इस बार का लोकसभा चुनाव कांग्रेस के लिए आर-पार की जंग की तरह है. कांग्रेस इन चुनावों को कितनी गंभीरता से ले रही है, इसका अंदाज़ा उत्तराखंड की राज्यसभा सीटों से लगाया जा सकता है. प्रदेश की तीन राज्यसभा सीटों में से दो कांग्रेस के पास हैं, लेकिन कांग्रेस इन दोनों को ही लोकसभा में दांव पर लगा रही है.
उत्तराखंड से राज्यसभा सांसद राजबब्बर को पार्टी ने यूपी के मुरादाबाद से मैदान में उतार दिया है तो दूसरे राज्यसभा सांसद प्रदीप टम्टा का टिकट अल्मोड़ा लोकसभा सीट पर तय माना जा रहा है. राज्यसभा में राजबब्बर का कार्यकाल दो साल तो प्रदीप टम्टा का तीन साल बचा है.
उत्तराखंड विधानसभा में बीजेपी के बहुमत को देखते हुए यह तय है कि अगर दोनों लोकसभा चुनाव जीत जाते हैं तो राज्यसभा की सीटें बीजेपी के खाते में जाएंगी. फिर भी कांग्रेस इन दोनों सीटों को दांव पर लगा रही है तो क्यों?
इस सवाल पर वरिष्ठ पत्रकार विकास धूलिया कहते हैं कि कांग्रेस के लिए स्थिति इस समय करो या मरो वाली है. कांग्रेस का ब्रह्मास्त्र था प्रियंका गांधी. प्रियंका गांधी के आने के बाद भी अगर कांग्रेस का प्रदर्शन बहुत अच्छा नहीं रहता तो पांच साल बाद कांग्रेस की स्थिति क्या रहेगी और राहुल गांधी, प्रियंका गांधी किस स्थिति में रह जाते हैं, इनकी पार्टी में कितनी कमांड रह जाती है. कांग्रेस इसका रिस्क नहीं लेना चाहती.
धूलिया कहते हैं कि इस समय कांग्रेस यह सोच रही है कि इस बार सब कुछ झोंक दो, राज्यसभा सीटें भी. उसकी ज़रूरत जब पड़ेगी तब देखा जाएगा. सरकार तो लोकसभा से ही बननी है. फिर कांग्रेस के लिए ही नहीं गांधी परिवार के लिए अस्तित्व का संकट है. प्रियंका अब मैदान में उतर गई हैं और उसके बाद भी कांग्रेस बेहतर प्रदर्शन नहीं कर पाती है तो इनके लिए भविष्य के लिए कोई आस बचेगी नहीं क्योंकि बंद मुट्ठी लाख की, खुल गई तो खाक की. इसीलिए कांग्रेस राज्यसभा सीटों को भी दांव पर लगाने को तैयार है.
हिंदुस्तान और अमर उजाला में संपादक रहे वरिष्ठ पत्रकार दिनेश जुयाल को कांग्रेस के कदम में कुछ भी अप्रत्याशित नहीं लगता. वह कहते हैं कांग्रेस के लिए लोकसभा में अपनी स्थिति मजबूत करना ज़्यादा ज़रूरी है और अल्मोड़ा में उन्हें प्रदीप टम्टा से बेहतर प्रत्याशी नहीं मिल पा रहा है. प्रदीप टम्टा मैदान में उतरेंगे तो पार्टी के जीतने के चांस कई गुना बढ़ जाते हैं. इसी तरह यूपी के पार्टी प्रदेश अध्यक्ष राजबब्बर के भी जीतने की गुंजाइश है.
जुयाल कहते हैं कि पिछली बार खुद बीजेपी को भी उम्मीद नहीं थी कि उसे अपने बूते बहुमत मिल जाएगा. इसीलिए वह गठबंधन कर मैदान में उतरी थी और इस बार भी 40 से ज़्यादा छोटे-बड़े दलों के साथ गठबंधन में है. कांग्रेस की स्थिति भी बहुत अच्छी नहीं है. लेकिन इस बार बहुत सी बातें मोदी जी के ख़िलाफ़ जा रही हैं और मोदी लहर अगर है भी तो उतनी मजबूत नहीं है. कांग्रेस को कुछ उम्मीद बंधी है कि वह जीत सकती है इसलिए उसके लिए दो लोकसभा सीटें दो राज्यसभा सीटों से ज़्यादा महत्वपूर्ण है.