राजाजी टाइगर रिजर्व से अचानक गुम हुई बाघिन, अब हाथियों और 80 कैमरों से हो रही तलाश

राजाजी नेशनल पार्क से एक बाघिन के गुम हो जाने से मची खलबली.
राजाजी नेशनल फॉरेस्ट (Rajaji Tiger reserve forest) में मौजूद दो बाघिनों में से एक के अचानक गुम हो जाने से वन विभाग में मची खलबली. बाघिन (Missing Tigress) को कैमरा ट्रैप और हाथियों के जरिए तलाश करने में जुटा विभाग.
- News18 Uttarakhand
- Last Updated: December 2, 2020, 1:09 PM IST
देहरादून. उत्तराखंड में राजाजी टाइगर रिजर्व (Rajaji Tiger reserve forest) की मोतीचूर रेंज से लापता T-1 नाम की बाघिन का अभी तक पता नहीं चल पाया है. इस बीच टाइगर रिजर्व की कांसरों रेंज में मिले बाघ के स्कैट को भारतीय वन्य जीव संस्थान, डब्लूआईआई (WII) को भेज दिया गया है. डब्लूआईआई स्कैट के जरिए डीएनए का विश्लेषण और मिलान करेगी. इससे स्पष्ट पता लग जाएगा कि पार्क के जिस क्षेत्र में लापता बाघिन (Tigress Missing) के होने का दावा किया जा रहा है, क्या सचमुच ये वही बाघिन है या कोई और. इस बाघिन को ढूंढने के लिए पार्क में 80 कैमरा ट्रैप लगाए गए हैं. इस काम में हाथियों की भी मदद ली जा रही है.
दरअसल, राजाजी टाइगर रिजर्व की इस रेंज में सालों से मात्र दो ही बाघिन मौजूद हैं. हाईवे, रेलवे लाइन आदि बाधाओं के कारण यहां आज तक कोई तीसरा बाघ या बाघिन नहीं आई. इसी वजह से एरिया में मौजूद दोनों बाघिनें भी पार्क के दूसरे हिस्से में नहीं जा पाती हैं. इन दोनों बाघिनों की मौजूदगी का सबसे पहले 2006 में डब्लूआईआई के वैज्ञानिकों ने पता लगाया था. बाद में डब्लूआईआई ने अपनी रिसर्च को आगे बढ़ाया तो उसने इन दोनों बाघिनों के सांइटिफिक एविडेंस भी इकटठा कर लिए थे. इन दोनों बाघिनों की लगातार मॉनेटिरिंग होती है. इसके लिए यहां कैमरा ट्रेप भी लगाए गए हैं.
राजाजी पार्क में दोनों बाघिनों के सर्वाइवल के लिए 10 करोड़ की लागत से टाइगर ट्रांसलोकेशन का प्रोजेक्ट भी चल रहा है. लेकिन इस बीच खबर आई कि अचानक टी-वन और टी-टू नाम की इन दोनों बाघिनों में से एक बाघिन गायब हो गई. मामले ने तूल तब पकड़ा जब खुद पार्क प्रशासन भी सितंबर से लेकर अभी तक का बाघिन की कोई तस्वीर नहीं दिखा पाया. तब जाकर पार्क प्रशासन ने माना कि टी-वन बाघिन लापता है. उसकी खोज के लिए पार्क में 80 और कैमरा ट्रैप के साथ ही तीन पालतू हाथियों के जरिए भी कांबिग कराई जा रही है.
इस बीच 25 नवंबर को पार्क प्रशासन ने पार्क की कांसरों रेंज में बाघिन के पग मार्क और स्कैट पाए जाने का दावा किया, लेकिन इसकी पुख्ता पहचान नहीं हो सकी. इसलिए स्कैट को डब्लूआईआई को भेजा गया. डब्लूआईआई अब अपने पास मौजूद साइंटिफिक एविडेंस से इसका मिलान करेगा, जिसके बाद ही पता लग पाएगा कि 25 नवंबर को जो पग मार्क पार्क प्रशासन देखे जाने का दावा कर रहा है वह टी-वन बाघिन के थे या नहीं
दरअसल, राजाजी टाइगर रिजर्व की इस रेंज में सालों से मात्र दो ही बाघिन मौजूद हैं. हाईवे, रेलवे लाइन आदि बाधाओं के कारण यहां आज तक कोई तीसरा बाघ या बाघिन नहीं आई. इसी वजह से एरिया में मौजूद दोनों बाघिनें भी पार्क के दूसरे हिस्से में नहीं जा पाती हैं. इन दोनों बाघिनों की मौजूदगी का सबसे पहले 2006 में डब्लूआईआई के वैज्ञानिकों ने पता लगाया था. बाद में डब्लूआईआई ने अपनी रिसर्च को आगे बढ़ाया तो उसने इन दोनों बाघिनों के सांइटिफिक एविडेंस भी इकटठा कर लिए थे. इन दोनों बाघिनों की लगातार मॉनेटिरिंग होती है. इसके लिए यहां कैमरा ट्रेप भी लगाए गए हैं.
राजाजी पार्क में दोनों बाघिनों के सर्वाइवल के लिए 10 करोड़ की लागत से टाइगर ट्रांसलोकेशन का प्रोजेक्ट भी चल रहा है. लेकिन इस बीच खबर आई कि अचानक टी-वन और टी-टू नाम की इन दोनों बाघिनों में से एक बाघिन गायब हो गई. मामले ने तूल तब पकड़ा जब खुद पार्क प्रशासन भी सितंबर से लेकर अभी तक का बाघिन की कोई तस्वीर नहीं दिखा पाया. तब जाकर पार्क प्रशासन ने माना कि टी-वन बाघिन लापता है. उसकी खोज के लिए पार्क में 80 और कैमरा ट्रैप के साथ ही तीन पालतू हाथियों के जरिए भी कांबिग कराई जा रही है.
इस बीच 25 नवंबर को पार्क प्रशासन ने पार्क की कांसरों रेंज में बाघिन के पग मार्क और स्कैट पाए जाने का दावा किया, लेकिन इसकी पुख्ता पहचान नहीं हो सकी. इसलिए स्कैट को डब्लूआईआई को भेजा गया. डब्लूआईआई अब अपने पास मौजूद साइंटिफिक एविडेंस से इसका मिलान करेगा, जिसके बाद ही पता लग पाएगा कि 25 नवंबर को जो पग मार्क पार्क प्रशासन देखे जाने का दावा कर रहा है वह टी-वन बाघिन के थे या नहीं