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उतराखंड के इस मंदिर में हुआ था भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह, प्रमुख वेडिंग डेस्टिनेशन के रूप में फेमस है यह स्थान

यह मंदिर शिव पार्वती का विवाह स्थल है.

यह मंदिर शिव पार्वती का विवाह स्थल है.

मान्यता है कि भगवान शंकर और पार्वती ने गुप्तकाशी स्थित त्रियुगीनारायण मंदिर में ही विवाह किया था. इस विवाह में भगवान वि ...अधिक पढ़ें

सोनिया मिश्रा
रुद्रप्रयाग : वैसे तो उत्तराखंड को देवभूमि, स्वर्गभूमि आदि कई नामों से जाना जाता है लेकिन उत्तराखंड के विभिन्न स्थानों में स्थित मंदिर उत्तराखंड को एक विशेष महत्व देते हैं. उन्हीं में से एक है त्रियुगीनारायण मंदिर, जिसे शिव-पार्वती के विवाह स्थल के रूप में जाना जाता है. यह मंदिर उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित है.

स्थानीय भाषा में इसे त्रिजुगी नारायण के नाम से पुकारा जाता है और मंदिर परिसर में वर्षों से जल रहे अग्नि कुंड के कारण इसे अखंड धुनी मंदिर के नाम से भी जाना जाता है.मंदिर प्रांगण में चार कुंड सरस्वती कुंड, रुद्र कुंड, विष्णु कुंड और ब्रह्म कुण्ड स्थित हैं. मंदिर के भीतर भगवान विष्णु की प्रतिमा के साथ-साथ माता लक्ष्मी, सरस्वती व अन्य देवी-देवताओं की मूर्तियां भी देखने को मिलेंगी.

मंदिर से जुड़ी है महादेव और देवी पार्वती की कहानी :
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, जब प्रजापति दक्ष ने अपनी पुत्री सती व महादेव को यज्ञ में आमंत्रित नहीं किया, तो सती ने हवन कुंड में अपने प्राण त्याग दिए, जिससे शिव बहुत क्रोधित हो गए और वह राजा दक्ष का सिर काटकर तांडव करने लगे.जब बहुत समय तक सभी देवताओं ने शिव से प्रार्थना की, तो शिव ने दक्ष के शरीर पर बकरी का सिर लगाकर जीवन दान दिया और इसके बाद शिव समाधि में लीन हो गए. उसी बीच भगवान ब्रह्मा के वरदान से ताड़केश्वर राक्षस ने तीनों लोक जीत लिए. उसे वरदान था कि उसकी मृत्यु केवल शिव पुत्र के हाथों ही होगी.

महादेव समाधि में लीन थे और हिमवंत क्षेत्र के राजा हिमावत के घर माता शक्ति पार्वती ने जन्म लिया. जैसे जैसे समय बीतता गया पार्वती को शिव से प्रेम हुआ तो वह शिव की तपस्या में लीन हो गईं. बहुत समय तक तपस्या करने के बाद शिव पार्वती की तपस्या से प्रसन्न हुए और उन्हें दर्शन दिए.

भगवान शंकर और पार्वती ने त्रियुगीनारायण मंदिर में किया था विवाह :
मान्यता है कि भगवान शंकर और पार्वती ने गुप्तकाशी स्थित त्रियुगीनारायण मंदिर में ही विवाह किया था. इस विवाह में भगवान विष्णु ने देवी पार्वती के भाई की भूमिका निभाई. भगवान ब्रह्मा ने पुजारी बनकर विवाह संपन्न करवाया. विष्णु की नाभी से सरस्वती जल धारा बनी और इसी जल से अन्य तीन कुंड भी बने जहां देवताओं ने स्नान किया और यह पूरा क्षेत्र शिव पार्वती के विवाह का साक्षी बना.फिर कार्तिकेय का जन्म हुआ, ताड़कासुर का वध हुआ और तीनों लोक ताड़कासुर के अत्याचारों से मुक्त हुआ.

मंदिर से जुड़ी है यह मान्यता:
त्रियुगीनारायण मंदिर से जुड़ी यह मान्यता है कि मंदिर के आंगन में स्थित अग्नि कुंड जहां शिव पार्वती परिणय सूत्र में बंधे थे, उस अग्नि कुंड में वर्षों से ज्वाला जलाई जाती है और साथ ही यह भी कहा जाता है कि जो भी व्यक्ति उस ज्वाला को प्रज्वलित करता है और उसकी राख को अपने पास रखता है, उसके वैवाहिक जीवन में सुख समृद्धि बनी रहती है. मंदिर प्रांगण में स्थित कुंड के पानी से जो महिला स्नान करती है, तो उसे बांझपन की समस्या से भी मुक्ति मिलती है.

डेस्टिनेशन वेडिंग प्वाइंट बना त्रियुगी नारायण मंदिर:
उत्तराखंड सरकार ने साल 2018 में त्रियुगीनारायण मंदिर का डेस्टिनेशन वेडिंग स्थल के रूप में प्रचार-प्रसार किया. इसके पीछे सिर्फ एक ही उद्देश्य था कि दूर-दूर से लोग मंदिर में शादी करने के लिए आएं. इससे इस क्षेत्र के लोगों को रोजगार के साथ-साथ पर्यटन भी बढ़ेगा.डेस्टिनेशन वेडिंग प्वाइंट की घोषणा के बाद इस क्षेत्र में कई नामी सितारे मंदिर में भी पहुंचे.
(NOTE: इस खबर में दी गई सभी जानकारियां और तथ्य मान्यताओं के आधार पर हैं. NEWS18 LOCAL किसी भी तथ्य की पुष्टि नहीं करता है.)

Tags: Rudraprayag news, Uttarakhand news

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