रिपोर्ट- हिमांशु जोशी
नैनीताल. उत्तराखंड का नैनीताल अपनी सुंदर नैनीझील के लिए काफी प्रसिद्ध है. इस सुंदर झील की वजह से इसे सरोवर नगरी भी कहा जाता है, लेकिन यहां स्थित चर्च की संख्या (Church in Nainital) को देखते हुए इसे ‘चर्चों का शहर’ भी कहा जाता है. यहां लगभग 18 छोटे-बड़े चर्च कुछ-कुछ दूरी पर मौजूद हैं. यकीनन यहां काफी ऐतिहासिक और ब्रिटिशकालीन चर्च भी हैं, जिस वजह से क्रिसमस के मौके पर इस शहर में खूब रौनक रहती है.
प्राकृतिक खूबसूरती के साथ ही नैनीताल में करीब 6 मुख्य चर्च और लगभग एक दर्जन छोटे चर्च (Chapel) मौजूद हैं. कुमाऊं का यह शहर ईसाई धर्म का केंद्र रहा है. अंग्रेजों को नैनीताल शहर से काफी लगाव था. वह इस शहर की तुलना यूरोपीय देश के शहरों से करते थे. इस वजह से उन्होंने नैनीताल शहर को ‘छोटी विलायत’ का दर्जा दिया था. शायद यही कारण है कि अंग्रेजों ने मेथोडिस्ट चर्च की पहली नींव नैनीताल में रखी.
क्रिसमस पर काफी लोग आते हैं नैनीताल
यहां अलग-अलग खासियत और पुराने चर्च मौजूद हैं. क्रिसमस पर काफी लोग नैनीताल के इन चर्च में जाते हैं, लेकिन बहुत कम ही लोग जानते हैं कि माल रोड पर स्थित मेथोडिस्ट चर्च देश ही नहीं बल्कि पूरे एशिया का पहला मेथोडिस्ट चर्च है. इसकी स्थापना साल 1858 में हुई थी. विदेशी पर्यटकों के साथ-साथ भारतीय सैलानी भी नैनीताल स्थित इस चर्च में प्रार्थना के लिए पहुंचते हैं. खासकर क्रिसमस में काफी तादाद में लोग इस चर्च में आते हैं.
इतिहासकार प्रोफेसर अजय रावत बताते हैं कि सेंट जॉन्स इन द विल्डरनेस चर्च 1846 में स्थापित हुआ था. यह उत्तराखंड का सबसे पहला चर्च है. यह चर्च एक शांत वातावरण में देवदार के बड़े पेड़ों के बीच स्थित है. तब कोलकाता के बिशप डेनियल विल्सन ने इस चर्च का शिलान्यास किया था.
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