पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान और पूर्व सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा. (एपी फाइल फोटो)
वॉशिंगटन. अमेरिका के पूर्व विदेश मंत्री माइक पोम्पिओ ने दावा किया है कि फरवरी 2019 में भारत द्वारा पाकिस्तान के बालाकोट में आतंकवादी ठिकानों को निशाना बनाने के बाद दोनों देशों के बीच परमाणु हमले की नौबत आ गई थी, लेकिन पाकिस्तान के ‘वास्तविक नेता’ से बात करके अमेरिका ने संभावित परमाणु नतीजे को टाल दिया था. पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान या पूर्व विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी जैसे निर्वाचित सरकार के सदस्यों से बात करने के बजाय, अमेरिकी के तत्कालीन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के पूर्व स्टाफ ने उस समय पाकिस्तान के सेनाध्यक्ष रहे जनरल क़मर जावेद बाजवा से फोन पर बात करना जरूरी समझा.
24 जनवरी को बाजार में आई अपनी नई किताब ‘नेवर गिव एन इंच: फाइटिंग फॉर द अमेरिका आई लव’ में पोम्पिओ ने कहा कि ‘मैं पाकिस्तान के वास्तविक नेता जनरल बाजवा के पास पहुंचा, जिनके साथ मैंने कई बार बातचीत की थी. मैंने उन्हें उस बारे में जानकारी दी, जो भारतीयों ने मुझे बताया था. उन्होंने कहा कि यह सच नहीं है.’ पोम्पिओ के दावों से पता चलता है कि अमेरिका और उसके प्रशासन भी जानते हैं कि पाकिस्तान की चुनी हुई सरकारें केवल नाममात्र की भूमिका निभाती हैं, जबकि वास्तविक निर्णय सेना द्वारा लिए जाते हैं.
पोम्पिओ ने दावा किया कि भारतीय अधिकारी और उनके पाकिस्तानी समकक्ष आश्वस्त थे कि दोनों पक्ष परमाणु युद्ध की तैयारी कर रहे थे क्योंकि पाकिस्तान इस बात से नाराज था कि भारत ने फरवरी 2019 को उसके हवाई क्षेत्र में प्रवेश करने के बाद आतंकवादी गढ़ों को खत्म कर दिया. समाचार एजेंसी रॉयटर्स ने भी मार्च 2019 की अपनी रिपोर्ट में कहा था कि फरवरी 2019 में भारत और पाकिस्तान एक-दूसरे पर मिसाइल दागने के बेहद करीब आ गए थे. भारतीय वायुसेना के पायलट अभिनंदन वर्धमान को नुकसान होने पर भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ कड़े कदम उठाने की चेतावनी दी थी.
मिग-21 बाइसन पायलट विंग कमांडर अभिनंदन वर्धमान को पाकिस्तानी अधिकारियों ने पकड़ लिया था, लेकिन भारत द्वारा कूटनीतिक प्रयास शुरू करने और पाकिस्तान को कठोर नतीजे भुगतने की चेतावनी देने के बाद उन्हें रिहा कर दिया गया था. पोम्पिओ ने अपनी किताब में दावा किया है कि उन्होंने अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जॉन बोल्टन, उस समय भारत में अमेरिकी राजदूत केनेथ जस्टर और अन्य वरिष्ठ अधिकारियों के साथ मिलकर यह सुनिश्चित करने के लिए चौबीसों घंटे काम किया ताकि परमाणु हमले जैसा कोई नतीजा न निकले.
माइक पोम्पिओ ने अपनी किताब में लिखा, ‘मुझे नहीं लगता कि दुनिया ठीक से जानती है कि फरवरी 2019 में भारत-पाकिस्तान की प्रतिद्वंद्विता किस कदर परमाणु हमले के करीब पहुंच गई थी. सच तो यह है कि मुझे इसका ठीक-ठीक उत्तर भी नहीं पता है, मुझे बस इतना पता है कि यह बहुत करीब था.’ दरअसल, भारत के युद्धक विमानों ने पुलवामा आतंकी हमले में केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) के 40 जवानों की शहादत के जवाब में फरवरी 2019 में पाकिस्तान के बालाकोट में जैश-ए-मोहम्मद के आतंकवादी प्रशिक्षण शिविर को तबाह कर दिया था. इसके बाद दोनों देशों में तनाव चरम पर पहुंच गया था.
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