वाशिंगटन. अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने 1973 में रो बनाम वेड मामले में अपने एक फैसले में महिलाओं को दिए गए गर्भपात के संवैधानिक अधिकार को खत्म कर दिया है. इसके बाद वहां सेम-सेक्स मैरिज और गर्भनिरोधकों के उपयोग के अधिकार के भी खत्म होने की अटकलें लगाई जाने लगी हैं. उदार सामाजिक नियमों के पक्षधर लोगों की राय है कि अब रूढ़िवादियों के लिए समलैंगिक विवाह को चुनौती देने का रास्ता साफ हो गया है. इसके लिए रूढ़िवादी जल्द ही अपनी मांग को सामने रखने के लिए आगे आ सकते हैं.
एनडीटीवी डॉटकॉम की एक खबर के मुताबिक इस आशंका को सुप्रीम कोर्ट के फैसले से भी बल मिला है. जिसमें एक न्यायाधीश जस्टिस क्लेरेंस थॉमस ने यह साफ कर दिया कि संविधान के 18वीं शताब्दी के निर्माताओं ने जिन अन्य अधिकारों का स्पष्ट उल्लेख नहीं किया है, ‘भविष्य के मामले’ उन अधिकारों को कम कर सकते हैं. जस्टिस थॉमस ने सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसलों का जिक्र करते हुए कहा कि इन्होंने ही गर्भनिरोधक, समान-सेक्स और समान-लिंग विवाह को वैध बनाया. सुप्रीम कोर्ट के फैसलों ने उन अधिकारों को स्थापित किया जिन्हें बिल ऑफ राइट्स (Bill or Rights) में स्पष्ट रूप से शामिल नहीं किया गया था.
उदारवादियों का मानना है कि जस्टिस थॉमस की राय रूढ़िवादियों के लिए समलैंगिक विवाह को चुनौती देने के लिए तुरंत एक अभियान शुरू करने के लिए संकेत का काम कर सकती है. कुछ लोगों को इस बात का संदेह है कि स्थानीय अधिकारी धार्मिक आपत्तियों के आधार पर समलिंगी जोड़ों को विवाह प्रमाणपत्र देने से इनकार करना शुरू कर सकते हैं. जिससे नई चुनौतियां पैदा होना शुरू हो सकती हैं. केंटकी के किम डेविस 2015 में ऐसा करने की कोशिश करने के बाद रूढ़िवादी लोगों के प्रिय बन गए थे. आशंका है कि भविष्य के ऐसे दर्जनों किम डेविस सामने आ सकते हैं. जल्द ही या बाद में ये मामले सुप्रीम कोर्ट में पहुंचेंगे और अदालत फिर समलैंगिक विवाह के अधिकार को समाप्त कर सकती है.
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