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चीन में चल रहे विरोध प्रदर्शनों में खूनी कार्रवाई! 1989 के नरसंहार से तुलना, जानें क्या था इतिहास

चीन में सरकार की जीरो कोविड पॉलिसी को लेकर जबरदस्त विरोध चल रहा है.

चीन में सरकार की जीरो कोविड पॉलिसी को लेकर जबरदस्त विरोध चल रहा है.

वर्तमान विरोध स्पष्ट रूप से चीन सरकार की सख्त ‘‘शून्य कोविड’’ नीतियों के खिलाफ है. ये प्रदर्शन 24 नवंबर को उरुमकी के उत ...अधिक पढ़ें

टेरेसा राइट (राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर)

चीन भर में सड़कों पर हो रहे विरोध प्रदर्शनों ने थ्येनआनमन चौराहे पर हुए प्रदर्शन की यादें ताजा कर दी हैं, जिन्हें 1989 में बेरहमी से कुचल दिया गया था. दरअसल, विदेशी मीडिया का कहना है कि चीन के कई शहरों में फैली यह अशांति अतीत की उन घटनाओं के बाद देखी गई घटनाओं से एकदम अलग है. निहितार्थ यह है कि चीन में विरोध दुर्लभ है. इस बीच, 30 नवंबर, 2022 को जियांग जेमिन की मौत हो गई, जिन्हें 1989 में खूनी कार्रवाई के बाद लाया गया था और उनका निधन इस बात पर गौर करने का और कारण देता है कि थ्येनआनमन चौराहे के नरसंहार के बाद से चीन कैसे बदल गया है, और कम्युनिस्ट पार्टी के नेता अब अशांति पर कैसे प्रतिक्रिया दे सकते हैं .

लेकिन ये हाल की जन गतिविधियां कितनी असामान्य हैं? और यह 1989 में बड़े पैमाने पर सप्ताह भर चले प्रदर्शनों से कैसे अलहदा हैं? चीन में विरोध पर व्यापक रूप से लिखने के बाद, मैं प्रमाणित कर सकता हूं कि चीन में विरोध बिल्कुल भी असामान्य नहीं है, लेकिन इससे वर्तमान में जो हो रहा है वह कम महत्वपूर्ण नहीं हो जाता है. वर्तमान विरोध प्रदर्शनों और हाल के वर्षों के अधिक विशिष्ट विरोधों के बीच समानता के साथ, आज के प्रदर्शनों और 1989 के प्रदर्शनों के बीच समानताएं भी हैं. फिर भी चीन की अंतरराष्ट्रीय स्थिति और घरेलू नेतृत्व में अंतर अब उदार लोकतांत्रिक परिवर्तन की संभावना को कम कर देता है.

चीन में वर्तमान विरोध प्रदर्शन 24 नवंबर 2022 को शुरू हुए
वर्तमान विरोध स्पष्ट रूप से चीन सरकार की सख्त ‘‘शून्य कोविड’’ नीतियों के खिलाफ है. ये प्रदर्शन 24 नवंबर को उरुमकी के उत्तर-पश्चिमी शहर में लगी घातक आग के बाद से भड़क उठे थे, कुछ निवासियों का आरोप था कि लॉकडाउन प्रतिबंध लागू होने के कारण आग बुझाने के प्रयासों में बाधा आई. अशांति तब से बीजिंग और शंघाई सहित कई शहरों में फैल गई है. हालात महामारी की वजह से अद्वितीय लग सकते हैं. लेकिन कई मामलों में, जो हम देख रहे हैं वह नया या असामान्य नहीं है – विरोध, सामान्य रूप से, चीन में दुर्लभ नहीं हैं.

चीन में विरोध प्रदर्शन लगातार व्यापक रहे हैं
वास्तव में, 1990 से लेकर आज तक, चीन में थ्येनआनमन चौराहे पर हुए प्रदर्शनों की तुलना में लोकप्रिय विरोध अधिक लगातार और व्यापक रहे हैं. चीन सरकार के आंकड़ों के अनुसार, घरेलू ‘‘सामूहिक घटनाओं’’ या ‘‘सार्वजनिक व्यवस्था में गड़बड़ी’’ – संगठित अपराध से लेकर सड़क पर विरोध प्रदर्शन तक सब कुछ संदर्भित करने के लिए प्रेयोक्ति – की वार्षिक गणना 1990 के दशक की शुरुआत में 5,000 से 10,000 तक से बढ़कर 2000 के दशक की शुरुआत में 60,000 से 100,000 हो गई. 2006 के बाद से आधिकारिक संख्या – जो उस वर्ष के बाद प्रकाशित होना बंद हो गया – न होने के बावजूद चीनी अधिकारियों द्वारा मौखिक बयान और विद्वानों तथा गैर-सरकारी संगठनों द्वारा शोध का अनुमान है कि वार्षिक विरोध प्रदर्शनों की संख्या उच्च दर पर दसियों-हजारों में बनी हुई है.

चीन में वर्तमान विरोध प्रदर्शन दुर्लभ नहीं हैं
यह कहना सही नहीं है कि हाल के कई शहरों में हो रहे विरोध आश्चर्यजनक या महत्वहीन हैं. इसके विपरीत, इन प्रदर्शनों को मीडिया से जो महत्व मिल रहा है, मेरे विचार में, यह उसके योग्य है. थ्येनआनमन चौक के बाद की अवधि में हर साल होने वाले हजारों विरोध प्रदर्शन अमूमन स्थानीय मुद्दों पर होते थे और उनमें विशिष्ट भौतिक मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया जाता था. उदाहरण के लिए, जब ग्रामीणों को लगता है कि उन्हें भूमि अधिग्रहण के लिए दिया जा रहा मुआवजा अनुचित है, जब निजी क्षेत्र के कर्मचारियों को भुगतान नहीं किया जाता है, या जब निवासियों को अपशिष्ट भस्मक के कारण पर्यावरणीय गिरावट का सामना करना पड़ता है तब उन्होंने विरोध किया इसके विपरीत, मौजूदा विरोध कई शहरों में लॉकडाउन के विरोध में सामने आया है.

17 शहरों में कम से कम 23 प्रदर्शन हुए हैं
सीएनएन की रिपोर्ट बताती है कि 17 शहरों में कम से कम 23 प्रदर्शन हुए हैं. वे सभी एक ही मुद्दे पर केंद्रित हैं: कोविड-19 प्रतिबंध. इसके अलावा, उन्हें केंद्रीय पार्टी के नेताओं और सरकार की आधिकारिक नीति पर लक्षित किया जाता है. विरोध के आकार के संदर्भ में निकटतम समानता के लिए, किसी को 1990 के दशक के अंत और 2000 के दशक की शुरुआत में वापस जाना होगा. 1998 से 2002 तक, कम से कम 10 चीनी प्रांतों में राज्य-स्वामित्व वाले हजारों उद्यम श्रमिकों ने छंटनी और जल्दी सेवानिवृत्ति के खिलाफ प्रदर्शन किया और 1999 में, प्रतिबंधित आध्यात्मिक आंदोलन फालुन गोंग के लगभग 10,000 सदस्य अपने दमन का विरोध करने और कानूनी मान्यता की मांग करने के लिए मध्य बीजिंग में एकत्र हुए. लेकिन ये विरोध उन मुद्दों पर निर्देशित थे जो विशेष रूप से केवल इन समूहों को प्रभावित करते थे और चीन के शीर्ष राजनीतिक नेताओं या संपूर्ण व्यवस्था की आलोचना नहीं करते थे.

राजनीतिक व्यवस्था में मूलभूत परिवर्तन के लिए जन आक्रोश काम हुए हैं
1989 के बाद के प्रत्यक्ष सामूहिक राजनीतिक असंतोष के एकमात्र उदाहरण – यानी, चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के नेतृत्व वाली राजनीतिक व्यवस्था में मूलभूत परिवर्तन के लिए आहूत जन आक्रोश- बेहद छोटे पैमाने पर हुए. 1998 में, कार्यकर्ताओं ने ऐलान किया कि वह उदार लोकतांत्रिक बहुदलीय शासन की शुरुआत करेंगे और इसके लिए एक नई राजनीतिक पार्टी चाइना डेमोक्रेसी पार्टी का गठन किया. हालांकि पार्टी लगभग छह महीने तक खुले तौर पर बनी रही, 24 प्रांतों और शहरों में एक राष्ट्रीय समिति और शाखाओं की स्थापना की, इसके नेताओं को अंततः गिरफ्तार कर लिया गया और पार्टी को भूमिगत कर दिया गया.

 हर मामलों में प्रदर्शनकारियों की मिश्रित मांगें रहीं
एक दशक बाद, लेखक लियू शियाओबो के नेतृत्व में बुद्धिजीवियों के एक समूह ने उदार लोकतांत्रिक राजनीतिक सुधार की वकालत करते हुए ‘‘चार्टर 08’’ नामक एक घोषणापत्र ऑनलाइन पोस्ट किया. लियू, जिन्हें बाद में नोबेल शांति पुरस्कार मिला, को इसकी वजह से जेल में डाल दिया गया. वह 2017 में अनुपचारित कैंसर से अपनी मृत्यु तक जेल में रहे, तो मौजूदा लॉकडाउन विरोधी प्रदर्शन 1989 में शासन को हिलाकर रख देने वाले प्रदर्शनों से कितना मेल खाते हैं? दोनों में जीवन के विभिन्न क्षेत्रों के शहरी निवासियों ने भाग लिया है, जिनमें विश्वविद्यालय के छात्र और ब्लू-कॉलर कार्यकर्ता शामिल हैं और हर मामले में प्रदर्शनकारियों की मिश्रित मांगें रहीं. इनमें विशिष्ट भौतिक शिकायतें शामिल हैं: 1989 में, यह मुद्रास्फीति के प्रभाव थे; 2022 में, यह लॉकडाउन और लगातार पीसीआर परीक्षण का प्रभाव है लेकिन उनमें अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता जैसे राजनीतिक उदारीकरण के व्यापक आह्वान भी शामिल हैं. दरअसल कुछ मायनों में 2022 के आंदोलनकारियों को उनकी राजनीतिक मांगों को लेकर ज्यादा तवज्जो दी जा रही है.

राष्ट्रपति शी जिनपिंग और चीनी कम्युनिस्ट पार्टी से पद छोड़ने का नारा लगा
कम से कम दो प्रमुख शहरों की सड़कों पर उन लोगों ने राष्ट्रपति शी जिनपिंग और चीनी कम्युनिस्ट पार्टी से पद छोड़ने का आह्वान किया है. 1989 में प्रदर्शनकारियों ने इस तरह की बयानबाजी से परहेज किया. यह तब और अब चीन की बदलती राजनीतिक वास्तविकताओं को दर्शाता है. 1989 की शुरुआत में, पार्टी नेतृत्व स्पष्ट रूप से विभाजित हो गया था, झाओ जियांग जैसे अधिक सुधार-उन्मुख नेताओं को परिवर्तन के लिए कार्यकर्ताओं के दृष्टिकोण को साझा करने के रूप में माना जाता था. इस तरह, प्रदर्शनकारियों ने साम्यवादी व्यवस्था के भीतर और नेतृत्व में परिवर्तन के बिना अपने लक्ष्यों को हासिल करने का एक तरीका देखा. आज के माहौल से इसकी तुलना करें तो कुछ बातें स्पष्ट है: शी की पार्टी पर मजबूत पकड़ है. यहां तक ​​कि अगर शी चमत्कारिक रूप से पद छोड़ देते हैं, तो उनकी जगह लेने के लिए कोई स्पष्ट विपक्षी नेता या गुट नहीं है और अगर पार्टी गिरती है, तो इसकी वजह से पैदा होने वाला राजनीतिक शून्य व्यवस्थित राजनीतिक परिवर्तन की तुलना में अराजकता लाने की अधिक संभावना रखता है.

विरोध प्रदर्शनों को आधिकारिक मीडिया कवरेज में कोई स्थान नहीं मिलता
वास्तव में, हाल के विरोध प्रदर्शनों के प्रति सरकार की प्रतिक्रिया उस पैटर्न का अनुसरण करती है जो 1989 के बाद के विरोध प्रदर्शनों में बार-बार सामने आया है. इन विरोध प्रदर्शनों को आधिकारिक मीडिया कवरेज में कोई स्थान नहीं मिलता है और केंद्रीय चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के नेताओं द्वारा भी इन्हें स्वीकार नहीं किया जाता है. स्थानीय अधिकारी विरोध का नेतृत्व करने वाले नेताओं की पहचान करने और उन्हें दंडित करने का प्रयास करते हैं और इस दौरान नियमित रूप से प्रदर्शन करने वाले कार्यकर्ताओं को नरम और धमकी न देने वाले अंदाज में ऐसा न करने को कहा जाता है. यह जनता की चिंताओं का जवाब देने का एक खराब और निकम्मा तरीका है – लेकिन यह 1989 के बाद से आदर्श बन गया है.

(द कन्वरसेशन एकता)

Tags: China, Coronavirus in China

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