पौड़ी. उत्तराखंड विधानसभा चुनाव के बाद भारतीय जनता पार्टी के भीतर अंतर्कलह के कुछ मामले सामने आने के बाद अब नगर निगम चुनाव से पहले कार्यकर्ताओं के बीच की कलह सड़कों पर आ रही है. यही नहीं, यह तमाशा उस विधानसभा क्षेत्र में हो रहा है, जहां से भाजपा के कद्दावर नेता कहे जाने वाले धनसिंह रावत कैबिनेट मंत्री भी हैं. इस पूरी खींचतान से पार्टी पल्ला झाड़ते हुए इसे व्यक्तिगत लड़ाई करार दे रही है, तो कांग्रेस इसे भाजपा के संगठन की कमज़ोरी बता रही है.
प्रदेश के पहाड़ी क्षेत्रों में पहले नगर निगम बनने वाले श्रीनगर गढ़वाल में भले अभी चुनाव दूर हैं, लेकिन मेयर पद पर चुनावी दावेदारी ठोकने वाले भाजपा कार्यकर्ताओं की आपसी गुटबंदी का संघर्ष सड़कों पर दिख रहा है. इससे पार्टी की जमकर फजीहत भी हो रही है. अंदरखाने चल रही खींचतान तब उभरकर सामने आई, जब मांस व्यापारी व पार्टी के अल्पसंख्यक मोर्चा मंडल अध्यक्ष शाहिद के खिलाफ पार्टी के ही नेता लखपत भंडारी ने मोर्चा खोल दिया और दुकान बंद करवाकर ही माने.
बताया जाता है कि शहर में मीट की दुकानों में से केवल शाहिद की दुकान को बंद करवाने के लिए भंडारी ने आत्मदाह करने की धमकी तक देकर कई प्रदर्शन किए. शाहिद की दुकान बंद करवा दी, तो सियासी नतीजा यह हुआ कि उनके खिलाफ भी मुकद्दमा दर्ज हो गया. अब स्थिति यह है कि मेयर पद के तगड़े कुछ दावेदार और अधिकांश पार्टी नेता शाहिद के समर्थन में हैं, तो मेयर पद के विरोधी दावेदार माने जा रहे भंडारी पर भी कुछ नेताओं का हाथ माना जा रहा है.
क्या कह रहे हैं स्थानीय नेता?
— भंडारी कौन होते हैं मुझे पार्टी से बाहर करने वाले, वह तो कुछ ही समय पहले कांग्रेस से पार्टी में आए हैं. हम पुराने कार्यकर्ता हैं और लंबे समय से पार्टी के लिए काम कर रहे हैं. – शाहिद
— माना मैं आज भाजपा में हूं, तो क्या कोई गलत काम करूं! पार्टी क्या इस तरह मुझे झेलेगी. यह पार्टी का सवाल है ही नहीं. – भंडारी
— यह पार्टी के भीतर का कोई झगड़ा नहीं है, यह आपसी विवाद हो सकता है. फिर भी कार्यकर्ताओं के बीच मनमुटाव है तो मंडल कार्यसमिति की बैठक में उसे सुलझा लिया जाएगा. – गिरीश पैन्यूली, मंडल अध्यक्ष, भाजपा
इधर, कांग्रेस के नगर अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह पुंडीर ने इसे भाजपा कार्यकर्ताओं के बीच एकता न होने और एक दूसरे को नीचा दिखाने की रंजिश बताया. साथ ही उन्होंने सवाल उठाया कि इस क्षेत्र से धनसिंह रावत जैसे नेता मंत्री हैं, इसके बावजूद भाजपा यहां अपनी छवि को संभाल नहीं पा रही. बताया जा रहा है कि भंडारी और शाहिद दोनों ही रावत के करीबी हैं और विवाद में रावत की चुप्पी को लेकर डैमेज कंट्रोल करते दिख रहे संगठन पदाधिकारी भी असहज हैं.
मंडल कार्यकारिणी की बैठक भी इसलिए नहीं हो सकी है क्योंकि रावत की तरफ से बैठक की हरी झंडी मिली नहीं है. इस बीच, सुगुबुगाहट ये भी है कि अगर पार्टी में शाहिद के खिलाफ कोई स्थिति बनती है तो अल्पसंख्यक मोर्चा के पदाधिकारी भाजपा का साथ भी छोड़ सकते हैं.
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