(रिपोर्ट- हिमांशु जोशी)
नैनीताल. उत्तराखंड राज्य के जंगलों (Uttarakhand Forest Condition) में बांज और चीड़ के पेड़ काफी ज्यादा पाए जाते हैं. हालांकि पिछले कुछ वर्षों में चीड़ के पेड़ों की संख्या में काफी ज्यादा बढ़ोतरी हुई है. यह बांज के जंगलों में भी जगह घेर रहे हैं. इससे बांज के कम होने और भविष्य में पारिस्थितिकी तंत्र (Ecosystem) के असंतुलित होने की संभावनाएं बढ़ सकती हैं.
चीड़ का पेड़ वैसे तो पहाड़ के लोगों के लिए रोजगार का जरिया भी है. इसके फल से अलग-अलग तरह की आकृतियां बनाकर लोग बेचते और पैसे कमाते हैं. हालांकि यह पेड़ जंगलों में लगने वाली आग के लिए भी कुछ हद तक जिम्मेदार है. इस पेड़ की घास पिरूल ज्वलनशील होती है.
चीड़ के पेड़ों से एक नुकसान यह भी है कि यह अपने आसपास किसी अन्य प्रजाति के पेड़-पौधों को पनपने नहीं देते हैं. बांज के पेड़ की प्रजाति पूरे इकोसिस्टम में कीस्टोन का काम करती है. इस पेड़ की जड़ें पानी को रिटेन करती हैं. साथ ही ग्राउंड वॉटर की मात्रा को भी सुनिश्चित करती हैं.
वनस्पति विज्ञान विभाग के प्रोफेसर डॉ. ललित तिवारी बताते हैं कि चीड़ एक फास्ट ग्रोइंग स्पीसीज है और बांज इसके मुकाबले बेहद ही स्लो है. बांज 1800 मीटर से ऊपर की ऊंचाई में मिलता है तो वहीं चीड़ इससे नीचे मिलता है, लेकिन कुछ शोधों से यह पता चला है कि चीड़ का माइकोराइजा एसोसिएशन (सहजीवी संबंध) उसको बांज के जंगलों में जाने के लिए ताकत दे रहा है और अगर बांज के पेड़ों की जगह चीड़ ले लेता है, तो इससे पूरे इकोसिस्टम पर बुरा असर पड़ सकता है.
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