उत्तराखंड में बंदरलीमा का केला लोगों को दिला रहा है रोजगार.
पिथौरागढ़. साल 1949 में आई फिल्म ‘पतंगा’ का मशहूर गाना आपने सुना होगा, ‘मेरे पिया गए रंगून…’. इस गाने के अंतरा में गायक चितलकर कहते हैं, ‘हम बर्मा की गलियों में घूमें तुम हो देहरादून…‘. बर्मा यानी म्यांमार और उत्तराखंड के बीच फिल्मी गीतकार ने संबंध कैसे और कहां से ढूंढ निकाले, यह तो नहीं पता, लेकिन इस पहाड़ी राज्य के एक फल का इतिहास जरूर बर्मा से जुड़ा है. जी हां, आपको यकीन नहीं होगा कि उत्तराखंड के बंदरलीमा इलाके में उपजने वाले केले का कनेक्शन म्यामांर से जुड़ा है.
बंदरलीमा में पैदा होने वाला अद्भुत स्वादिष्ट केला, न सिर्फ स्वाद में अनोखा है बल्कि इसका आकार भी देश में उत्पादित होने वाले केलों से छोटा है. महज एक से 4 इंच तक के आकार का यह केला पिथौरागढ़ के बंदरलीमा को देश-विदेश में पहचान दिलाने वाला है. सिर्फ और सिर्फ बंदरलीमा में ही इस केले की पैदावार हो पाती है. किसी दूसरे स्थान पर इसका पौधा लगाने से फल के स्वाद और आकार में अंतर आ जाता है. इस केले की इन्हीं विशेषताओं के कारण अब यह इलाके में रोजगार का साधन बन रहा है.
स्थानीय लोग बताते हैं कि इस विशेष केले का पेड़ 1940 के आसपास म्यांमार (तब बर्मा) से लाया गया था. तभी से इस इलाके के लोग घर व खेतों में इसकी पैदावार करते आ रहे हैं. बंदरलीमा के रहने वाले संजय भट्ट का कहना है कि उनके गांव के सभी लोग केले के कारोबार से जुड़े हैं. हर परिवार इससे कुछ न कुछ जरूर कमा लेता है. खास स्वाद और आकार का ये केला मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की पैतृक ग्राम सभा क्षेत्र में होता है. बदलते दौर के साथ इस केले ने पूरे गांव को रोजगार का भी एक जरिया मुहैया कराया है.
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