बिहार में बाढ़ से अब तक 93 लोगों की जान चली गई है तो 45 लाख से ज्यादा की आबादी प्रभावित. जबकि सरकार बेघर लोगों को खाना उपलब्ध कराने का प्रयास कर रही है, लेकिन बाढ़ पीड़ितों ने सरकारी खाना की गुणवत्ता पर सवाल उठाया है. अररिया के एक बुजुर्ग बाढ़ पीड़ित ने तो अपनी थाली में मिला सरकारी हलवा दिखाकर कहा कि साहब इसे तो मेरी बकरी ने भी नहीं खाया. उसने इसे छोड़ दिया तो हम या हमारे बच्चे कैसे खायेंगे?
अररिया शहरी क्षेत्र के वार्ड नंबर 11 के मोहम्मद कलाम की प्लास्टिक की थाली का हलवा बेहद की खराब था और उनकी शिकायत जायज थी. अररिया जिले में अकेले 193 स्कूल-कालेज और आंगनबाड़ी केंद्रों में कम्युनिटी किचेन चल रहे हैं पर जो चाहिए वह सुविधा कहीं नहीं है. जबकि खानापूर्ति या कागजी काम ज्यादा होने की शिकायतें हमेशा रहती हैं. यही नहीं, इस बाबत अधिकारी कहते हैं कि शिकायत मिलते ही उसे दूर करने की कोशिश होती है.
बाढ़ पीड़ितों को जैसा खाना मिला है और जिस तरह उनकी सबूत के साथ शिकायत आई है वह सरकार के लोक कल्याणकारी अवधारणा की पोल खोल रही है. पूरे पूर्णिया प्रमंडल में सैकड़ों कम्युनिटी किचेन लोगों को खाना दे रहे हैं, लेकिन खाना बेहद खराब मिल रहा है. यही वजह है कि जो हलवा बकरियों को पसंद नहीं है भला वो किसी इंसान के किस काम का?
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