पाकिस्तान की सीमा पर तैनात तालिबान के लड़ाके (फोटो- AP)
काबुल. अफगानिस्तान की फिजा बदल चुकी है. तालिबान (Taliban Rule Afghanistan) ने देश के लगभग हर हिस्से पर कब्जा जमा लिया है. तालिबान के सह-संस्थापक मुल्ला बरादर क़तर से काबुल पहुंच गए हैं. नई सरकार बनाने को लेकर कवायद शुरू हो गई है. लेकिन अफगानिस्तान का एक इलाका ऐसा है जिस पर अब तक तालिबान के लड़ाके नहीं पहुंच सके हैं. वो है पंजशीर (Panjshir). अफगानिस्तान को वो हिस्सा जिसे उम्मीदों की घाटी कहा जाता है. इतिहास गवाह रहा है कि इस इलाके ने दुश्मनों को हमेशा करारा जवाब दिया है.
पंजशीर में लोगों ने तालिबान के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है. राजधानी काबुल से ये इलाका 150 किलोमीटर उत्तर-पूर्व में है. अब अपदस्थ सरकार के कुछ वरिष्ठ सदस्य भी यहीं रह रहे हैं. जैसे कि उपराष्ट्रपति अमरुल्ला सालेह और पूर्व रक्षा मंत्री बिस्मिल्लाह मोहम्मदी. राष्ट्रपति अशरफ गनी के देश छोड़कर भाग जाने के बाद सालेह ने खुद को कार्यवाहक राष्ट्रपति घोषित किया है. उन्होंने ट्विटर पर ऐलान किया है, ‘मैं तालिबान आतंकवादियों के आगे कभी नहीं झुकूंगा. मैं अपने हीरो अहमद शाह मसूद की आत्मा और विरासत के साथ कभी विश्वासघात नहीं करूंगा.’
अफगान सैन्य इतिहास में पंजशीर की भूमिका
>>पंजशीर घाटी ने अफगानिस्तान के सैन्य इतिहास में बार-बार निर्णायक भूमिका निभाई है. दरअसल इसकी भौगोलिक स्थिति इसे देश के बाकी हिस्सों से लगभग पूरी तरह से अलग कर देती है. इस इलाके में सिर्फ पंजशीर नदी के एक संकीर्ण रास्ते से पहुंचा जा सकता है.
>>हिंदू कुश पहाड़ों में बसा ये क्षेत्र 1990 के गृह युद्ध के दौरान भी तालिबान के कब्जे में नहीं गया था. इसके अलावा न ही यहां सोवियत संघ की जीत हुई थी.
>>घाटी के डेढ़ लाख निवासी ताजिक जातीय समूह के हैं, जबकि अधिकांश तालिबान पश्तून हैं.
>>तालिबान के सत्ता हथियाने से पहले पंजशीर प्रांत ने बार-बार केंद्र सरकार से अधिक स्वायत्तता की मांग की थी
ये भी पढ़ें:- काबुल में फंसे भारतीयों को वापस लाने की तैयारी तेज, भारत से रोज उड़ेंगीं दो फ्लाइट्स
दुश्मनों को करारा जवाब देने का लंबा इंतिहास
>>2001 से 2021 तक नाटो समर्थित सरकार के समय पंजशीर घाटी देश के सबसे सुरक्षित क्षेत्रों में से एक थी.
>>घाटी की आजादी का ये इतिहास अफगानिस्तान के सबसे मशहूर तालिबान विरोधी सेनानी अहमद शाह मसूद के लिए जाना जाता है. उन्होंने 2001 में अपनी हत्या होने तक घाटी में इस्लामी कट्टरपंथी समूह को हमेशा करारा जवाब दिया.
>>अहमद शाह का शेर कहा जाता है. मसूद की 9 सितंबर 2001 को अल कायदा के दो आतंकवादियों ने हत्या कर दी थी. इन दोनों आतंकियों ने कहा था कि वो पत्रकार है और वो मसूद का इंटरव्यू करना चाहते हैं. लेकिन जब मसूद ने दो हफ्ते तक उन्हें इंटरव्यू नहीं दिया तो उन्होंने उसकी हत्या कर दी.
>>1953 में घाटी में जन्मे अहमद शाह ने 1979 में खुद को ‘मसूद’ यानी भाग्यशाली का नाम दिया. उन्होंने काबुल और सोवियत संघ में कम्युनिस्ट सरकार का विरोध किया. आकिरकार वो देश के सबसे प्रभावशाली मुजाहिदीन कमांडर बन गए.
>>1989 में सोवियत संघ की वापसी के बाद, अफगानिस्तान में गृह युद्ध छिड़ गया, जिसे तालिबान ने आखिरकार जीत लिया. हालांकि, मसूद और उसका संयुक्त मोर्चा (नॉर्दन एलायंस) न केवल पंजशीर घाटी को नियंत्रित करने में सफल रहा, बल्कि चीन और ताजिकिस्तान के साथ सीमा तक लगभग पूरे पूर्वोत्तर अफगानिस्तान को नियंत्रित करने में सफल रहा.
अब मसूद का बेटा संभाल रहा है मोर्चा
>>अहमद शाह मसूद के बेटे अहमद मसूद का कहना है कि वो अपने पिता के नक्शेकदम पर चलने की उम्मीद रखते हैं. मसूद का हाव-भाव अपने पिता से काफी मिलता-जुलता है. उन्होंने कहा कि उनके साथ देश के पूर्व सैनिक हैं.
>>सोशल मीडिया पिछले दिनों एक तस्वीर वायरल हुई थी इसमें अपदस्थ उप राष्ट्रपति सालेह को मसूद के साथ बैठक करते हुए दिखाया गया है.
>>मसूद ने अमेरिका से अपने संगठन को हथियार और गोला-बारूद की आपूर्ति करने का भी आह्वान किया है.
.
Tags: Afghanistan Crisis, Afghanistan-Taliban Fighting, Panjshir, Taliban rise in Afghanistan