रिपोर्ट: हिमांशु जोशी
पिथौरागढ़. उत्तराखंड को देवभूमि कहा जाता है. यह नाम इसे यहां की पौराणिक मान्यताओं को लेकर मिला है. आज हम बात कर रहे हैं पिथौरागढ़ में स्थित ऐसे मंदिर की, जिसे खुद भगवान श्रीराम ने अपने हाथों से बनाया था और जहां उन्होंने अस्त्र-शस्त्र की शिक्षा ली थी. इसका उल्लेख महर्षि वेद व्यास द्वारा रचित स्कंद पुराण में भी है. पिथौरागढ़ से 40 किलोमीटर दूर सरयू-रामगंगा के संगम स्थल में मौजूद रामेश्वर मंदिर (Rameshwar Temple Pithoragarh), जहां प्राकृतिक रूप से बना हुआ शिवलिंग है. इसे हरिद्वार के समान महत्व दिया गया है. यहां संगम पर स्नान करना पुण्य माना गया है.
रामेश्वर मंदिर के कपाट सुबह 5 बजे खुल जाते हैं और सायं 7 बजे आरती के बाद बंद कर दिए जाते हैं. यह धाम पिथौरागढ़, चंपावत और अल्मोड़ा जिले का पवित्र धाम है, जो इन तीनों जिले का शवदाह स्थल होने के साथ ही यज्ञोपवित संस्कार और देव डांगरों में पवित्र स्नान का स्थल है. यहां पहुंचने पर अपार शांति का अनुभव होता है. यहां सदियों से पीढ़ी दर पीढ़ी रामेश्वर धाम के पुजारी रहे महेश गिरी गोस्वामी ने इस मंदिर का महत्व बताते हुए कहा कि यहां रामेश्वर धाम में त्रेता युग में भगवान श्रीराम ने इस जगह पर बने प्राकृतिक शिवलिंग की पूजा करके इस जगह के बाद ही बैकुंठ लोक को प्रस्थान किया था.
भगवान श्रीराम द्वारा स्थापित रामेश्वर के शिव मंदिर का खास स्थान है. महर्षि वेद व्यास द्वारा रचित स्कंद पुराण के मानस खंड में रामेश्वर सहित कई धर्मस्थलों का विस्तार से वर्णन है. यहां पूजन करने से अलौकिक अनुभूति के साथ ही पुण्य की प्राप्ति होती है.
मानसरोवर झील से निकली सरयू और परशुराम द्वारा खोजी गई रामगंगा के संगम पनार में स्थित शिव मंदिर को यहां धाम के रूप में पूजा जाता है. कहा गया है कि काशी विश्वनाथ के पूजन की अपेक्षा 10 गुना, वैद्यनाथ और सेतुबंध रामेश्वर की अपेक्षा 100 गुना अधिक फल रामेश्वर मंदिर में पूजन से मिलता है. पुराण में रामेश्वर नाम के 95वें अध्याय में भगवान राम के स्वर्गारोहण के बाद अयोध्यावासियों के रामेश्वर आने का वृतांत है.
इतना बड़ा धाम होने के बाद भी अभी तक यहां पहुंचने के लिए संसाधन कम ही हैं. पिथौरागढ़ और चंपावत के लोगों के लिए सरयू नदी के किनारे बना हुआ पैदल रास्ता भी काफी खराब है. बरसात में इस रास्ते यहां पहुंचना नामुमकिन है. यहां के स्थानीय निवासी नंदन गिरी ने मंदिर का महत्व बताते हुए कहा कि रामेश्वर धाम का इतना प्राचीन महत्व होने के बाद भी अभी तक यहां पहुंचने के लिए रास्ता नहीं बन पाया है, जिससे यहां पहुंचने वाले श्रद्धालुओं को काफी दिक्कतें आती हैं.
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Tags: Lord Ram, Pithoragarh news
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