रिपोर्ट: हिना आज़मी
देहरादून: उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में महिलाएं महिला सशक्तिकरण की मिसाल पेश कर रही हैं. ऐसी ही सुषमा वर्मा हैं, जिन्होंने शादी के बाद अपनी तरह कई महिलाओं को जोड़कर एक रोजगार की राह चुनी और अब इन्होंने इतना सफर तय कर लिया है कि उनकी ग्रुप की महिलाओं का सामान दिल्ली-मुंबई में लगने वाली प्रदर्शनियों में भी जाता है. सुषमा वर्मा द्वारा शुरू किए गए ग्रुप की महिलाएं ज्यादातर उन उत्पादों को बनाती हैं, जो रोजमर्रा की जिंदगी में बेहद उपयोगी होती हैं. यही वजह है कि महिलाओं का कारोबार बेहतर ढंग से चल रहा है.
देव जागृति संस्था की अध्यक्ष सुषमा वर्मा ने बताया कि वह उत्तरकाशी की बेटी हैं जिनकी साल 2007 में देहरादून में शादी हुई थी. वह घर का काम निपटा कर अकेले बोर हो जाती थी और कुछ करना चाहती थी. उन्होंने साल 2009 में एक समूह बनाया जिससे 10 महिलाएं जुड़ीं. कुछ पैसे जोड़कर समूह की महिलाओं ने एक दूसरे की जरूरत पर आर्थिक मदद शुरू की. इसके बाद महिलाओं ने अपना ही कुछ काम करने की सोची. सुषमा वर्मा ने समूह को स्वयं सहायता समूह के रूप में देव जागृति संस्था के नाम से पंजीकृत किया. महिलाओं ने पहाड़ी उत्पादों पर काम करना शुरू किया.
दिल्ली, मुंबई जाने लगा सामान
पहाड़ से महिलाएं पहाड़ी अनाज और मसाले भेजतीं और यहां पैकिंग करके उन्हें प्रदर्शनी में बेचा जाता. सुषमा बताती हैं कि धीरे-धीरे देहरादून, ऋषिकेश और उत्तराखंड के कई जिलों में महिलाओं द्वारा बनाए और पैकिंग किए गए उत्पादों को बेचा जाने लगा और उसके बाद दिल्ली, मुंबई, गुजरात जैसे राज्यों में भी महिलाओं द्वारा तैयार किए गए उत्पाद प्रदर्शनियों में बेचे जाने लगे. इनमें सबसे ज्यादा लोगों को बड़ियां पसंद आई.
लोन लेकर मशीनें खरीदी
समूह की महिलाओं का जज्बा और लगन देखते हुए सुषमा ने झाड़ू, फिनायल आदि जरूरी सामान तैयार करके कारोबार करने की सोची. सरकार से लोन लेकर उन्होंने मशीनें खरीदी और महिलाओं को ट्रेनिंग मिलने के बाद महिलाएं अपने काम में जुट गईं. सुषमा बताती हैं कि 23 वर्ष की उम्र में उन्होंने जिस समूह को शुरू किया था आज वह समूह कई घरों की महिलाओं को सशक्त और आत्मनिर्भर बना रहा है.
बढ़ता गया कुनबा
महिलाओं को खर्च और बच्चों की फीस आदि के खर्चे के लिए किसी के सामने हाथ नहीं फैलाना पड़ता. सुषमा वर्मा द्वारा शुरू की गई देव जागृति संस्था से शुरुआत में सिर्फ 10 महिलाएं जुड़ी थीं, लेकिन यह आज करीब 100-150 महिलाओं और युवाओं को रोजगार दे रही है. सिर्फ इंटरमीडिएट पास कर महिलाओं को सशक्त बनाने वाले सुषमा वर्मा का कहना है कि महिलाएं भले ही पढ़ी-लिखी न हों, लेकिन किसी हुनर पर अगर काम कर लें तो वह कभी दूसरों पर निर्भर नहीं होंगी.
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