नई दिल्ली. ‘क्या मुझे घायल होना चाहिए, मेरा आपसे एक विनती है. मेरे सिर में दो बार गोली मार दो. मैं तालिबान के सामने कभी आत्मसमर्पण नहीं करना चाहता.’ ये कहना है अफगानिस्तान के पूर्व उप-राष्ट्रपति और कार्यवाहक राष्ट्रपति अमरुल्ला सालेह का अपने गार्ड से, जो इस वक्त पंजशीर में तालिबान से लोहा ले रहे हैं. ऐसा लगता है कि पंजशीर की लड़ाई में अमरुल्ला सालेह अकेले ही संघर्ष कर रहे हैं, लेकिन फिर भी तालिबान के खिलाफ विरोधी बल की अगुवाई कर रहे अफगानिस्तान के कार्यवाहक राष्ट्रपति किसी तरह की कोई शिकायत नहीं कर रहे हैं.
डेली मेल के लिए लिखते हुए, 48 वर्षीय सालेह ने इस बात का उल्लेख किया कि कैसे काबुल कट्टरपंथियों के कब्जे में आ गया. उन्होंने लिखा, ‘काबुल पर तालिबान का नियंत्रण स्थापित होने से एक रात पहले पुलिस प्रमुख ने मुझे यह कहने के लिए बुलाया कि जेल के अंदर विद्रोह हो गया था और तालिबानी कैदी भागने की कोशिश कर रहे थे. मैंने गैर-तालिबानी कैदियों का एक नेटवर्क बनाया था. मैंने उन्हें बुलाया और उन्होंने जेल के भीतर मेरे आदेश पर तालिबानी कैदियों के खिलाफ विद्रोह शुरू कर दिया.’
अमरुल्लाह सालेह को सता रहा नरसंहार का डर, तालिबान के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र से मांगी मदद
सालेह ने कहा कि उन्होंने 15 अगस्त की सुबह तत्कालीन रक्षा मंत्री बिस्मिल्लाह खान मोहम्मदी, तत्कालीन गृह मंत्री और उनके प्रतिनिधियों से संपर्क करने की कोशिश की, लेकिन वे उन्हें नहीं ढूंढ सके. उन्होंने बताया, ‘मुझे दोनों मंत्रालयों में बहुत ईमानदान और प्रतिबद्ध अधिकारी मिले जिन्होंने मुझे बताया कि कैसे वे रिजर्व या कमांडो को अग्रिम मोर्चे पर तैनात करने में सक्षम नहीं हैं.’
सालेह ने कहा कि वह ‘हताशा की घड़ी’ में शहर में कहीं भी तैनात अफगान सैनिकों को खोजने में असमर्थ थे. वे कहते हैं, ‘फिर मैंने काबुल के पुलिस प्रमुख से बात की, जो एक बहुत ही बहादुर व्यक्ति था और वह जहां भी हो मैं उसे शुभकामनाएं देता हूं. उसने मुझे सूचित किया कि शहर का पूर्वी क्षेत्र तालिबान के कब्जे में आ गया था, दक्षिण में दो जिले भी हाथ से निकल चुके थे और नजदीकी प्रांत वर्दक भी तालिबान के नियंत्रण में था.’ उन्होंने आगे बताया, ‘पुलिस प्रमुख ने कमांडो की तैनाती में मेरी मदद मांगी. मैंने उनसे पूछा कि क्या उनके पास जो भी संसाधन हैं, क्या वह एक घंटे के लिए मोर्चा संभाल सकते हैं.’
सालेह कहते हैं कि वह पुलिस प्रमुख की मदद के लिए किसी भी सैनिक को इकट्ठा करने में सक्षम नहीं थे. इसलिए उन्होंने राष्ट्रपति भवन और पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार हमदुल्ला मोहिब से संपर्क करने की कोशिश की, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. वे कहते हैं, ‘मैंने महल में फोन किया. मैंने अपने राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार को यह कहने के लिए मैसेज किया कि हमें कुछ करना होगा. मुझे किसी से कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली और 15 अगस्त की सुबह 9 बजे तक काबुल भय से कांप रहा था.’
अफगानिस्तान में विद्रोही गुट का दावा- पंजशीर में करीब 600 तालिबान लड़ाके ढेर
काबुल छोड़ने से पहले, सालेह ‘पत्नी और बेटियों की तस्वीरें नष्ट करने’ के लिए घर गए. उन्होंने कहा, ‘फिर मैंने अपने घर का दौरा किया और अपनी पत्नी और अपनी बेटियों की तस्वीरें नष्ट कर दीं. मैंने अपना कंप्यूटर और कुछ सामान इकट्ठा किया. मैंने अपने चीफ गार्ड, रहीम से मेरी कुरान पर हाथ रखने के लिए कहा.’ मैंने उससे कहा, ‘हम पंजशीर जा रहे हैं और सड़क को पहले ही सुरक्षित कर लिया गया है.’ उन्होंने आगे कहा, हम अपने रास्ते में आने वाली मुश्किलों से लड़ेंगे. हम इससे एक साथ लड़ेंगे. लेकिन अगर मैं घायल हो गया, तो मेरी आपसे एक विनती है. मेरे सिर में दो गोली मार देना. मैं कभी तालिबान के सामने आत्मसमर्पण नहीं करना चाहता.’
सालेह का कहना है कि वे कुछ बख्तरबंद वाहनों और बंदूकें लगी हुई दो पिकअप ट्रकों के काफिले में सवार हो गए. पंजशीर जाते समय काफिले पर दो बार हमला भी हुआ. वे कहते हैं, ‘हमने बड़ी मुश्किल से उत्तरी दर्रे को पार किया क्योंकि इस क्षेत्र में कानून का शासन नहीं रह गया था. ठग.. चोर.. तालिबान.. हम पर दो बार हमला हुआ, लेकिन हम बच गए. हमने दृढ़ संकल्प के साथ अपने रास्ते में आने वाली तकलीफों से संघर्ष किया.’ उन्होंने आगे कहा, ‘जब हम पंजशीर पहुंचे, तो हमें एक संदेश मिला कि समुदाय के बुजुर्ग मस्जिद में एकत्र हुए हैं. मैंने उनसे एक घंटे तक बात की और बाद में उनमें से सभी हमारे साथ थे.’
ब्रेकिंग न्यूज़ हिंदी में सबसे पहले पढ़ें News18 हिंदी | आज की ताजा खबर, लाइव न्यूज अपडेट, पढ़ें सबसे विश्वसनीय हिंदी न्यूज़ वेबसाइट News18 हिंदी |
Tags: Afghanistan, Amrullah Saleh, Panjshir, Taliban