देहरादून. गरीबों का राशन चट कर जाने वाले चार अधिकारियों-कर्मचारियों पर धामी सरकार ने बड़ी कार्रवाई की है. फूड एंड सप्लाई डिपार्टमेंट के राशन के गबन के मामले में चार दोषियों से करीब डेढ़ करोड़ रुपये की वसूली के आदेश जारी कर दिए गए हैं. यह कार्रवाई तब होने जा रही है जब गबन के मुख्य दोषी अफसर को प्रमोशन भी दिया जा चुका और वह रिटायर भी हो चुके. अब इस कार्रवाई के क्या मायने हैं और क्या इस एक्शन में बड़े अफसरों का बचाव किया गया है? इस तरह के कई सवाल खड़े हो रहे हैं.
यह पूरा मामला क्या है? पहले यह जानिए कि 2018 से ही यह मामला लटकता चला आ रहा था. इस बीच मुख्य दोषी कैलाश चंद्र पांडेय को प्रमोशन भी दे दिया गया और उसके बाद वह रिटायर भी हो गए. लेकिन, दोषियों के खिलाफ कोई कारवाई नहीं हुई. पुष्कर सिंह धामी सरकार ने अब सख्त रुख अपनाते हुए चारों दोषी कार्मिकों पर गायब खाद्यान्न की कुल कीमत डेढ़ करोड़ की पेनाल्टी लगाकर वसूली के आदेश जारी कर दिए हैं. सचिव सचिन कुर्वे ने ये आदेश जारी किए हैं.
किससे होगी कितनी वसूली?
– तत्कालीन केंद्र प्रभारी कैलाश चंद्र पांडेय पर 72 लाख रुपये की पेनल्टी लगाई गई है. पांडेय अब रिटायर भी हो चुके हैं.
– मार्केटिंग इंस्पेक्टर अमित कुमार सिंह – 28 लाख 90 हजार
– मार्केटिंग इंस्पेक्टर इशरत अजीम – 28 लाख 90 हजार
– मार्केटिंग असिस्टेंट दिनेश लाल – 14 लाख 45 हजार
क्या है 2018 का यह मामला?
राजधानी देहरादून के ट्रांसपोर्टनगर स्थित सरकारी खाद्यान्न गोदाम से 2018 में गेहूं, चावल और चीनी के करीब 11 हजार कट्टे गायब मिले थे. मामला उछला तो गोदाम के तत्कालीन केंद्र प्रभारी कैलाश चंद्र पांडेय को सस्पेंड कर विभागीय जांच बैठा दी गई थी. इसके बाद भी रीजनल फूड कमिश्नर और डीएम के लेवल पर भी अलग-अलग जांचें हुईं. कैलाश चंद्र पांडेय समेत चारों लोग दोषी पाए गए थे.
इस एक्शन से क्या सवाल उठते हैं?
केंद्र प्रभारी के ऊपर भी आरएमओ, डिप्टी आरएमओ जैसे सीनियर अफसर होते हैं, जो समय समय पर राशन गोदामों स्टॉक ठीक होने की निगरानी और पुष्टि करते हैं. सवाल उठता है कि राजधानी के इस महत्वपूर्ण गोदाम को क्या सिर्फ केंद्र प्रभारी के भरोसे छोड़ा गया था? जिन अफसरों के पास निरीक्षण का जिम्मा था, क्या उन्होंने अपनी जिम्मेदारी निभाई? यदि अफसरों ने निरीक्षण किया तो फिर 11 हजार गायब कट्टों का घपला उनकी पकड़ में क्यों नहीं आया? और यदि निरीक्षण नहीं किया तो क्यों?
इन सवालों के बीच सिर्फ निचले स्तर के ही कर्मचारियों पर कारवाई कर देने से यह तो साफ ज़ाहिर है कि सीनियर अफसरों की जिम्मेदारी तय करने में दिलचस्पी नहीं दिखाई गई. सवाल ये भी कि इतने बड़े घोटाले के बाद भी मुख्य आरोपी पांडेय को प्रमोशन कैसे दे दिया गया था?
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