द्वितीय विश्वयुद्ध 2 सितंबर 1945 को जापान के आत्मसमर्पण के साथ समाप्त हुआ, पर तबतक इसने 60 मिलियन लोगों की जानें ले ली, तो कई बड़े शहरों को तबाह कर दिया। इस युद्ध में सभी देशों ने अपना सबकुछ झोंक दिया। इस दौरान तमाम घातक हथियारों का इस्तेमाल हुआ। अपनी इस पेशकश में आईबीएनखबर.कॉम 10 ऐसे ही हथियारों के बारे में जानकारी दे रहा है, जिन्होंने द्वितीय विश्वयुद्ध में अपनी भूमिका शानदार तरीके से निभाई।
टी-34 टैंक, सोवियत रूस: रूस की सबसे बड़ी ताकत के तौर पर टी-34 टैंक ने दुश्मनों की कमर तोड़ दी। सबसे पहले ये टैंक 1940 में लड़ाई के मैदान में उतरे, पर 1941 में ये पूरी तरह से जर्मन आक्रमण को रोकने के लिए आ गए। जर्मनी सेना को टी-34 टैंकों का तोड़ निकालने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंकनी पड़ी, पर रूस के बनाए 57,000 टी-34 टैंक जर्मनी पर भारी पड़े। द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद भी तमाम देशों ने टी-34 टैकों का इस्तेमाल किया।
एयरक्राफ्ट करियर: द्वितीय विश्वयुद्ध में एयरक्राफ्ट करियर निर्णायक भूमिका में उभरे। किसी भी नौसेना के लिए अब बड़ी तोपों से ज्यादा पानी के जहाज से उड़ान भर सकने वाले छोड़े फाइटर प्लेन महत्वपूर्ण हो चले थे। जापान ने अपने ताकत नौसैनिक बेड़े तो 7 दिसंबर 1941 में अमेरिकी अड्डे पर्ल हॉर्बर में जो तबाही मचाई, उसकी कहानी सुनकर आज भी रोंगटे खड़े हो जाते हैं। जापान ने बिना किसी को भनक लगे 6 युद्धपोतों को बेस बनाकर 353 एयरक्राफ्टों के साथ पर्ल हॉर्बर पर हमला बोल दिया। अमेरिकी सेना बेखबर थी। नतीजा ये हुआ कि अमेरिका को 49 नौसैनिक जहाजों को पूरी तरह से खोना पड़ा, तो कई बुरी तरह से तबाह हुए।
पी-51 मुस्टांग: अमेरिका द्वितीय विश्वयुद्ध में जर्मनी द्वारा उसके जहाज को पानी में डुबोए जाने के बाद शामिल हुआ। दिसंबर 1943 से मुस्टांग विमानों ने जर्मनी में घुसकर हमले शुरु कर दिए। पी-51 मुस्टांग लड़ाकू विमान इतने सफल रहे कि एक पी-51 मुस्टांग विमान खोने के बदले उसने दुश्मनों के 19 विमान तबाह किए। इसने द्वितीय विश्वयुद्ध में लड़ाकू विमानों की ताकत में बड़ा अंतर पैदा कर दिया।
88 एमएम गन: नाजी जर्मनों की सबसे बड़ी ताकत के तौर पर 88 एमएम की गन उनके पास रही। सन 1936 के स्पेन के गृहयुद्ध में 88एमएम गन के साथ जर्मन अपनी ताकत दिखा चुके थे। 88 एमएम गन लड़ाकू विमानों को भी निशाना बना सकने में सक्षम थी, जो कई किलोमीटर तक मार करते थे। जर्मनी सेना ने पूरे विश्वयुद्ध में 18 हजार 88 एमएम गनों का इस्तेमाल कर दुश्मनों को पश्त करने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
एम4 शेरमन टैंक: भले ही एम4 शेरमन टैंक सबसे अच्छे टैंक नहीं थे, पर एम4 शेरमन टैंक ने अमेरिकियों को जबरदस्त सफलता दिलाई। एम4 शेरमन टैंक की लागत अन्य टैंकों की तुलना में कम थी, तो इनकी तेजी अन्यों से कहीं ज्यादा थी। एम4 शेरमन टैंकों का इस्तेमाल सिर्फ अमेरिकी सेना ने ही नहीं, बल्कि ब्रिटिश और रूसी सेना ने भी किया। एम4 शेरमन टैंकों के इस्तेमाल की वजह से जर्मनी को पश्चिमी मोर्चे से पीछे धकेलने में मित्र राष्ट सफल हुए। एम4 शेरमन टैंक का इस्तेमाल अमेरिका ने जापान के खिलाफ लड़ाई में भी किया।
हॉकर हरिकेन: हॉकर हरिकेन का इस्तेमाल लड़ाकू विमान के तौर पर तो इंग्लैंड ने किया ही, साथ ही बमवर्षक और टैंकों को बर्बाद करने में भी हॉकर हरिकेन ने अहम भूमिका निभाई। ब्रिटेन पर जर्मनी के हवाई हमले में हॉकर हरिकेन ने ही ब्रिटेन को हारने से बचाया। हालांकि हॉकर हरिकेन जर्मनी के स्पिटफायर लड़ाकू विमानों की तुलना में थोड़े कमजोर थे, फिर भी ज्यादा संख्या में होने की वजह से ब्रिटेन की जीत की वजह बन गए।
यू बोट्स: द्वितीय विश्वयुद्ध के समय जर्मनों की नौसैनिक ताकत बहुत ज्यादा नहीं थी, फिर भी यू बोट्स के दम पर जर्मनी ने सबकी नाक में दम कर दिया। भले ही 1943 में मित्र राष्ट्रों ने अटलांटिक नौसैनिक युद्ध में बाजी मारी हो, पर रिसर्च के मुताबिक इसमें मित्र राष्ट्रों को 26.4 बिलियन डॉलर का खर्च आया, वहीं जर्मनी को हार के बावजूद महज 2.86 बिलियन डॉलर का नुकसान हुआ। ऐसे में यू-बोट्स बाकियों के मुकाबले न सिर्फ तेज निकली, बल्कि बेहद कम लागत वाली भी।
एव्रो लंकास्टर बम्बर: एव्रो लंकास्टर लड़ाकू विमान दो इंजन वाले लड़ाकू विमान थे, जो 1942 में सेवा में शामिल हुए। एव्रो लंकास्टर बम्बर विमानों ने कई विशेष हवाई हमलों में ब्रिटेन की तरफ से मुख्य भूमिका अदा की। हालांकि ये ज्यादा सफल इसलिए नहीं हुए, क्योंकि सीधे लड़ाई में शामिल थे। ब्रिटेन ने कुल 7000 एव्रो लंकास्टर बम्बर विमानों को बनाया, जिसमें से लगभग आधे द्वितीय विश्वयुद्ध में दुश्मनों द्वारा मार गिराए गए। फिर भी एव्रो लंकास्टर बम्बर विमानों ने ब्रिटिश वायुसेना को काफी ताकत दी।
कत्यूषा रॉकेट लांचर: कत्यूषा रॉकेट लांचर ने हिटलर के दुनिया को फतह करने के सपने को तोड़ दिया था। हिटलर की सेनाओं ने जब आगे बढ़कर 1941 में मॉस्को और लेनिनग्राड का घेरा डाला, तो रूसी सेनाएं लगभग दम तोड़ रही थी। पर ट्रको के पीछे रखे जाने और तेजी से कहीं भी लाने ले जाने में सक्षम कत्यूषा रॉकेट लांचरों की मदद से रूसियों ने जर्मनों को मुंहतोड़ जवाब दिया। बाद में रूसियों ने कत्यूषा रॉकेट लांचर के भारी संस्करण भी बनाए। पूरे द्वितीय विश्वयुद्ध में जर्मन सेना कत्यूषा रॉकेट लांचर का तोड़ नहीं निकाल पाई।
हिगिन बोट: अमेरिकियों की कामयाबी की सबसे बड़ी वजह हिगिन बोट रहे। अमेरिकी डिजायनर एंड्र्यू हिगिन ने स्टील की कमी होने के बाद लकड़ी की मदद से इन नावों को बनाया, जिसपर बैठकर सैनिक कहीं भी उतर सकते थे। सैनिकों को कहीं पहुंचाने के लिए बंदरगाहों की जरुरत खत्म हो गई थी। अमेरिकी राष्ट्रपति ड्विट एसेनहॉवर ने 1964 में कहा कि एंड्र्यू हिगिन ने अमेरिका के लिए युद्ध जीता। अमेरिका ने पूरे युद्ध में लकड़ी से बने 23 हॉजार हिगिन बोटों की मदद ली, और मनचाही जगहों पर समंदर के रास्ते सैनिकों को भेजा।