जोखिमों को पार कर ऋषिगंगा पर बनी नई झील का विशेषज्ञ कर रहे सर्वे, जल्द सौंपी जाएगी रिपोर्ट

चमोली में आई आपदा के कारणों को जानने की कोशिशें की जा रही हैं. (File Pic)
रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन, जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया और वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी तथा आईटीबीपी की टीमें ऊपरी क्षेत्र में बनी झील के विस्तृत सर्वेक्षण के बाद जोशीमठ लौट आईं. इनकी तरफ से प्रशासन को रिपोर्ट सौंपी जाएगी.
- News18Hindi
- Last Updated: February 23, 2021, 3:48 PM IST
नई दिल्ली : उत्तराखंड (Uttarakhand) के चमोली (Chamoli) में ग्लेशियर (Glacier ) खिसकने से मची तबाही के बाद अब इस आपदा के कारणों को जानने की कोशिशें की जा रही हैं. इसके लिए विशेषज्ञों की टीमें लगातार मौके के मुआयने पर हैं. विशेष तौर पर जलप्रलय के बाद बनी झील से पैदा हुए खतरे को लेकर टीमें सतर्क हैं.
रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन, जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया और वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी तथा आईटीबीपी की टीमें ऊपरी क्षेत्र में बनी झील के विस्तृत सर्वेक्षण के बाद जोशीमठ लौट आईं. इनकी तरफ से प्रशासन को रिपोर्ट सौंपी जाएगी. उधर, जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया और वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी की टीमें भी मौका स्थल पर पहुंची हैं. ITBP की तरफ से उन्हें लगातार मदद दी जा रही है. सूत्रों का कहना है कि जब सभी एजेंसियों अपना सर्वे पूरा कर लेंगी, उसके बाद रिपोर्ट में आगे की कार्रवाई को लेकर रूपरेखा तय की जाएगी.
सर्वे करने पहुंची विशेषज्ञों की इन टीमों को तमाम दिक्कतों का सामना भी करना पड़ा है, क्योंकि रास्ते पर हर जगह कीचड़ फैली होने के बाद मार्ग बहुत जोखिम भरे हैं. उन पर चल जाना भी मुश्किल है. ऐसे में विशेषज्ञों की ये टीमें केवल सुबह ही मूवमेंट कर पा रही हैं. केवल यही नहीं, इस मार्ग पर भूस्खलन के संभावित क्षेत्र भी हैं, जिनसे कभी भी लैंडस्लाइड होने का बड़ा खतरा बना रहता है. हालांकि विशेषज्ञों को आईटीबीपी की टीमों ने बेहद सुरक्षा एवं सतर्कता के साथ मौका स्थल का मुआयना कराया है. खुद आईटीबीपी की संयुक्त टीम का नेतृत्व अनिल डबराल (2 इन कमांड, प्रथम बटालियन) द्वारा किया गया.
आईटीबीपी और डीआरडीओ (एसएएसई) द्वारा तीन बिंदुओं को ध्यान में रखते हुए ऋषिगंगा पर बनी नई झील के संयुक्त सर्वेक्षण किया गया है, जोकि निम्न हैं...1. क्या इस नई झील के किनारे कोई भी अस्थाई हेलीपैड बनाया जा सकता है...
2. क्या मौजूदा जल चैनल के अलावा कोई अन्य जल का मार्ग बनाया जा सकता है, जिसके माध्यम से पानी इस झील से नीचे बह रहा है...
3. क्या किसी भी जियोमेंब्रांस को मौजूदा वाटर चैनल में गहराई तक कम करने के लिए रखा जा सकता है.
रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन, जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया और वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी तथा आईटीबीपी की टीमें ऊपरी क्षेत्र में बनी झील के विस्तृत सर्वेक्षण के बाद जोशीमठ लौट आईं. इनकी तरफ से प्रशासन को रिपोर्ट सौंपी जाएगी. उधर, जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया और वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी की टीमें भी मौका स्थल पर पहुंची हैं. ITBP की तरफ से उन्हें लगातार मदद दी जा रही है. सूत्रों का कहना है कि जब सभी एजेंसियों अपना सर्वे पूरा कर लेंगी, उसके बाद रिपोर्ट में आगे की कार्रवाई को लेकर रूपरेखा तय की जाएगी.
सर्वे करने पहुंची विशेषज्ञों की इन टीमों को तमाम दिक्कतों का सामना भी करना पड़ा है, क्योंकि रास्ते पर हर जगह कीचड़ फैली होने के बाद मार्ग बहुत जोखिम भरे हैं. उन पर चल जाना भी मुश्किल है. ऐसे में विशेषज्ञों की ये टीमें केवल सुबह ही मूवमेंट कर पा रही हैं. केवल यही नहीं, इस मार्ग पर भूस्खलन के संभावित क्षेत्र भी हैं, जिनसे कभी भी लैंडस्लाइड होने का बड़ा खतरा बना रहता है. हालांकि विशेषज्ञों को आईटीबीपी की टीमों ने बेहद सुरक्षा एवं सतर्कता के साथ मौका स्थल का मुआयना कराया है. खुद आईटीबीपी की संयुक्त टीम का नेतृत्व अनिल डबराल (2 इन कमांड, प्रथम बटालियन) द्वारा किया गया.
आईटीबीपी और डीआरडीओ (एसएएसई) द्वारा तीन बिंदुओं को ध्यान में रखते हुए ऋषिगंगा पर बनी नई झील के संयुक्त सर्वेक्षण किया गया है, जोकि निम्न हैं...1. क्या इस नई झील के किनारे कोई भी अस्थाई हेलीपैड बनाया जा सकता है...
2. क्या मौजूदा जल चैनल के अलावा कोई अन्य जल का मार्ग बनाया जा सकता है, जिसके माध्यम से पानी इस झील से नीचे बह रहा है...
3. क्या किसी भी जियोमेंब्रांस को मौजूदा वाटर चैनल में गहराई तक कम करने के लिए रखा जा सकता है.