काबुल. तालिबान को अफगानिस्तान की सत्ता पर काबिज हुए करीब 10 महीने बीत गए हैं. इतने वक्त में तालिबान ने केवल 4 देश, रूस, पाकिस्तान, चीन और तुर्केमिनिस्तान में अपने राजदूत भेजे हैं. हालांकि इन देशों ने भी अफगानिस्तान के इस नए शासक को औपचारिक राजनयिक मान्यता नहीं दी है.
बीबीसी की खबर के मुताबिक दिल्ली में मौजूद दूतावास में तो अभी तक अफगानिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति अशरफ गनी की तस्वीर और उनके प्रशासन का झंडा लगा हुआ है. भारत सरकार ने दिल्ली में मौजूद दूतावास को पिछली सरकार के विस्तार के रूप में कार्य करने की अनुमति दी है, 1996 से 2001 के बीच जब तालिबान सत्ता पर काबिज हुई थी तब भी दूतावास ने पूर्व राष्ट्रपति बुरहानुद्दीन रब्बानी की सरकार का प्रतिनिधित्व करना जारी रखा था.
भारत में अफगानिस्तान के दूतावास अधिकारियों का कहना है कि दूतावास अभी भी पुरानी सरकार जिसने उन्हें नियुक्त किया था उन्ही के नियमों का पालन कर रहा है. और हम तालिबान से आदेश नहीं ले रहे हैं.
तालिबान दुनियाभर में अफगान के कामकाज को अपने हाथों में लेना चाहता है, लेकिन वह ऐसा करने में सक्षम नहीं है, आर्थिक तंगी इसके पीछे की एक अहम वजह है. अफगानिस्तान की आर्थव्यवस्था तालिबान के अफगानिस्तान पर कब्जा करने के वक्त से चरमराई हुई है. विदेशी मदद पूरी तरह से बंद पड़ी है और देश की संपत्ति पर भी रोक लगी हुई है, क्योंकि अंतरराष्ट्रीय समुदायों ने मानव अधिकार और महिलाओं के बर्ताव के मुद्दे को लेकर धन रोक दिया है.
दिल्ली दूतावास के अधिकारियों का कहना है कि अन्य देशों में भी अधिकांश समकक्षों का यही कहना है कि केवल एक शर्त पर शासन के नियंत्रण को स्वीकार करेंगे. तालिबान को पहले एक राष्ट्रीय सरकार बनानी चाहिए जो समावेशी हो और महिलाओं को उनके अधिकार देती हो. सत्ता में आते ही तालिबान ने उदार रवैया अपनाने की बात कही थी साथ ही महिलाओं को उनके अधिकार देने का विचार भी पेश किया था. लेकिन ऐसा कुछ हुआ नहीं.
दूतावास अभी भी पूर्व गणराज्य के नाम पर ही वीजा और पासपोर्ट जारी करने और नवीनीकृत करने का काम कर रहा है, जिसे तालिबान सरकार सम्मान के साथ स्वीकार कर रही है, यहां तक कि तालिबान के नेता भी गणराज्य के पासपोर्ट पर ही यात्रा कर रहे हैं. हालांकि तालिबान के सत्ता में आने के बाद से भारत से अफगानिस्तान जाने वाले लोगों में भारी कमी आई है.
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दिल्ली मे अफगान दूतावास का अनुमान है कि करीब 1 लाख अफगान नागरिक भारत में रहते हैं, राजदूत का कहना है कि इनमें से करीब 30,000-35,000 अफगान शरणार्थी और करीब 15000 छात्र हैं.
दूतावास का कहना है कि गनी सरकार के जाने के बाद भारत में अफगान मिशन में उल्लेखनीय गिरावट दर्ज हुई है. एक वक्त था जब यहां से हर हफ्ते 10-15 फ्लाइट जाती थीं. व्यापार की स्थिति बेहतर थी. लेकिन अब कुछ भी नहीं है और राजस्व में 80 फीसदी की गिरावट आई है. यही हाल दूसरे देशों में भी है. मई में अमेरिका ने वॉशिंगटन डीसी के अफगानिस्तान दूतावास और न्यूयॉर्क और लॉस एंजेल्स के कॉन्सुलेट को अपने अधिकार में ले लिया था क्योंकि दूतावास बुरी तरह आर्थिक अभाव से जूझ रहा था और स्थिति बुरी तरह से अस्थिर थी.
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भारत में भी दूतावास पैसों पैसों के लिए मोहताज हो रहा है. दिल्ली में दूतावास के पास खुद की इमारत है इसलिए मुख्य भवन और स्टाफ क्वार्टर के किराए के पैसे बच रहे हैं. वीजा शुल्क जैसे कांसुलर कामों की बदौलत उनकी कमाई हो रही है. यही नहीं दिल्ली, मुंबई, हैदराबाद में 21 अफगान राजनयिकों के वेतन में भारी कटौती की गई है.
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Tags: Economic crisis, Sri lanka, Taliban
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