2 लाख 'जिगर के टुकड़े' यूं ही बांट दिए, पैरेंट्स को बच्चों के बारे में पता तक नहीं, साउथ कोरिया में बेबी एडॉप्शन में अजब घोटाला
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Agency:ए पी
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दक्षिण कोरिया में 2 लाख बच्चों को बिना सही रिकॉर्ड और प्रमाणपत्र के गोद दिया गया, जिससे यह दुनिया का सबसे शर्मनाक बच्चा गोद घोटाला बन गया. कई बच्चों को अनाथ बताकर विदेश भेजा गया.
दक्षिण कोरिया में बच्चों को गोद लेने में कई तरह की अनियमितता बरती गई.भारत में बच्चों को गोद लेने की बात हो तमाम तरह की दिक्कतें सामने आ जाती हैं. इतनी जांच कराई जाती है कि सामने वाला परेशान ही हो जाए. लेकिन साउथ कोरिया में अजीबोगरीब घोटाला सामने आया है. वहां 2 लाख बच्चों को यूं ही बांट दिया गया. ना सही रिकार्ड, ना सही प्रमाणपत्र, इसे दुनिया में सबसे शर्मनाक बच्चा गोद घोटाला बताया जा रहा है इसकी कहानी जान के आप भी हैरान हो जाएंगे.
दक्षिण कोरिया में बच्चा गोद लेने के तरीकों की जांच कर रही जांच टीम (Truth and Reconciliation Commission) ने जब खंगालना शुरू किया तो जो बातें सामने आईं, उसे देखकर हैरान रह गए. पता चला कि देश की एजेंसियों ने बच्चों को गोद लेने के लिए विदेश भेजने में जबरदस्त जल्दबाजी दिखाई. इसमें उनकी हेल्थ और मानवाधिकार का भी ख्याल नहीं रखा गया. कई बच्चों के बर्थ रिकॉर्ड में हेराफेरी की गई, बच्चों को अनाथ बताया जबकि उनके माता-पिता पहले से ही थे. जिन्हें बच्चे सौंपे गए, उनके बारे में भी पूरी जांच नहीं की गई. बच्चों को जबरन गोद देने के लिए मजबूर किया गया.
कैसे हुई घोटाले की शुरुआत
दक्षिण कोरिया ने 1950 और 1960 के दशक में कोरियाई युद्ध के बाद विदेशी गोद लेने को बढ़ावा देना शुरू किया था. उस समय देश आर्थिक रूप से कमजोर था और सामाजिक कल्याण प्रणाली सीमित थी. इस दौरान हजारों बच्चों को विदेशों, खासकर अमेरिका, यूरोप और ऑस्ट्रेलिया में गोद लेने के लिए भेजा गया. यह प्रक्रिया शुरू में मानवीय सहायता के रूप में देखी गई, लेकिन समय के साथ यह एक व्यवसाय में बदल गई. आयोग के अनुसार, 1964 से 1999 तक लगभग 2 लाख से अधिक बच्चे विदेशों में गोद लिए गए, जो दक्षिण कोरिया को दुनिया में सबसे बड़े “बच्चा निर्यातक” देशों में से एक बनाता है.
दक्षिण कोरिया ने 1950 और 1960 के दशक में कोरियाई युद्ध के बाद विदेशी गोद लेने को बढ़ावा देना शुरू किया था. उस समय देश आर्थिक रूप से कमजोर था और सामाजिक कल्याण प्रणाली सीमित थी. इस दौरान हजारों बच्चों को विदेशों, खासकर अमेरिका, यूरोप और ऑस्ट्रेलिया में गोद लेने के लिए भेजा गया. यह प्रक्रिया शुरू में मानवीय सहायता के रूप में देखी गई, लेकिन समय के साथ यह एक व्यवसाय में बदल गई. आयोग के अनुसार, 1964 से 1999 तक लगभग 2 लाख से अधिक बच्चे विदेशों में गोद लिए गए, जो दक्षिण कोरिया को दुनिया में सबसे बड़े “बच्चा निर्यातक” देशों में से एक बनाता है.
माता-पिता से ऐसे छीन लिए बच्चे
आयोग की जांच में सामने आया कि गोद लेने की प्रक्रिया में शामिल एजेंसियों और अधिकारियों ने बड़े पैमाने पर जन्म रिकॉर्ड में हेरफेर किया. कई मामलों में बच्चों को अनाथ के रूप में दर्ज किया गया, जबकि उनके माता-पिता जीवित थे. वे नहीं चाहते थे कि उनका बच्चा देश छोड़कर जाए, इसके बावजूद उनसे लेकर लालच देकर बच्चों को छीन लिया गया. कई पेरेंट्स को ये तक बता दिया गया कि उनका बच्चा मर गया है. जबकि वह बच्चा जिंदा था. कुछ को ये कहा गया कि बच्चे को बेहतर देखभाल के लिए भेजा जा रहा है. लेकि फर्जी दस्तावेजों के आधार पर बच्चों को विदेशी परिवारों को सौंप दिया गया. इस प्रक्रिया में बच्चों की पहचान, जन्म तिथि और पारिवारिक इतिहास को बदल दिया गया, जिससे उनकी मूल जड़ों का पता लगाना असंभव हो गया.
आयोग की जांच में सामने आया कि गोद लेने की प्रक्रिया में शामिल एजेंसियों और अधिकारियों ने बड़े पैमाने पर जन्म रिकॉर्ड में हेरफेर किया. कई मामलों में बच्चों को अनाथ के रूप में दर्ज किया गया, जबकि उनके माता-पिता जीवित थे. वे नहीं चाहते थे कि उनका बच्चा देश छोड़कर जाए, इसके बावजूद उनसे लेकर लालच देकर बच्चों को छीन लिया गया. कई पेरेंट्स को ये तक बता दिया गया कि उनका बच्चा मर गया है. जबकि वह बच्चा जिंदा था. कुछ को ये कहा गया कि बच्चे को बेहतर देखभाल के लिए भेजा जा रहा है. लेकि फर्जी दस्तावेजों के आधार पर बच्चों को विदेशी परिवारों को सौंप दिया गया. इस प्रक्रिया में बच्चों की पहचान, जन्म तिथि और पारिवारिक इतिहास को बदल दिया गया, जिससे उनकी मूल जड़ों का पता लगाना असंभव हो गया.
पेरेंट्स का हक छीना
कई मामलों में तो बच्चों को उनकी सहमति के बिना और उनके माता-पिता की जानकारी के बिना गोद दे दिया गया. कई माता-पिता ने बाद में दावा किया कि उन्हें मजबूर किया गया या धोखा दिया गया. इसके अलावा, गोद लिए गए बच्चों को अपनी सांस्कृतिक पहचान और मूल परिवार से जोड़ने का कोई अवसर नहीं मिला. आयोग ने यह भी पाया कि गोद लेने वाली एजेंसियों ने मुनाफे के लिए इस प्रक्रिया को तेज किया, जिसमें बच्चों की भलाई को पूरी तरह से नजरअंदाज किया गया.
कई मामलों में तो बच्चों को उनकी सहमति के बिना और उनके माता-पिता की जानकारी के बिना गोद दे दिया गया. कई माता-पिता ने बाद में दावा किया कि उन्हें मजबूर किया गया या धोखा दिया गया. इसके अलावा, गोद लिए गए बच्चों को अपनी सांस्कृतिक पहचान और मूल परिवार से जोड़ने का कोई अवसर नहीं मिला. आयोग ने यह भी पाया कि गोद लेने वाली एजेंसियों ने मुनाफे के लिए इस प्रक्रिया को तेज किया, जिसमें बच्चों की भलाई को पूरी तरह से नजरअंदाज किया गया.
अपने माता-पिता खोज रहे लोग
इस खुलासे से पूरी दुनिया में हलचल मची हुई है. कई गोद लिए गए व्यक्तियों ने, जो अब वयस्क हो चुके हैं, दक्षिण कोरिया में अपने परिवारों की खोज शुरू कर दी है्. कुछ ने सरकार और गोद लेने वाली एजेंसियों के खिलाफ मुकदमे भी दायर किए हैं. मार्च 2025 तक, दक्षिण कोरियाई सरकार ने इस मुद्दे पर आधिकारिक बयान जारी नहीं किया है, लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि यह मामला देश की छवि और नीतियों पर लंबे समय तक असर डालेगा.
इस खुलासे से पूरी दुनिया में हलचल मची हुई है. कई गोद लिए गए व्यक्तियों ने, जो अब वयस्क हो चुके हैं, दक्षिण कोरिया में अपने परिवारों की खोज शुरू कर दी है्. कुछ ने सरकार और गोद लेने वाली एजेंसियों के खिलाफ मुकदमे भी दायर किए हैं. मार्च 2025 तक, दक्षिण कोरियाई सरकार ने इस मुद्दे पर आधिकारिक बयान जारी नहीं किया है, लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि यह मामला देश की छवि और नीतियों पर लंबे समय तक असर डालेगा.
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Gyanendra Mishra
Mr. Gyanendra Kumar Mishra is associated with hindi.news18.com. working on home page. He has 20 yrs of rich experience in journalism. He Started his career with Amar Ujala then worked for 'Hindustan Times Group...और पढ़ें
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