प्रति हज़ार बालकों पर बालिकाओं की संख्या को सेक्स रेशो के तौर पर समझा जाता है.
देहरादून. शिशुओं के जन्म पर लिंग अनुपात के मुद्दे पर उत्तराखंड बनाम नीति आयोग की रस्साकशी के मामले में एक और नया मोड़ आ गया है. राज्य में सेक्स रेशो को लेकर दो हफ्तों के बाद तीसरा आंकड़ा सामने आने से उलझन पैदा हुई तो उत्तराखंड इसका पूरा फायदा उठाना चाह रहा है. वास्तव में, इस महीने के शुरू में नीति आयोग एसडीजी इंडेक्स जारी करते हुए सेक्स रेशो के मामले में केरल को सबसे बेहतर और उत्तराखंड को सबसे फिसड्डी राज्य कहकर रेशो 840 बताया था. उत्तराखंड की सरकार ने इस रिपोर्ट का विरोध करते हुए आंकड़े को गलत कहा और सही आंकड़ा 949 बताया. अब सिविल रजिस्ट्रेशन सिस्टम के डेटा में कहा गया है कि राज्य में सेक्स रेशो 960 है यानी यह केरल से भी ज़्यादा है.
सीआरएस के इस आंकड़े से विवाद में नया मोड़ तो आया ही है, उत्तराखंड सरकार ने फ़ौरन इसे अपने दावे के प्रमाण के तौर पर प्रचारित करने की रणनीति भी अपनाई. टीओआई की एक रिपोर्ट की मानें तो उत्तराखंड की महिला एवं बाल विकास मंत्री रेखा आर्य ने कहा, 'मुझे नीति आयोग की रिपोर्ट को लेकर संशय थे. अब, सीआरएस डेटा ने साबित कर दिया है कि सेक्स रेशो के मामले में उत्तराखंड सबसे बेहतरीन राज्यों में है.'
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