उत्तराखंड के आपदाग्रस्त इलाके में लोग कीड़ा जड़ी के लिए बर्फ खोदते हैं. हिमालय क्षेत्र में ग्लेशियर. (फाइल फोटो)
नई दिल्ली. उत्तराखंड के चमोली जिले में ग्लेशियर फटने (Chamoli Glacier Burst) की घटना ने तबाही मचा दी है. इसमें 150 से ज्यादा लोगों के मारे जाने की आशंका जताई जा रही है. हालांकि, जिस इलाके में यह घटना हुई है, वहां दुनिया की सबसे कीमती जड़ी-बूटी मिलती है. विशेषज्ञों का कहना है कि बेहद कीमती कीड़ा जड़ी (Worm Herb) को पाने के लिए लोग ग्लेशियरों (Glaciers) तक पहुंच जाते हैं और वहां की बर्फ को खोद डालते हैं. प्रकृति के साथ हो रहे इस खिलवाड़ का ही मिलाजुला असर आपदा (Disaster) के रूप में दिखाई देता है. फिलहाल आपको बताते हैं क्या होती है कीड़ा जड़ी.
यह जड़ी-बूटी बहुत ही कीमती होती है और मुख्यतया हिमालय (Himalaya) के दुर्गम इलाकों में मिलती है. इसे हिमालयन वायग्रा या यार्सागुम्बा भी कहा जाता है. यह एक फफूंद होती है जो पहाड़ों के 3500 मीटर ऊंचाई पर मिलती है, जहां ट्रीलाइन ख़त्म हो जाती है यानी जहां पेड़ उगने बंद हो जाते हैं. इसके बनने की पूरी प्रक्रिया एक कीट के द्वारा होती है. कैटरपिलर का प्यूपा लगभग 5 साल तक हिमालय और तिब्बत के पठारों में दबा हुआ रहता है. इसकी सूंडी बनने के दौरान इस पर ओफियोकार्डिसिपिटैसियस वंश की फफूंदी लग जाती है जो धीरे-धीरे इसके शरीर में प्रवेश कर जाती है. बाद में यह उस कीट की सूंडी से ऊर्जा लेती है और कीट के सिर से बाहर निकलती है. यह किसी कीड़े की तरह ही दिखाई देती है. इसी लिए इसका लोकप्रिय नाम कीड़ा जड़ी है. इस तरह इसके बनने की प्रक्रिया काफी जटिल और लंबी है. यही वजह है कि यह हर जगह नहीं मिलती.
इसलिए है ये फायदेमंद
उत्तराखंड में ईको टास्क फोर्स के पूर्व कमांडेंट ऑफिसर कर्नल हरिराज सिंह राणा बताते हैं कि कीड़ा जड़ी का इस्तेमाल दवा के रूप में होता है. इसमें प्रोटीन, पेपटाइड्स, अमीनो एसिड, विटामिन बी-1, बी-2 और बी-12 जैसे पोषक तत्व होते हैं, जो शरीर को ताक़त देते हैं. अंतरराष्ट्रीय स्तर स्तर पर यह खिलाड़ियों के लिए इस्तेमाल की जाती है. खास बात है कि यह डोपिंग टेस्ट में यह पकड़ी भी नहीं जाती है. किडनी, फेफड़ों और गुर्दे को मजबूत करने, शुक्राणु उत्पादन में वृद्धि और रक्त उत्पादन में वृद्धि, ऊर्जा और जीवन शक्ति को बढ़ाने, रक्तचाप को रोकने में भी इसे बेहद शक्तिशाली और प्रभावी दवा माना जाता है.
50 लाख रुपये प्रति किलो है इसकी कीमत
राणा बताते हैं कि इसकी कीमत अंतरराष्ट्रीय बाजार में काफी ज्यादा है. आजकल यह करीब 50 लाख रुपये किलो के हिसाब से बिक रही है. यही वजह है कि लोग इसे पाने के लिए बर्फ के पहाड़ों को खोदने तक से बाज नहीं आते. जिसकी वजह से प्रकृति को काफी नुकसान पहुंचता है. बर्फ में आठ-आठ इंच तक छेद होने से बर्फ पिघलने की प्रक्रिया जल्दी शुरू हो जाती है जो बाद में तबाही लेकर आती है.
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Tags: Avalanche In Chamoli, Flash flood in Uttarakhand, Snowfall in Uttarakhand, Uttarakhand Glacier
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