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Pithoragarh News : पिथौरागढ़ के 40 से अधिक गांव सड़क से महरूम, पलायन को मजबूर ग्रामीण

आज भी पिथौरागढ़ के 40 से अधिक गांव सड़क से वंचित हैं. किसी भी क्षेत्र के विकास के लिए सड़क मार्ग का होना बहुत जरूरी है. 

रिपोर्ट-हिमांशु जोशी

पिथौरागढ़. उत्तराखंड के राज्य आंदोलनकारियों ने जिन सपनों को लेकर अलग राज्य की लड़ाई लड़ी थी, आज भी उनके सपने धरातल पर साकार नहीं हुए हैं. इसका एक उदाहरण सीमांत जिला पिथौरागढ़ है. सरकार द्वारा इन 22 सालों में करोड़ों रुपये विकास के नाम पर खर्च कर दिए गए, लेकिन आज भी लोग मूलभूत सुविधाओं से कोसों दूर हैं और आये दिन धरना प्रदर्शन व ज्ञापन देने का दौर चलता रहता है. आज भी पिथौरागढ़ के 40 से अधिक गांव सड़क से वंचित हैं. किसी भी क्षेत्र के विकास के लिए सड़क मार्ग का होना बहुत जरूरी है. सड़क न होने की वजह से सीमांत के कई गांव विकास की मुख्यधारा से कोसों दूर हैं. ऐसे में पलायन होना लाजमी है.

पहाड़ी क्षेत्रों की अगर बात करें तो कई गांव ऐसे हैं, जहाँ शिक्षा, सड़क और स्वास्थ्य जैसी मूलभूत सुविधाएं शून्य हैं. जिस कारण पिथौरागढ़ जिले के 59 गांव की आबादी गांव छोड़कर जा चुकी है, जहां अब कोई नही रहता. उत्तराखंड में पलायन बहुत बड़ी समस्या है. पहाड़ों में रोजगार और शिक्षा का अभाव होने से धीरे धीरे लोग पहाड़ को छोड़कर शहरों की ओर रुख कर रहे हैं.

स्वास्थ्य सेवाओं की अगर बात की जाय, तो सीमांत क्षेत्र पिथौरागढ़ की जनता मैदानी क्षेत्रों पर ही निर्भर है. साढ़े पांच लाख आबादी वाले पिथौरागढ़ के स्वास्थ्य का जिम्मा एक जिला अस्पताल और एक महिला अस्पताल पर निर्भर है, जहाँ गंभीर बीमारियों के इलाज के लिए उचित व्यवस्था नहीं है, जिससे मरीज को हायर सेंटर रेफर कर दिया जाता है और कई मामलों में मरीज ने रास्ते में ही दम तोड़ दिया है. अस्पताल में अल्ट्रासाउंड के लिये भी मरीजों को काफी संघर्ष करना पड़ता है. जिले में एक बेस अस्पताल भी है, लेकिन कोई नहीं जानता कि वह कब शुरू होगा. आये दिन इलाज के अभाव में मरीज यहाँ दम तोड़ रहे हैं.

पिथौरागढ़ में बेरोजगारी का ग्राफ भी बढ़ता ही जा रहा है. सरकारी नौकरी की तैयारी में युवाओं की उम्र बढ़ती जा रही है और सरकार नई भर्ती कराने में काफी सुस्त है. पिथौरागढ़ जिले में करीब 400 ऐसे परिवार हैं, जो अभी तक बिजली से वंचित हैं. सीमांत के हजारों लोगों को अभी भी बिजली का इंतजार है. पिथौरागढ़ के ग्रामीण इलाकों में अब खेती न के बराबर हो रही है. क्योंकि पहाड़ों में खेती बारिश पर ही निर्भर रहती है, जो समय से नहीं होती और सरकार द्वारा बनाई गई सिंचाई नहरें मात्र शोपीस बनी हुई हैं और बची-खुची जो खेती होती है, उसे यहां जंगली जानवर नष्ट कर देते हैं. अब ऐसे में ग्रामीणों का खेती से मोह भंग होना लाजमी है और खेती जो यहां रोजगार का एक साधन थी, वह भी अब बंद होने लगी है. जिससे ग्रामीण रोजगार के अन्य साधन ढूंढने के लिए भटकने को मजबूर हैं.

उत्तराखंड को 22 साल पूरे कर चुके हैं. इन 22 सालों में राज्य ने कई उपलब्धियां हासिल की हैं, तो कई ऐसे पहलू भी हैं जिनकी कसक अभी तक दूर नहीं हो पाई है. मैदानी क्षेत्रों में जहाँ बुनियादी ढांचे के विकास, सड़क, रेल-एयर नेटवर्क के लिहाज से उत्तराखंड आगे बढ़ रहा है, तो वहीं पहाड़ों में रोजगार, पलायन और आपदा प्रबंधन के क्षेत्र में आज भी राज्य अपेक्षाओं पर खरा नहीं उतरा है, जिससे पहाड़ में रहने वालों की जिंदगी अभी भी आसान नहीं है.

Tags: Pithoragarh news, Uttarakhand news

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