सोमवार को सीएम आवास पर जहां सरकार का दरबार सजा था, पूरा नजारा पारंपरिक त्योहार घी संग्राद मय नजर आया. एक ओर रहे सरकार के मुखिया सीएम हरीश रावत और उनके अधिकारियों का कुनबा तो दूसरी ओर रहे अपने सवाल और सुझाव लेकर बैठे कुछ खास और कुछ आम लोग.
सवाल और सुझाव का दौर शुरू हुआ तो राज्य की संस्कृति के संरक्षण से लेकर पलायन रोकने को लेकर सवाल उठे. किसी रंगकर्मी ने लोक कलाओं के संरक्षण कासवाल उठाया तो किसी व्यवसायी ने व्यवसाय के हित में अपने सुझाव दिए.
पूर्व मुख्य सूचना आयुक्त एनएस नपल्च्याल ने राज्य के पोलिसी प्लांनिंग ग्रुप में सीमांत क्षेत्रों के विकास को प्राथमिकता दिए जाने की आवश्यकता पर बल दिया. सीमांत क्षेत्रों में आधारभूत सुविधाओं और इंफ्रास्ट्रक्चर के विकास के लिए मंत्रिमंडलीय उपसमूह के माध्यम से सतत मूल्यांकन की जरूरत बताई.
मुख्यमंत्री रावत ने कहा कि सरकार की 60 फीसदी पहल पलायन को रोकने के उद्देश्य से ही है. चार साल में पलायन को रोकने और अगले तीन सालों में वहां रोजगार के अवसर उपलब्ध करवाने का लक्ष्य लिया गया है. मुख्यमंत्री ने हर सवाल को तन्मयता से सुना और सरकार का पक्ष लोगों के सामने रखा.
सीएम ने कहा कि उन्हें अच्छे सुझाव मिले हैं और वो कोशिश करेंगे कि ये कार्यक्रम नियमित रूप से आगे भी आयोजित हो. हालांकि सीएम के साथ ही लोगों ने इस पहल को सराहा, लेकिन कुछ ऐसे भी लोग रहे जो कार्यक्रम में अपने सवाल नहीं रख पाने से निराश दिखे.
दूर दराज सेआए लोगों ने कहा कि बड़े चेहरों के सवालों से पहले उन्हें मौका दिया जाता तो बेहतर होता. कार्यक्रम में टिहरी से आए धर्मवीर सिंह ने अधिकारियों और राजनेताओं से पहले उन्हें सवाल पूछने का मौका दिया जाना चाहिए वरना ऐसे आयोजनों का लक्ष्य पूरा नहीं हो पाएगा.
सरकार अगर नीति निर्धारण में आम जनता से सीधे संवाद करती है तो इसे लोकतंत्र के लिहाज अच्छा कदम कहा जाएगा. बस जरूरत इसकी है कि सवाल और सुझाव उस आम आदमी से जुड़े ज्यादा से ज्यादा हों जो इस व्यवस्था की नीतियों और फैसलों से सबसे ज्यादा प्रभावित होता है.
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FIRST PUBLISHED : August 17, 2015, 21:40 IST