पिथौरागढ़. चारधाम यात्रा में इन दिनों श्रद्दालुओं का तांता लगा हुआ है. हालात ये हैं कि भारी भीड़ ने व्यवस्थाओं को पटरी से उतार दिया है. लेकिन ये भारी भीड़ व्यवस्थाओं को तो बिगाड़ ही रही है, साथ ही बड़ी आपदा को भी न्यौता दे सकती है. चारधाम यात्रा हिमालय के ऊंचे इलाकों में होती है. ये इलाके अतिसंवेदनशील हैं यहां जरूरत से अधिक मानवीय हस्तक्षेप बड़े खतरे को न्यौता दे सकता है. जीबी पंत हिमालय पर्यावरण एवं विकास संस्थान ने इन दिनों चारधाम यात्रा में उमड़ रही भारी भीड़ से आगाह किया है. संस्थान की मानें तो हिमालय रेंज में जरूरत से ज्यादा इंसानों का दखल बड़े खतरे को आमंत्रित कर सकता है. यही नहीं एक स्थान पर जमा ज्यादा लोगों से आपदा के दौरान नुकसान की आशंका भी बढ़ जाती है.
ग्लेशियर पर भी पड़ेगा असर
जीबी पंत हिमालय पर्यावरण संस्थान के निदेशक डॉ. किरीट कुमार का कहना है कि उच्च हिमालयी इलाकों में एक जगह भारी भीड़ जमा होगी तो उसका दबाव धरती पर पड़ेगा, यही नहीं ग्लेशियर भी मानवीय हस्तक्षेप से तेजी से गल सकते हैं.
दो साल बाद यात्रा तो भीड़ भी ज्यादा
दो साल बाद हो रही चारधाम यात्रा में जाहिर है कि भारी भीड़ उमड़नी है. संस्थान ने यात्रा आयोजकों को भीड़ की अलग-अलग स्थानों पर इकठ्ठा करने का सुझाव दिया है. साथ ही संस्थान का कहना है कि यात्री सिर्फ चारधाम में ही एकत्रित न हो. बेहतर हो कि इस भीड़ उत्तराखंड के अन्य धार्मिक और पर्यटन स्थलों में भी बंटवारा है. जिससे हिमालय का पर्यावरण तो बचेगा ही, साथ ही आपदा के खतरे भी कम होंगे.
साल 2013 में केदारनाथ सहित चारधाम यात्रा में आसमानी आफत ने जमकर तांडव मचाया था. कई जानकार इस त्रासदी के लिए जरूरत से अधिक मानवीय हस्तक्षेप को जिम्मेदार ठहरा चुके हैं. ऐसे में बेहतर यही होगा कि यात्रा के दौरान जानकारों की राय पर आयोजक गंभीरता से अमल करें, ताकि किसी भी प्रकार का कोई खतरा इंसानी जिंदगी पर न मंडरा सके.
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