इसमें स्विजरलैंड की सिवस एजेंसी ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. एनआईएच के वैज्ञानिकों का कहना है कि गाइडलाइन के अनुसार हिमालयी झीलों का रोजाना सेटेलाइट और अन्य तकनीक के माध्यम से मॉनिटरिंग हो. इसका हर रोज डाटा सार्वजनिक हो. साथ ही जिन जगहों पर ग्लेशियर सिकुड़ रहे है वहां पर फोकस कर झीलों में पानी कम करने के लिए पम्पिंग को अमल में लाया जाए.
राष्ट्रीय जल विज्ञान संस्थान के वैज्ञानिक सजंय कुमार जैन ने बताया कि स्थानीय प्रशासन को और आपदा तंत्र से जुड़े लोगों को भी प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए ताकि जानमाल के खतरे से बचा जा सके. एनआईएच के वैज्ञानिक एके लोहानी का कहना है कि जिन क्षेत्रों में ग्लेशियर टूटने का डर रहता है उस घाटी और क्षेत्र के भौगोलिक परिस्थितियों का भी अध्ययन करना जरूरी है. तभी बड़ी आपदाओं से निपटा जा सकता है और उन क्षेत्रों में अर्ली वार्निंग सिस्टम भी लगाए जाने चाहिए ताकि आपदा के समय बचा जा सके. एक बात तो जरूर है चमोली जिले में हुए जल प्रलय के बाद से वैज्ञानिक भी अब सतर्क नज़र आने लगे है. लोगों को जागरूक करना का लगातार प्रयास कर रहे है.
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FIRST PUBLISHED : February 16, 2021, 18:31 IST