बिहार राज्य के नालंदा से करीबन 7 किलोमीटर दूरी पर रुक्मिणी स्थान नाम की एक जगह है. यहां पर आपको एक तथागत बुद्ध की एक भव्य प्राचीन मूर्ति देखने को मिलेगी. साथ ही वहां पर आपको प्राचीन बिरार के अवशेष देखने को मिलेंगे. नालंदा के जगदीशपुर गांव में हुए पिछले दिनों भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के द्वारा किए गए उत्खनन से यह स्पष्ट हो गया है कि जिसे स्थानीय लोग रुक्मिणी स्थान के नाम से जानते थे, वह वास्तव में पूरी तरह एक बौद्ध स्थल है. (फोटो: अभिषेक कुमार)
बता दें कि यह ऐतिहासिक धरोहर 450 ई0 पूर्व कुमारगुप्त, हर्षवर्धन और पाल शासक से जुड़ा हुआ यह टीला है. इस टीले की खुदाई के दौरान भगवान बुद्ध की प्राचीनकालीन प्रतिमा भी मिली थी, जो इसी मंदिर में स्थापित की गई थी. इसके अलावा कई स्तूप, एक दर्जन से अधिक कमरा, गलियारा, मिट्टी के बर्तन, जले हुए टुकड़े मिले थे.
दरअसल, यह जो रुक्मिणी स्थल है या फिर तथागत बुद्ध की मूर्ति है, इसे पहले वहां के स्थानीय लोग रुक्मिणी माता समझकर उसकी पूजा अर्चना किया करते थे. लेकिन, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के द्वारा किए गए उत्खनन कार्य हुआ है, इससे लोगों को यह पता चला है की यह पूरी तरह बौद्ध स्थल है.
इसी के साथ भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के जन्मदाता एलेक्जेंडर कनिंघम का 1861 में किया अनुमान भी सही निकला, जिसमें इस मूर्ति का संबंध उन्होंने बौद्ध धर्म से होने की बात कही थी. स्थानीय ग्रामीण सुखी चंद का कहना है कि यहां आसपास के ग्रामीण भगवान बुद्ध की पूजा अर्चना करने आते हैं. इसके अलावा विदेशी पर्यटक भी यहां आकर घंटों पूजा अर्चना करते हैं और लोगों को प्रसाद वितरण करते हैं.
भारतीय पुरातत्व विभाग द्वारा 2016 के दरमियान यहां पर उत्खनन कार्य हुआ था. उस उत्खनन कार्य में यहां पर भारतीय पुरातत्व विभाग को एक स्मारक मिला था. यह स्मारक पहले एक बड़ा टीला हुआ करता था और यहां पर मेला लगा करता था.
नालंदा के जगदीशपुर गांव स्थित रुक्मिणी स्थान या बौद्ध स्थल आज पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग की अनदेखी का शिकार हो गया है. यही कारण है कि यह ऐतिहासिक धरोहर ग्रामीणों के कब्जे में होता जा रहा है. यह ऐतिहासिक धरोहर क्षतिग्रस्त हो रही है. जिसे देखने वाला कोई नहीं है.
बता दें कि यह ऐतिहासिक रुक्मिणी टीला को ग्रामीण अपने कब्जे में लेकर मवेशी बांधने की काम कर रहे हैं. युवा वर्ग इस टीले को सहेजने के बजाय वहां क्रिकेट खेल कर किला को और क्षतिग्रस्त कर रहे हैं.
इस ऐतिहासिक धरोहर को पुरातत्व विभाग सुरक्षित क्यों नहीं रख पा रहे हैं, यह सवाल खड़ा हो रहा है. हालांकि, भारतीय पुरातत्व विभाग के अधिकारी जिले में नहीं बैठते हैं. इस कारण इनकी तरफ से कोई ध्यान नहीं लिया जा सके.