुकाबला एक नए कैंडिडेट भाजपा के अजय भट्ट से होगा. अजय भट्ट पहली बार लोकसभा का चुनाव लड़ रहे हैं.
* अगर हरीश रावत चुनाव हार गए तो उन्हें आगे मौका मिलना मुश्किल होगा. उम्र बढ़ने के साथ-साथ पार्टी के अंदर भी उनके खिलाफ आवाज उठने लगेगी. बता दें कि हरीश रावत विधानसभा
2017 के चुनाव में दो जगहों से लड़े थे और दोनों सीटों से हार गए थे.
अजय भट्ट नैनीताल-ऊधमसिंह नगर से बीजेपी कैंडिडेट-
* पहली बार लोकसभा का चुनाव लड़ रहे अजय भट्ट का सीधा मुकाबला कांग्रेस के मझे नेता हरीश रावत से है. अगर अजय भट्ट ने चुनाव जीता तो देशभर में हिट हो जाएंगे. भाजपा सरकार बनने पर उन्हें मंत्री पद भी मिल सकता है.
* बता दें कि इससे पहले अजय भट्ट भाजपा की लहर में भी 2017 में विधासनभा का चुनाव रानीखेत से हार गए थे. इसके बावजूद पार्टी ने उनपर भरोसा जताया है. अगर अजय भट्ट चुनाव हार गए तो पार्टी के अंदर उनका दबदबा घट जाएगा.
* चुनाव हारने पर अजय भट्ट पावर कॉरीडोर से भी बाहर हो जाएंगे. साथ ही पार्टी संगठन में पद छिनने का भी खतरा बढ़ जाएगा.
अजय टम्टा अल्मोड़ा-पिथौरागढ़ से बीजेपी कैंडिडेट - बहुत कम ऐसे नेता हैं जिन्हें इतनी कम उम्र में इतनी तरक्की मिली.
* मोदी सरकार में मंत्री अजय टम्टा अगर चुनाव हारे तो सुर्खियां बनेंगे. केंद्र में मंत्री रहते-रहते अचानक पैदल हो जाएंगे.
* अगर अल्मोड़ा से चुनाव हारे तो रेखा आर्या, यशपाल आर्या को मिलने लगेगी तरजीह. दलित नेता के तौर पर अजय टम्टा की छवि कमजोर हो जाएगी. ऐसे में दूसरे दलित नेताओं को पार्टी आगे करेगी.
* चुनाव हारने की सूरत में अजय टम्टा के लिए नयी राजनीतिक पारी के लिए संघर्ष और इंतजार दोनों लम्बे हो जाएंगे. राज्य में विधानसभा का चुनाव भी तीन साल बाद होना है.
प्रीतम सिहं टिहरी से कांग्रेस कैंडिडेट- प्रीतम के साथ उनके बेटे का भविष्य भी दांव पर.
* टिहरी पिछले 30 सालों से भाजपा का गढ़ रही है. अगर प्रीतम सिंह ने चुनाव जीता तो बड़े विजेता माने जाएंगे. केंद्र में कांग्रेस की सरकार बनने पर उन्हें मंत्री भी बनाया जा सकता है.
* चुनाव जीतने पर प्रीतम सिंह के लिए अपने बेटे को राजनीति में सेट करना आसान हो जाएगा. चकराता से विधायक प्रीतम सिंह का प्लान है कि वे बेटे को विधानसभा के उपचुनाव में चकराता की अपनी सीट देंगे.
* वहीं अगर प्रीतम सिंह लोकसभा का चुनाव हार गए तब उनकी विधायकी तो बची रहेगी, लेकिन, कांग्रेस अध्यक्ष पद पर बने रहना मुश्किल हो जाएगा. साथ ही उनका अपने बेटे को राजनीति में सेट करने का सपना भी चकनाचूर हो जाएगा.
इनके अलावा हरिद्वार से भाजपा के रमेश पोखरियाल निशंक और पौड़ी गढ़वाल से तीरथ सिंह रावत की राजनीति भी चुनाव के नतीजों से प्रभावित होगी. ये दो ऐसी सीटें हैं जहां मुकाबला एकतरफा माना जा रहा है. दोनों जगहों पर कांग्रेस के कैंडिडेट अनुभव के आधार पर निशंक और तीरथ के सामने कहीं नहीं टिकते. ऐसे में यदि निशंक और तीरथ हारे तो राजनीति में कई साल पीछे चले जाएंगे.
थोड़ी चर्चा सीएम और सांसद रहे बीसी खंडूड़ी के बेटे मनीष खंडूड़ी की भी. बढ़िया नौकरी छोड़कर पौड़ी की पिता की राजनीतिक विरासत तभी संभाल पाएंगे जब तीरथ सिंह रावत को हराएंगे. ऐसा नहीं हुआ तो उन्हें अगले चुनाव के लिए दोबारा पांच साल तक संघर्ष करना होगा या फिर उन्हें अपनी पुरानी दुनिया में लौट जाना पड़ेगा.