रिपोर्ट: हिमांशु जोशी
पिथौरागढ़. देशभर में इन दिनों प्राकृतिक खेती को बढ़ावा दिए जाने के अनेकों प्रयास किए जा रहे हैं. यकीनन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ऑर्गेनिक खेती को बढ़ावा देने के अभियान के तहत सभी राज्य प्राकृतिक रूप से खेती करने के लिए किसानों को जागरूक कर रहे हैं. इसी के चलते उत्तराखंड का पिथौरागढ़ जिला जो कि सीमांत इलाका है, जहां पारम्परिक रूप से जैविक खेती ही होते आई है. हालांकि जानकारी के अभाव में किसानों की फसलों की पैदावार कम होती है, जिसके लिए पिथौरागढ़ का कृषि विज्ञान केंद्र ग्रामीण क्षेत्रों में जाकर किसानों को प्राकृतिक खेती करने के लिए जागरूक करने के साथ ही हर संभव मदद कर रहा है.
कृषि विज्ञान केंद्र पिथौरागढ़ के वैज्ञानिक डॉ. अलंकार सिंह बताते हैं कि किसान प्राकृतिक खेती से कम लागत के साथ जैविक पैदावार को बढ़ा सकते हैं, जिससे उनकी आय में भी वृद्धि होगी. प्राकृतिक खेती का उद्देश्य रसायन मुक्त कृषि, प्रकृति के अनुरूप जलवायु खेती को बढ़ावा देना और पर्यावरण एवं जलवायु प्रदूषण में कमी लाते हुए इस पद्धति को स्थाई आजीविका के रूप में स्थापित करना है. इसके लिए किसानों को प्रशिक्षण दिया जा रहा है.
प्राकृतिक खेती वह खेती होती है, जिसमें फसलों पर किसी भी प्रकार का रासायनिक कीटनाशक एवं उर्वरकों का प्रयोग नहीं किया जाता है. सिर्फ प्रकृति के दौरान निर्मित उर्वरक और अन्य पेड़ पौधों के पत्ते खाद, पशुपालन, गोबर, खाद एवं जैविक कीटनाशक उपयोग में लाया जाता है. प्राकृतिक खेती से जुड़कर किसान काफी कम लागत में अच्छी पैदावार कर सकते हैं, जिसमें प्रकृति द्वारा दिए गए संसाधनों से ही खाद कीटनाशक बनाया जाता है, जिसमें लागत न के बराबर आती है.
खाद के रूप में मूल स्तम्भ जीवामृत, बीजामृत केंचुए की खाद और वेस्ट मैटीरियल इस्तेमाल होता है, तो वहीं कीटनाशक के रूप में नीमास्त्र, ब्रह्मास्त्र एवं दसपर्णी जैविक कीटनाशक का प्रयोग होता है, जिसे बनाने की विधि और जानकारी पिथौरागढ़ के कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिक डॉ अलंकार सिंह से ले सकते हैं, जिनका फोन नंबर 9410081476 है.
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