जनवरी के महीने में आने वाले त्योहार मकर संक्रांति को पूरे भारत में मनाया जाता है. उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल में इसे घुघुतिया त्यार (Ghughutiya Tyar) के नाम से जाना जाता है. इस दिन पहाड़ों में घुघूते, जोकि एक तरह का पकवान है, उसे बनाकर अगले दिन कौवों को बुलाकर खिलाया जाता है. कौवों को बुलाकर इस पकवान को खिलाने के अजब त्योहार के पीछे कई कहानियां हैं.
एक कहानी के अनुसार, जब कुमाऊं में चंद वंश का राज हुआ करता था, तब के राजा कल्याण चंद की कोई संतान नहीं थी. एक बार राजा अपनी रानी के साथ बागनाथ मंदिर गए और वहां पूजा-अर्चना की. ईश्वर के आशीर्वाद से उन्हें एक पुत्र की प्राप्ति हुई. उन्होंने बेटे का नाम घुघुति रखा. घुघुति के गले में एक माला हमेशा रहती थी, जिसमें कुछ घुंघरू आवाज करते थे.
जब भी घुघुति किसी बात पर जिद करता, तो उसकी मां कहती, ‘काले कौवा काले, घुघुति की माला खाले.’ इस डर से घुघुति हमेशा अपनी मां का कहना मानता. कुछ दिनों बाद घुघुति की कौवों के साथ दोस्ती हो गई. एक दिन जब घुघुति आंगन में खेल रहा था, तो राजा के मंत्री ने राजपाठ के लालच में बच्चे का अपहरण कर लिया. जब वह उसे जंगल की ओर ले जा रहा था, तब कौवों ने उसे देख लिया और मंत्री को घेर लिया.
एक कौवा माला लेकर राजा के पास गया, जिससे राजा को समझ आ गया कि घुघुति खतरे में है. उसने तुरंत उस कौवे का पीछा किया और जंगल में मंत्री को घुघुति के साथ देख लिया. इस कृत्य पर राजा ने उस मंत्री को मृत्युदंड दिया. घुघुति की मां ने पकवान बनाकर कौवों को खिलाए और उनका शुक्रिया अदा किया. तब से कौवों को इस दिन घुघुति बनाकर खिलाने की प्रथा चली आ रही है.
एक और कहानी के मुताबिक, घुघुत नाम का एक राजा हुआ करता था. एक ज्योतिषी ने राजा को बताया कि मकर संक्रांति के दिन कुछ कौवे उसको मार देंगे. राजा ने इसे टालने के लिए अपने राज्य में घोषणा करवा दी कि सब लोग इस दिन आटे में गुड़ मिलाकर एक अलग तरह का पकवान बनाएंगे और उसको सांप जैसा आकार देकर कौवों को खिलाएंगे. लोगों ने इस पकवान का नाम ही घुघुत रख दिया और तब से यह त्योहार के रूप में मनाया जाने लगा.
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