देहरादून. उत्तराखंड में पलायन हमेशा से ही बड़ा मुद्दा रहा है. अपने ही घर में रोज़गार और क्षेत्र के विकास की उम्मीद से ही अलग राज्य आंदोलन शुरु हुआ था और सभी सरकारें पलायन रोकने के वादे के साथ चुनाव लड़ती रही हैं. कोरोना वायरस, कोविड-19, के चलते लॉकडाउन में बड़ी संख्या में प्रवासी उत्तराखंडी घर लौटे हैं और लगातार लौट रहे हैं. सरकार इन्हें घरों में ही रोज़गार देने की बातें तो कर रही है लेकिन कोई ठोस योजना अभी तक नहीं बन पाई है. ऐसे में एक एनजीओ सामने आया है जो स्वरोज़गार के प्रोत्साहित करने और ट्रेनिंग देने की बात कर रहा है.
पलायन आयोग का डर
उत्तराखंड की बीजेपी सरकार रिवर्स पलायन शुरु करने के वादे के साथ सत्ता में आई थी. बीजेपी के चुनाव घोषणापत्र (दृष्टिपत्र) में वादा किया गया था कि न सिर्फ़ 5 साल में पलायन को रोका जाएगा बल्कि रिवर्स पलायन भी शुर करवाया जाएगा. यानी जो लोग रोज़गार के लिए घर छोड़ गए हैं उन्हें यहीं रोज़गार देकर वापस लाया जाएगा.
कोरोना वायरस संक्रमण ने सरकार को सुनहरा मौका दे दिया है. बड़ी संख्या में प्रवासी उत्तराखंडी अपने गांव लौट गए हैं और यहीं कुछ काम-रोज़गार चाहते हैं लेकिन सरकार इसके लिए तैयार नज़र नहीं आ रही. राज्य सरकार ने प्रवासी उत्तराखंडियों को राज्य में ही रोकने के लिए योजना बनाने की ज़िम्मेदारी पलायन आयोग को सौंपी तो अपनी अंतरिम रिपोर्ट में आयोग ने आशंका जता दी कि इससे राज्य की प्रति व्यक्ति आय कम हो जाएगी.
उत्तराखंड में सोशल मीडिया से माध्यम से ऐसे मैसेज सर्कुलेट लिए जा रहे हैं.
गैर सरकारी संगठन की पहल
राज्य सरकार एक पूर्व आईआरएस अधिकारी की अध्यक्षता में एक कमेटी और एक कैबिनेट मंत्री की अध्यक्षता में एक कमेटी बना चुकी है जो रिवर्स पलायन कर रहे लोगों के लिए रोज़गार पर सुझाव देंगीं. लेकिन अब जबकि लॉकडाउन खुलने की संभावनाएं बन रही हैं अभी तक स्थिति स्पष्ट नज़र नहीं आ रही.
ऐसे में उत्तराखंड में काम करने वाला एक गैर-सरकारी संगठन प्रवासी उत्तराखंडियों के लिए एक उम्मीद की किरण जगाता है. संस्कार परिवार सेवा समिति नाम के इस संगठन ने प्रवासी उत्तराखंडियों के लिए स्वरोज़गार की ट्रेनिंग, फ़ाइनेंस में मदद और बाज़ार की खोज में मदद करने के लिए प्रोग्राम शुरु करने का ऐलान किया है.
नौकरी नहीं, अपना काम करें... कमाएं इतना
समिति के संस्थापक आचार्य विपिन जोशी कहते हैं कि सबसे पहली ज़रूरत तो उत्तराखंडियों की इस मानसिकता को बदलने की है कि नौकरी ही सब कुछ है. वह कहते हैं कि जितनी मेहनत एक प्रवासी उत्तराखंडी प्रदेश के बाहर नौकरी में करता है उतनी अगर अपने काम में करे तो आसानी से यहां अच्छी तरह से रह सकता है.
न्यूज़ 18 के सवाल के जवाब में वह कहते हैं कि कोई वादा तो नहीं है लेकिन छोटा-मोटा रोज़गार कर आदमी 20-25 हज़ार रुपये अपने घर में ही आराम से कमा सकता है. कुछ समय व्यवसाय को जमने में लगेगा लेकिन फिर स्वच्छ आबोहवा के बीच अपने मालिक खुद बनकर उत्तराखंडी भी रह सकते हैं.
आचार्य विपिन जोशी कहते हैं कि संस्थान देवभूमि की प्रकृति और प्रवृत्ति के अनुरूप स्वरोज़गार को बढ़ावा देने की कोशिश कर रहा है.
योजना
आचार्य विपिन जोशी कहते हैं कि संस्थान के साथ उत्तराखंड के कई सफल उद्यमी, खादी ग्रामोद्योग जैसे विभिन्न सरकारी संस्थान, बैंक और प्रोफेशनल्स जुड़े हैं. इनकी मदद से स्वरोज़गार शुरु करने वाले व्यक्ति की रुचि, अनुभव और स्किल के अनुरूप उन्हें संबंधित स्वरोज़गार से जुड़ी ट्रेनिंग दिलाई जाएगी और काम शुरु करने में सरकारी, बैंक की मदद दिलवाई जाएगी. उत्तराखंड में स्थापित बहुत से उद्योगपति अपने संस्थानों में ऐसे लोगों को ट्रेनिंग भी देने के लिए तैयार हैं.
संस्थान देवभूमि की प्रकृति और प्रवृत्ति के अनुरूप स्वरोज़गार को बढ़ावा देने की कोशिश कर रहा है. जैसे होम स्टे को योग, आध्यात्म से जोड़ने से यहां आने वाले लोगों को न सिर्फ़ देवभूमि की विशिष्टता का अनुभव होगा बल्कि यहां मस्ती के पर्यटन से पैदा होने वाली मुश्किलें भी नहीं होंगीं.
जोशी कहते हैं कि कृषि, बागवानी के अलावा अन्य स्किल्स डेवलप करवाने के लिए उन्होंने देहरादून के रायपुर क्षेत्र में 6 क्लासरूम तैयार कर लिए हैं. जैसे ही सोशल डिस्टेंसिंग का ख़्याल रखते हुए इन्हें शुरु करने की अनुमति मिलेगी वह काम शुरु कर देंगे. उनकी यह पहल बिना किसी योजना के मजबूरी में घर लौटे प्रवासियों के लिए यह सही समय पर मिली बड़ी मदद साबित हो सकती है.