उत्तराखंड के वैज्ञानिकों ने उड़द की नई किस्म विकसित की.
चंदन बंगारी
रुद्रपुर. हरित क्रांति की जननी के तौर पर मशहूर गोविंद वल्लभ पंत कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने उड़द की नई प्रजाति विकसित की है. वैज्ञानिकों ने नई प्रजाति ‘पंत उड़द 12’ को लेकर कई बड़े दावे करते हुए कहा कि वर्तमान में यही प्रजाति किसानों द्वारा सबसे अधिक उगाई जा रही है. वैज्ञानिकों का दावा है कि यह प्रजाति जहां उत्पादन के लिहाज़ से कारगर साबित होगी, वहीं इसमें रोग की आशंका न के बराबर होगी और केमिकलों से भी किसानों को छुटकारा मिल जाएगा. बड़ी खबर यह भी कि देश के कृषि मंत्रालय ने पंत उड़द 12 प्रजाति को नोटिफाई भी कर लिया है.
कितने बड़े हैं वैज्ञानिकों के दावे?
1. ‘पंत उड़द 31’ प्रजाति के मुकाबले ‘पंत उड़द 12’ 20 फीसदी से अधिक उत्पादन देगी.
2. उड़द की दूसरी प्रजातियों के मुकाबले इस प्रजाति में पीला मोजेक, सफेद चूर्णील, सरकोसफोरा, लीफ स्पॉट जैसे रोग नहीं लगेंगे.
3. किसानों को इस प्रजाति की फसल के बाद केमिकल का छिड़काव नहीं करना पड़ेगा.
4. वर्तमान में उगाई जा रही मानक प्रजातियों के मुकाबले नई प्रजाति कहीं ज़्यादा उपज देने में सक्षम है.
कृषि मंत्रालय ने ‘पंत उड़द 12’ को किया नोटिफाई
पंतनगर विवि के वैज्ञानिकों की तीन साल की मेहनत रंग लाई. वैज्ञानिक डॉ. संजय वर्मा ने बताया कि इस नई प्रजाति को कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय ने बीते अक्टूबर में नोटिफाई कर दिया है. इसके साथ ही पंजाब, यूपी, उत्तराखंड, हरियाणा, राजस्थान, जम्मू-कश्मीर में उगाने के लिए संस्तुत किया है.
1427 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर औसत उपज
इस प्रजाति की औसत उपज 1427 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर पाई गई है. इस प्रजाति के पौधे मध्यम आकार के करीब 65-70 सेमी ऊंचाई के होते हैं. इसकी फसल 78 से 82 दिनों में पककर तैयार हो जाती है. दानों का आकार मध्यम तथा 100 दानों का भार चार ग्राम है. वैज्ञानिकों के अनुसार आगामी सीजन में इस नई प्रजाति के बीज किसानों को उपलब्ध कराए जाएंगे.
तीन साल की मेहनत पर मिली बधाई
पंत उड़द-12 प्रजाति को विकसित करने में परियोजना समन्वयक डॉ. रमेश चंद्रा, कृषि महाविद्यालय के वैज्ञानिक डॉ. आरके पंवार, डॉ. एसके वर्मा, डॉ. अंजू अरोरा और परियोजना में तैनात स्टाफ का योगदान रहा. विवि कुलपति डॉ. तेज प्रताप ने पूरी टीम को बधाई देते हुए कहा कि यह विशेष रूप से छोटे किसानों के लिए उपयोगी साबित होगी. शोध निदेशक डॉ. एएस नैन ने बताया कि विवि के वैज्ञानिकों ने दालों की 50 से अधिक प्रजातियां विकसित की हैं.
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