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Pakistan Economic Crisis: कंगाल हो रहे पाकिस्तान की नैया कौन लगाएगा पार? किसी चमत्कार का है इंतजार!

डूबती अर्थव्यवस्था वाले पाकिस्तान को अब तो सिर्फ चमत्कार ही बचा सकती है. (फोटो-न्यूज़18)

डूबती अर्थव्यवस्था वाले पाकिस्तान को अब तो सिर्फ चमत्कार ही बचा सकती है. (फोटो-न्यूज़18)

Pakistan Economic Crisis: पाकिस्तान आर्थिक बदहाली की कगार तक पहुंच गया है और इसे किसी चमत्कार का इंतजार है. पाकिस्तान ऐ ...अधिक पढ़ें

पेशावर: पाकिस्तान विभिन्न मोर्चों पर कई प्रकार की समस्याओं का सामना कर रहा है, लेकिन इसके बढ़ते कर्ज के बोझ की अनदेखी नहीं की जा सकती. यहां महंगाई चरम पर है और विदेशी मुद्रा भंडार गिर चुका है. पाकिस्तान आर्थिक बदहाली की कगार तक पहुंच गया है और इसे किसी चमत्कार का इंतजार है. पाकिस्तान ऐसे मसीहे की तलाश कर रहा है जो इसकी लड़खड़ाती अर्थव्यवस्था को दुरुस्त कर सके. सबसे अधिक आबादी वाला दुनिया का पांचवां देश पाकिस्तान राजनीतिक अस्थिरता, जलवायु परिवर्तन और आर्थिक संकट जैसी विभिन्न समस्याओं से जूझ रहा है और ये समस्याएं इसे श्रीलंका जैसी स्थिति में धकेलने को तैयार खड़ी हैं. कोविड-19 महामारी की मार से उबर रहे पाकिस्तान में आई भीषण बाढ़ ने न केवल भूमि को, बल्कि इसकी जर्जर अर्थव्यवस्था को भी डूबोया.

एशियन डेवलपमेंट बैंक इंस्टीट्यूट की ओर से किये गये नये अध्ययन के अनुसार, देश का ऋण सतत ऋण बन चुका है. पाकिस्तान पर ऋण की तलवार लटक रही है, जो इसकी आयात-आधारित अर्थव्यवस्था को प्रभावित कर रही है तथा इसके दूरगामी आर्थिक और सामाजिक परिणाम हो सकते हैं. पाकिस्तान का बाहरी ऋण और देयता करीब 130 अरब अमेरिकी डॉलर है, जो सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 95.39 प्रतिशत है. आर्थिक तंगी झेल रहे पाकिस्तान को अगले 12 महीनों में करीब 22 अरब डॉलर और साढ़े तीन साल में कुल 80 अरब डॉलर वापस करना है, जबकि इसका विदेशी मुद्रा भंडार केवल 3.2 अरब डॉलर है तथा इसकी आर्थिक विकास दर महज दो प्रतिशत है. फिलहाल पाकिस्तान अपने केंद्रीय बजट का लगभग आधा हिस्सा ऋण चुकाने में इस्तेमाल कर रहा है.

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यद्यपि पाकिस्तान सरकार ने कर्ज का बोझ कम करने के लिए कई प्रकार के प्रयास किये हैं, लेकिन यह आसमान छूती महंगाई की पृष्ठभूमि में काफी नहीं है. पाकिस्तान के ऊपर ऋण का व्यापक बोझ नुकसानप्रद नीतियों और आर्थिक असंतुलन पर दबाव आदि का नतीजा है. इससे निपटने के लिए पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के 22 कार्यक्रमों सहित विभिन्न आर्थिक सहयोगों एवं ऋणों पर निर्भरता बढ़ाता रहा है. देश में सत्ता संभाल चुकी लगातार सरकारें पाकिस्तान को ऋण के चक्रव्यूह से बाहर निकालने के लिए कोई ढांचागत सुधार करने में विफल रही हैं. अल्पावधि के उपाय केवल मौजूदा स्थिति को टाल सकते हैं, जबकि पाकिस्तान को दीर्घकालिक ढांचागत सुधार के उपायों की सख्त जरूरत है. यदि देश भविष्य की चूक से खुद को बचाने को तैयार है, तो इससे पहले कि बहुत देर हो जाए, उसे विशिष्ट विशेषाधिकारों को समाप्त करना होगा.

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