अमेरिकी-भारतीय वैज्ञानिकों ने 'मंगल' पर पानी से ईंधन तैयार करने की विधि खोजी

अमेरिकी भारतीय वैज्ञानिकों ने मंगल ग्रह पर पानी से ईंधन बनाने की प्रणाली विकसित की.(प्रतीकात्मक तस्वीर: Pixabay)
US-Indian Scientist Sucess: मंगल (Mars) ग्रह पर मौजूद खारे पानी (Saline Water) से ईंधन (Fuel) तैयार किया जा सकेगा. अमेरिका में भारतीय मूल के वैज्ञानिक (US-Indian Scientist) की एक टीम ने पानी से ऑक्सीजन और हाइड्रोजन ईंधन प्राप्त करने की टेक्निक ईजाद कर ली है.
- News18Hindi
- Last Updated: December 2, 2020, 7:16 PM IST
वाशिंगटन. मंगल (Mars) ग्रह पर मौजूद खारे पानी (Saline Water) से ईंधन (Fuel) तैयार किया जा सकेगा. अमेरिका में भारतीय मूल के वैज्ञानिक (US-Indian Scientist) की एक टीम ने पानी से ऑक्सीजन और हाइड्रोजन ईंधन प्राप्त करने की टेक्निक ईजाद कर ली है. वैज्ञानिकों ने पाया कि मंगल ग्रह का तापमान बहुत कम है और इसके बावजूद पानी जमता नहीं है. वैज्ञानिकों ने इस आधार पर यह निष्कर्ष निकाला कि पानी में बहुत अधिक नमक है.
प्रो. विजय रमानी ने टीम का किया नेतृत्व
अमेरिका स्थित वाशिंगटन विश्वविद्यालय में प्रोफेसर विजय रमानी ने अनुसंधानकर्ताओं की इस टीम का नेतृत्व किया और उन्होंने इस प्रणाली का परीक्षण मंगल के वातावरण की परिस्थितयों के हिसाब से शून्य से 36 डिग्री सेल्सियस के नीचे के तापमान में किया. वैज्ञानिकों ने कहा कि बिजली की मदद से पानी के यौगिक को ऑक्सजीन और हाइड्रोजन ईंधन में तब्दील करने के लिए पहले पानी से उसमें घुली लवण को अलग करना पड़ता है, जो इतनी कठिन परिस्थिति में बहुत लंबी और खर्चीली प्रक्रिया होने के साथ मंगल ग्रह के वातावरण के हिसाब से खतरनाक भी होगी.
प्रोफेसर रमानी का ये है कहना...प्रो. रमानी ने कहा कि मंगल की परिस्थिति में पानी को दो द्रव्यों में खंडित करने वाले हमारा इलेक्ट्रोलाइजर मंगल ग्रह और उसके आगे के मिशन की रणनीतिक गणना को एकदम से बदल देगा. यह प्रौद्योगिकी पृथ्वी पर भी सामान रूप से उपयोगी है, जहां पर समुद्र ऑक्सीजन और ईंधन (हाइड्रोजन) का व्यवहार्य स्रोत है.
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वैज्ञानिकों का दावा है कि रमानी की प्रयोगशाला में तैयार प्रणाली, मॉक्सी के बराबर ऊर्जा इस्तेमाल कर 25 गुना अधिक ऑक्सीजन का उत्पादन कर सकती है. इसके साथ ही यह हाइड्रोजन ईंधन का भी उत्पादन हो सकता है, जिसका इस्तेमाल अंतरिक्ष यात्री वापसी के लिए कर सकते हैं.
प्रो. विजय रमानी ने टीम का किया नेतृत्व
अमेरिका स्थित वाशिंगटन विश्वविद्यालय में प्रोफेसर विजय रमानी ने अनुसंधानकर्ताओं की इस टीम का नेतृत्व किया और उन्होंने इस प्रणाली का परीक्षण मंगल के वातावरण की परिस्थितयों के हिसाब से शून्य से 36 डिग्री सेल्सियस के नीचे के तापमान में किया. वैज्ञानिकों ने कहा कि बिजली की मदद से पानी के यौगिक को ऑक्सजीन और हाइड्रोजन ईंधन में तब्दील करने के लिए पहले पानी से उसमें घुली लवण को अलग करना पड़ता है, जो इतनी कठिन परिस्थिति में बहुत लंबी और खर्चीली प्रक्रिया होने के साथ मंगल ग्रह के वातावरण के हिसाब से खतरनाक भी होगी.
प्रोफेसर रमानी का ये है कहना...प्रो. रमानी ने कहा कि मंगल की परिस्थिति में पानी को दो द्रव्यों में खंडित करने वाले हमारा इलेक्ट्रोलाइजर मंगल ग्रह और उसके आगे के मिशन की रणनीतिक गणना को एकदम से बदल देगा. यह प्रौद्योगिकी पृथ्वी पर भी सामान रूप से उपयोगी है, जहां पर समुद्र ऑक्सीजन और ईंधन (हाइड्रोजन) का व्यवहार्य स्रोत है.
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वैज्ञानिकों का दावा है कि रमानी की प्रयोगशाला में तैयार प्रणाली, मॉक्सी के बराबर ऊर्जा इस्तेमाल कर 25 गुना अधिक ऑक्सीजन का उत्पादन कर सकती है. इसके साथ ही यह हाइड्रोजन ईंधन का भी उत्पादन हो सकता है, जिसका इस्तेमाल अंतरिक्ष यात्री वापसी के लिए कर सकते हैं.