पिथौरागढ़. सरकारी मशीनरी कुछ काम ऐसे करती है कि हर कोई हैरान हो जाए. एक पुराने गीत की पंक्ति है, ‘सब कुछ लुटा के होश में आये तो क्या किया’, जिसे यहां 10 साल से मण में बन रहे इंजीनियरिंग कॉलेज के मामले में सिस्टम ने चरितार्थ कर दिया. इसे बनाने में 15 करोड़ रुपये की रकम और कई साल खपा देने के बाद अब इंजीनियरिंग कॉलेज को सरकारी इंटर कॉलेज यानी जीआईसी के परिसर में बनाया जाने वाला है, वह भी पूरी कवायद नये सिरे से हो रही है. ज़ाहिर है सवाल उठता है क्यों?
कभी यहां, कभी वहां! जी हां, कुछ ऐसा ही हाल है सीमांत इंजीनियरिंग कॉलेज पिथौरागढ़ का. 2011 में इस इंजीनियरिंग कॉलेज को स्वीकृति मिली थी, तबसे कभी किराये के भवन में तो कभी विकलांग हॉस्टल से यह संचालित होता रहा. तत्कालीन सरकार ने मण में कॉलेज भवन बनाने का काम शुरू किया. तबसे अब तक इस निर्माण में 15 करोड़ की भारी-भरकम धनराशि खर्च की जा चुकी है. लेकिन अब निर्माणाधीन कॉलेज की ज़मीन को लैंडस्लाइड ज़ोन करार देकर इंजीनियरिंग कॉलेज को इंटर कॉलेज परिसर में बनाने का प्रस्ताव बना है.
सीमांत इंजीनियरिंग कॉलेज के निदेशक आशीष चौहान ने बताया कि शासन ने प्रस्ताव मांगा है, जिस पर कार्यवाही की जा रही है. इस कवायद के बाद कई गंभीर सवाल खड़े हो रहे हैं. विपक्षी पार्टी कांग्रेस के विधायक मयूख महर ने तो इस मुद्दे को विधानसभा सत्र में भी उठाया. देखिए क्या सवाल सरकार से पूछे जा रहे हैं.
— 10 साल और 15 करोड़ खर्च करने के पहले कैसे पता नहीं चला कि निर्माणाधीन कॉलेज की ज़मीन डेंजरस है?
— आखिर इस ज़मीन पर मण में इंजीनियरिंग कॉलेज बनाने का फैसला किसने किया?
— इस तरह की स्वीकृति देने वाले पर क्या कार्रवाई की जा रही है?
— क्या यह भ्रष्टाचार का मामला है? हां, तो कौन दोषी है?
सवालों के साथ कॉलेज का विरोध भी!
कांग्रस के प्रदेश उपाध्यक्ष एमडी जोशी का कहना है कि इतनी बड़ी धनराशि खर्च करने के बाद अधिकारियों का यह तर्क और पूरी कवायद, सब कुछ बहुत हैरान करता है. जोशी ने खतरे वाली ज़मीन पर परिसर को स्वीकृति देने वाले अधिकारियों पर एक्शन लेने की मांग की. इधर, इंटर कॉलेज परिसर में इंजीनियरिंग कॉलेज बनाने का विरोध भी किया जा रहा है. असल में यह तर्क सही है कि मण में जंगल के बीच लैंडस्लाइड ज़ोन है इसलिए वहां कॉलेज भवन बनाना खतरनाक है, लेकिन सवाल है कि 10 साल बाद नींद क्यों खुली!
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