खुलासा! PAK, नेपाल और श्रीलंका से भी कम हुई भारत में न्यूनतम मजदूरी, कोविड से हालात खराब

भारत में मजदूरों के न्यूनतम वेतन में भारी गिरावट. (फोटो- AFP)
International Labour Organization Report: अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन की नई रिपोर्ट के मुताबिक पूरी दुनिया का न्यूनतम औसत मासिक वेतन 9720 है जबकि भारत में ये सिर्फ 4300 रुपये प्रति महीना ही है. श्रीलंका में ये 4940, पाकिस्तान में 9820 और नेपाल में 7920 रुपये है.
- News18Hindi
- Last Updated: December 4, 2020, 1:01 PM IST
नई दिल्ली. इंटरनेशनल लेबर आर्गनाइजेशन (ILO) की नई रिपोर्ट में दावा किया गया है कि भारत के मजदूरों पर कोरोना वायरस माहामारी (Coronavirus) और लॉकडाउन के हालातों का बुरा असर पड़ा है. इस रिपोर्ट के मुताबिक असंगठित क्षेत्र के मजदूरों के वेतन में 22.6 फीसदी की कमी आई है जबकि संगठित क्षेत्र के नौकरीपेशा लोगों की सैलरी भी 3.6 फीसदी तक घट गयी है. इस दौरान भारत में न्यूनतम मजदूरी नेपाल, पाकिस्तान और श्रीलंका से भी कम हो गयी है. भारत के लोगों की खरीदने की क्षमता (Purchasing power parity-PPP) भी अब बांग्लादेश और सोलोमन आइलैंड जैसे देशों से भी कम हो गयी है.
द मिंट में छपी रिपोर्ट के मुताबिक पूरी दुनिया का न्यूनतम औसत मासिक वेतन 9720 है जबकि भारत में ये सिर्फ 4300 रुपये प्रति महीना ही बना हुआ है. इस रिपोर्ट के मुताबिक कम वेतन वालों पर कोविड लॉकडाउन का ज्यादा प्रभाव पड़ा है जिसका सीधा सा मतलब यही है कि इससे समाज में असामनता भी बढ़ी है. मनोरंजन, खेल और पर्यटन और हॉस्पिटैलिटी जैसे क्षेत्र जो सबसे बुरी तरह से प्रभावित हुए हैं, आमतौर पर अधिक महिलाओं को रोजगार देते हैं. आमदनी के निचले आधे हिस्से वाले श्रमिकों को अपनी मजदूरी का 17.3% नुकसान हुआ है जबकि वैश्विक वास्तविक वेतन वृद्धि में 1.6 से 2.2 प्रतिशत के बीच उतार-चढ़ाव हुआ. 2020 की दूसरी तिमाही में 28 यूरोपीय देशों में बिना सब्सिडी के महिलाओं को वेतन में 8.1 प्रतिशत का नुकसान हुआ. वहीं पुरुषों को 5.4 प्रतिशत का नुकसान हुआ.
भारत समेत कई देशों में सैलरी देने का संकट
इंटरनेशनल लेबर आर्गनाइजेशन की नई रिपोर्ट के मुताबिक 2006-19 के बीच भारत, चीन, कोरिया, थाईलैंड और वियतनाम के साथ एशिया और प्रशांत क्षेत्र के देशों में सबसे ज्यादा वेतन वृद्धि हुई. रिपोर्ट में बताया गया है कि कोविड-19 के चलते भारत समेत दुनियाभर के देशों में वेतन पर दबाव है. ज्यादातर देशों में वेतन बढ़ने की रफ्तार धीमी हुई या फिर नकारात्मक हो गई है. आईएलओ ने बताया है कि कैसे भारत ने न्यूनतम मजदूरी प्रणाली के जरिए न्यूनतम मजदूरी का कवरेज बढ़ाया है. न्यूनतम मजदूरी प्रणाली के जरिए भारत के राज्यों ने 1,915 से अधिक व्यावसायिक न्यूनतम मजदूरी तय की. इसके साथ ही केंद्रीय क्षेत्र की न्यूनतम मजदूरी भी तय की गई. इसके तहत सभी वेतन भोगियों के दो-तिहाई हिस्से को कवर किया गया. भारत में 2010 से 2019 के बीच 3.9 प्रतिशत की रफ्तार से न्यूनतम मजदूरी बढ़ी है.
कोविड और लॉकडाउन ने बिगाड़े हालात
रिपोर्ट के मुताबिक, कोविड काल में लॉकडाउन के दौरान भारत में संगठित क्षेत्र के कर्मियों का वेतन 3.6 प्रतिशत तक कम हुआ, जबकि असंगठित क्षेत्र के कर्मियों का वेतन 22.6 फीसद तक गिरा है (ये आंकड़े लॉकडाउन के दौरान के हैं). अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नजर डालें तो रिपोर्ट कहती है कि कोविड-19 के चलते दुनिया भर में लोगों के वेतन पर दबाव है और यह वैक्सीन आने पर भी जारी रहेगा. पूरी दुनिया का न्यूनतम औसत मासिक वेतन 9720 है जबकि भारत में ये सिर्फ 4300 रुपये प्रति महीना ही है. श्रीलंका में ये 4940, पाकिस्तान में 9820 और नेपाल में 7920 रुपये है.
रिपोर्ट के मुताबिक इस संकट से महिलाएं और कम-वेतन वाले ज्यादा प्रभावित हो रहे हैं. रिपोर्ट के मुताबिक, जापान, दक्षिण कोरिया और यूके में औसत वेतन वर्ष की पहली छमाही में दबाव में आ गया. ब्राजील, कनाडा, फ्रांस, इटली और अमेरिका में औसत वेतन संतुलित रहा, क्योंकि ज्यादा नुकसान उन लोगों को हुआ, जिनका वेतन सबसे कम था. रिपोर्ट के मुताबिक, उन देशों में जहां रोजगार को संरक्षित करने के लिए मजबूत उपाय किए गए थे, वहां लोगों की नौकरी नहीं गई, लेकिन वेतन कम हुआ. प्रबंधकीय और पेशेवर नौकरियों की तुलना में कम कुशल व्यवसायों में काम के घंटे कम हुए.
चीन में नुकसान नहीं
आईएलओ के महानिदेशक गॉए राइडर कहते हैं कि यह एक लंबी प्रक्रिया है और मुझे लगता है कि यह अशांत करने वाली है. यह और कठिन होने जा रहा है. रिपोर्ट के मुताबिक, दुनिया के ज्यादातर देशों में यह संकट है. सिर्फ चीन इससे बचा है, क्योंकि वहां तेजी से चीजें पटरी पर आ गईं. इसलिए दुनिया के बाकी देशों में महामारी से पहले की स्थिति में आने में अभी काफी वक्त लगेगा. गॉए राइडर का कहना है कि हमें सच्चाई का सामना करना होगा.

ज्यादा संभावना है कि तनख्वाह सब्सिडी और सरकारी हस्तक्षेप कम हो जाएंगे. वेतन पर लगातार दबाव बना रहेगा. पिछले चार साल से विकसित जी-20 अर्थव्यवस्थाओं में आय 4-.9 प्रतिशत की रफ्तार से बढ़ रही थी. वहीं विकासशील जी-20 अर्थव्यवस्थाओं में 3.4-3.5 का इजाफा हो रहा था. वहीं अब दो-तिहाई देशों में वेतन बढ़ने की यह प्रक्रिया या तो धीमी हो गई है या फिर उल्टी हो गई है.
द मिंट में छपी रिपोर्ट के मुताबिक पूरी दुनिया का न्यूनतम औसत मासिक वेतन 9720 है जबकि भारत में ये सिर्फ 4300 रुपये प्रति महीना ही बना हुआ है. इस रिपोर्ट के मुताबिक कम वेतन वालों पर कोविड लॉकडाउन का ज्यादा प्रभाव पड़ा है जिसका सीधा सा मतलब यही है कि इससे समाज में असामनता भी बढ़ी है. मनोरंजन, खेल और पर्यटन और हॉस्पिटैलिटी जैसे क्षेत्र जो सबसे बुरी तरह से प्रभावित हुए हैं, आमतौर पर अधिक महिलाओं को रोजगार देते हैं. आमदनी के निचले आधे हिस्से वाले श्रमिकों को अपनी मजदूरी का 17.3% नुकसान हुआ है जबकि वैश्विक वास्तविक वेतन वृद्धि में 1.6 से 2.2 प्रतिशत के बीच उतार-चढ़ाव हुआ. 2020 की दूसरी तिमाही में 28 यूरोपीय देशों में बिना सब्सिडी के महिलाओं को वेतन में 8.1 प्रतिशत का नुकसान हुआ. वहीं पुरुषों को 5.4 प्रतिशत का नुकसान हुआ.
Yesterday the ILO's new Global Wage Report was released. The #COVID19 pandemic has transformed into an unprecedented global economic crisis, hurting millions of workers and enterprises.
What is the impact of the crisis on wages?Read more: https://t.co/8eHFtNd3lz pic.twitter.com/d6kEtiGS4a— International Labour Organization (@ilo) December 3, 2020
भारत समेत कई देशों में सैलरी देने का संकट
इंटरनेशनल लेबर आर्गनाइजेशन की नई रिपोर्ट के मुताबिक 2006-19 के बीच भारत, चीन, कोरिया, थाईलैंड और वियतनाम के साथ एशिया और प्रशांत क्षेत्र के देशों में सबसे ज्यादा वेतन वृद्धि हुई. रिपोर्ट में बताया गया है कि कोविड-19 के चलते भारत समेत दुनियाभर के देशों में वेतन पर दबाव है. ज्यादातर देशों में वेतन बढ़ने की रफ्तार धीमी हुई या फिर नकारात्मक हो गई है. आईएलओ ने बताया है कि कैसे भारत ने न्यूनतम मजदूरी प्रणाली के जरिए न्यूनतम मजदूरी का कवरेज बढ़ाया है. न्यूनतम मजदूरी प्रणाली के जरिए भारत के राज्यों ने 1,915 से अधिक व्यावसायिक न्यूनतम मजदूरी तय की. इसके साथ ही केंद्रीय क्षेत्र की न्यूनतम मजदूरी भी तय की गई. इसके तहत सभी वेतन भोगियों के दो-तिहाई हिस्से को कवर किया गया. भारत में 2010 से 2019 के बीच 3.9 प्रतिशत की रफ्तार से न्यूनतम मजदूरी बढ़ी है.
कोविड और लॉकडाउन ने बिगाड़े हालात
रिपोर्ट के मुताबिक, कोविड काल में लॉकडाउन के दौरान भारत में संगठित क्षेत्र के कर्मियों का वेतन 3.6 प्रतिशत तक कम हुआ, जबकि असंगठित क्षेत्र के कर्मियों का वेतन 22.6 फीसद तक गिरा है (ये आंकड़े लॉकडाउन के दौरान के हैं). अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नजर डालें तो रिपोर्ट कहती है कि कोविड-19 के चलते दुनिया भर में लोगों के वेतन पर दबाव है और यह वैक्सीन आने पर भी जारी रहेगा. पूरी दुनिया का न्यूनतम औसत मासिक वेतन 9720 है जबकि भारत में ये सिर्फ 4300 रुपये प्रति महीना ही है. श्रीलंका में ये 4940, पाकिस्तान में 9820 और नेपाल में 7920 रुपये है.
रिपोर्ट के मुताबिक इस संकट से महिलाएं और कम-वेतन वाले ज्यादा प्रभावित हो रहे हैं. रिपोर्ट के मुताबिक, जापान, दक्षिण कोरिया और यूके में औसत वेतन वर्ष की पहली छमाही में दबाव में आ गया. ब्राजील, कनाडा, फ्रांस, इटली और अमेरिका में औसत वेतन संतुलित रहा, क्योंकि ज्यादा नुकसान उन लोगों को हुआ, जिनका वेतन सबसे कम था. रिपोर्ट के मुताबिक, उन देशों में जहां रोजगार को संरक्षित करने के लिए मजबूत उपाय किए गए थे, वहां लोगों की नौकरी नहीं गई, लेकिन वेतन कम हुआ. प्रबंधकीय और पेशेवर नौकरियों की तुलना में कम कुशल व्यवसायों में काम के घंटे कम हुए.
चीन में नुकसान नहीं
आईएलओ के महानिदेशक गॉए राइडर कहते हैं कि यह एक लंबी प्रक्रिया है और मुझे लगता है कि यह अशांत करने वाली है. यह और कठिन होने जा रहा है. रिपोर्ट के मुताबिक, दुनिया के ज्यादातर देशों में यह संकट है. सिर्फ चीन इससे बचा है, क्योंकि वहां तेजी से चीजें पटरी पर आ गईं. इसलिए दुनिया के बाकी देशों में महामारी से पहले की स्थिति में आने में अभी काफी वक्त लगेगा. गॉए राइडर का कहना है कि हमें सच्चाई का सामना करना होगा.
ज्यादा संभावना है कि तनख्वाह सब्सिडी और सरकारी हस्तक्षेप कम हो जाएंगे. वेतन पर लगातार दबाव बना रहेगा. पिछले चार साल से विकसित जी-20 अर्थव्यवस्थाओं में आय 4-.9 प्रतिशत की रफ्तार से बढ़ रही थी. वहीं विकासशील जी-20 अर्थव्यवस्थाओं में 3.4-3.5 का इजाफा हो रहा था. वहीं अब दो-तिहाई देशों में वेतन बढ़ने की यह प्रक्रिया या तो धीमी हो गई है या फिर उल्टी हो गई है.