चारधाम देवस्थानम एक्ट पर राज्य सरकार की दलीलें गुरुवार को पूरी हो गईं और फिर चार धाम देवस्थानम एक्ट के समर्थन में हाईकोर्ट पहुंची रुलक संस्था की ओर से दलीलें दी गईं. रुलेक संस्था के वकील ने कहा कि यह कानून न तो संविधान के विरोध में है और न ही इसमें कोई नई बात है. ऐसा कानून 100 साल पुराना है और अब भी चल रहा है. संस्था की ओर से यह भी कहा गया कि मंदिरों में भ्रष्टाचार पहले से चला आ रहा था और इसीलिए यह कानून बनाया गया था. रुलेक संस्था की ओर से आज भी हाईकोर्ट में दलीलें दी जाएंगी.
गुरुवार को कोर्ट में अपना पक्ष रखते हुए सरकार ने कहा कि चार धाम देवस्थानम एक्ट किसी भी हिंदू के खिलाफ नहीं है और न ही यह किसी की धार्मिक स्वतंत्रता और उसके धार्मिक स्थल बनाने व उनके रखरखावेका विरुद्ध है. एक्ट में अब सभी आय-व्यय के साथ चढ़ावे का भी हिसाब रखा जाना है और इसीलिए इसका विरोध किया जा रहा है.
सरकार की दलील पूरी होने के बाद सरकार के समर्थन में उतरी देहरादून की रुलेक संस्था ने कोर्ट में अपना पक्ष रखना शुरु किया. रुलेक के अधिवक्ता ने कार्तिकेय हरि गुप्ता ने कोर्ट के समक्ष कहा कि उत्तराखंड के मंदिरों के प्रबंधन के लिए बना यह पहला एक्ट नहीं है बल्कि ऐसा ही कानून सौ साल पुराना है. बदरीनाथ धाम के प्रबंधन में गड़बडियां सालों से हो रही हैं.
उन्होंने कोर्ट में रखे दस्तावेजों के आधार पर बताया कि 1899 में हाईकोर्ट ऑफ कुमाऊं ने स्क्रीम ऑफ़ एडमिनिस्ट्रेशन के तहत इसका मैनेजमेट टिहरी दरबार को दिया था और धार्मिक क्रियाकलाप का अधिकार रावलों व पण्डे-पुरोहितों को दिया गया था. रुलक के अधिवक्ता ने कहा कि 1933 में मदन मोहन मालवीय ने भी इन मन्दिरों में भ्रष्टाचार के मुद्दे को उठाया था जिसके बाद अंग्रेजों ने 1939 में कानून बनाया जो चला आ रहा था.
दरअसल बीजेपी नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने सरकार के एक्ट को असंवैधानिक बताते हुए उसको निरस्त करने की मांग की है. स्वामी का कहना है कि यह कानून संविधान के अनुच्छेद 25 व 26 के साथ सुप्रीम कोर्ट के 2014 के आदेश का भी उल्लंघन करता है.
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FIRST PUBLISHED : July 03, 2020, 09:31 IST