भारत का एकाधिकार खत्म! नेपाल को कारोबार के लिए मिले चार चीनी बंदरगाह
नेपाल भौगोलिक रूप से चीन और भारत के बीच बसा हुआ है और ऐसे में वह व्यापार से लेकर ईंधन तक में भारत पर निर्भर रहता था. लेकिन अब तस्वीर बदल रही है.
News18Hindi
Updated: September 7, 2018, 9:26 PM IST
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नेपाल की सरकार ने शुक्रवार को बताया कि चीन ने उसे अपने चार बंदरगाहों के इस्तेमाल की इजाजत दी है. यह कदम भारत के बड़ा झटका है. अभी तक नेपाल का पूरा व्यापार भारत के बंदरगाहों से होता था. लेकिन नेपाल सरकार के बयान के बाद भारत का एकाधिकार खत्म हो सकता है. बता दें कि पिछले कुछ सालों में नेपाल और चीन के बीच काफी करीबी आई है. नेपाल भौगोलिक रूप से चीन और भारत के बीच बसा हुआ है और ऐसे में वह व्यापार से लेकर ईंधन तक में भारत पर निर्भर रहता था. लेकिन अब तस्वीर बदल रही है.
नेपाल ने भारत से निर्भरता घटाने के लिए चीन से उसके बंदरगाहों का एक्सेस मांगा था. शुक्रवार को दोनों देशों के अधिकारियों ने काठमांडू में एक प्रोटोकॉल तय किया जिससे नेपाल को चीन के तियानजिन, शेनझेन, लियानयुंगांग और झानजियांग बंदरगाहों का एक्सेस मिला. बता दें कि 2015 और 2016 में भारत से लगती सीमा बंद होने के चलते नेपाल में ईंधन और दवाओं की कमी हो गई थी और दाम आसमान पर पहुंच गए थे.
नेपाल के वाणिज्य मंत्रालय के बयान में कहा गया कि चीन ने नेपाल को लांझू, ल्हासा और शीगेत्स के सूखे बंदरगाहों और सड़कों के इस्तेमाल को भी सहमति दे दी है. हालांकि प्रोटोकॉल साइन होने के बाद ही नेपाल यह सुविधाएं ले पाएगा हालांकि यह साफ नहीं हो पाया है कि प्रोटोकॉल पर साइन कब होंगे.
नेपाली वाणिज्य मंत्रालय के अधिकारी रवि शंकर सेंजू ने बताया कि जापान, दक्षिण कोरिया और अन्य उत्तरी एशियाई देशों से आने वाले सामान को चीनी बंदरगाहों से मंगाया जा सकता है. इससे समय और लागत में कमी आएगी. अब नेपाल के पास भारत के दो बंदरगाहों के साथ ही चीन के चार बंदरगाह होंगे.अधिकारियों ने बताया कि अभी मुख्य रूप से कारोबार कोलकाता के रास्ते होता है जिसमें तीन महीने तक लग जाते हैं. भारत ने नेपाली व्यापार के लिए विशाखापट्टनम बंदरगाह को भी खोला है.
हालांकि कारोबारियों का कहना है कि चीन के रास्ते व्यापार में समस्या हो सकती है क्योंकि उस तरफ अभी सड़कें और इंफ्रास्ट्रक्चर में कमी है. साथ ही सबसे नजदीक का बंदरगाह भी सीमा से 2600 किलोमीटर दूर है.
निवेश और मदद के जरिए चीन तेजी से नेपाल में अपने पांव पसार रहा है. इसके चलते भारत के नेपाल में लंबे समय से चले आ रहे दबदबे को चुनौती मिल रही है. नेपाल और चीन अब रेलवे लाइन बिछाने पर भी काम कर रहे हैं.
नेपाल ने भारत से निर्भरता घटाने के लिए चीन से उसके बंदरगाहों का एक्सेस मांगा था. शुक्रवार को दोनों देशों के अधिकारियों ने काठमांडू में एक प्रोटोकॉल तय किया जिससे नेपाल को चीन के तियानजिन, शेनझेन, लियानयुंगांग और झानजियांग बंदरगाहों का एक्सेस मिला. बता दें कि 2015 और 2016 में भारत से लगती सीमा बंद होने के चलते नेपाल में ईंधन और दवाओं की कमी हो गई थी और दाम आसमान पर पहुंच गए थे.
नेपाल के वाणिज्य मंत्रालय के बयान में कहा गया कि चीन ने नेपाल को लांझू, ल्हासा और शीगेत्स के सूखे बंदरगाहों और सड़कों के इस्तेमाल को भी सहमति दे दी है. हालांकि प्रोटोकॉल साइन होने के बाद ही नेपाल यह सुविधाएं ले पाएगा हालांकि यह साफ नहीं हो पाया है कि प्रोटोकॉल पर साइन कब होंगे.
नेपाली वाणिज्य मंत्रालय के अधिकारी रवि शंकर सेंजू ने बताया कि जापान, दक्षिण कोरिया और अन्य उत्तरी एशियाई देशों से आने वाले सामान को चीनी बंदरगाहों से मंगाया जा सकता है. इससे समय और लागत में कमी आएगी. अब नेपाल के पास भारत के दो बंदरगाहों के साथ ही चीन के चार बंदरगाह होंगे.अधिकारियों ने बताया कि अभी मुख्य रूप से कारोबार कोलकाता के रास्ते होता है जिसमें तीन महीने तक लग जाते हैं. भारत ने नेपाली व्यापार के लिए विशाखापट्टनम बंदरगाह को भी खोला है.
हालांकि कारोबारियों का कहना है कि चीन के रास्ते व्यापार में समस्या हो सकती है क्योंकि उस तरफ अभी सड़कें और इंफ्रास्ट्रक्चर में कमी है. साथ ही सबसे नजदीक का बंदरगाह भी सीमा से 2600 किलोमीटर दूर है.
निवेश और मदद के जरिए चीन तेजी से नेपाल में अपने पांव पसार रहा है. इसके चलते भारत के नेपाल में लंबे समय से चले आ रहे दबदबे को चुनौती मिल रही है. नेपाल और चीन अब रेलवे लाइन बिछाने पर भी काम कर रहे हैं.
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