स्कूली पढ़ाई छोड़ने के बाद अक्सर मान लिया जाता है वह बच्चा जीवन में शायद ही कुछ कर पाएगा. लेकिन पुणे के कैलाश केतकर ने भारतीय समाज की इस आम धारणा को अपनी आसमानी सफलता से झकझोर कर रख दिया है. केतकर की सफलता खासकर उन करोड़ों भारतीय बच्चों के लिए उम्मीद की किरण जगाती है, जो आर्थिक-सामाजिक मजबूरी की वजह से या तो बीच में ही स्कूली पढ़ाई छोड़ देते हैं या फिर स्कूल का मुंह भी नहीं देख पाते. उनकी सफलता से यह भी साफ है कि तरक्की किसी डिग्री की मोहताज नहीं होती.
कैलाश देसी साइबर सिक्युरिटी कंपनी क्विक हिल टेक्नोलॉजी के फाउंडर, एमडी और सीईओ हैं. उनकी कंपनी एंटी-वायरस और साइबर सिक्युरिटी सॉल्यूशंस की सबसे विश्वसनीय कंपनियों में से एक मानी जाती है.
कैलाश ने वास्तव में शून्य से शिखर तक का सफर तय किया है. 1966 में महाराष्ट्र के एक छोटे से गांव में पैदा हुए कैलाश का बचपन पुणे में बीता. उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि बेहद सामान्य थी. उनके पिता मशीन सेटर का काम करते थे और मां घरेलू महिला.
कैलाश का पढ़ने में मन लगता था. इसलिए 10वीं के बाद उन्होंने पढ़ाई बंद कर दी. चूंकि परिवार के आर्थिक संसाधन बेहद सीमित थे, ऐसे में कैलाश को एक स्थानीय कैलकुलेटर और रेडियो रीपेयर की दुकान पर नौकरी करनी पड़ी, ताकि उनके माता-पिता को मदद मिल सके.
जल्द कैलाश ने मशीनें चलाने और उनकी मरम्मत करने में महारत हासिल कर ली. लगभग पांच सालों तक उन्होंने इसी दुकान पर मरम्मत करने का काम किया. हालांकि इसी दौरान उन्होंने अकाउंटिंग और ऑपरेशंस जैसे काम भी सीखे.
1991 में पहली दफा उन्होंने कैलकुलेटर रीपेयर करने का बिजनेस शुरू किया. 15 हजार रुपए से शुरू इस बिजनेस के लिए कैलाश ने 100 वर्ग फीट का एक कमरा किराये पर लिया. अपनी मेहनत और लगन से उन्होंने इस बिजनेस को सफल बना लिया.
इसके बाद कैलाश के जेहन में बिजनेस की बड़ी योजनाएं तैरने लगीं. यह वह समय था जब दुनिया में कम्प्यूटर और इंटरनेट की चारों तरफ चर्चा थी. उन्होंने इससे जुड़े शॉर्ट टर्म कोर्स में दाखिला ले लिया. 1993 में उन्होंने कैट कम्प्यूटर सर्विसेज की शुरुआत की. उनकी कंपनी क्लाएंट्स को मेंटनेंस सर्विसेज देने लगी.
शुरुआती दिक्कतों के बाद उन्हें उस समय बड़ी सफलता मिली, जब न्यू इंडिया एश्योरेंस के मेंटनेंस का उन्हें ठेका मिल गया. इसके बाद इस तरह के करार की लाइन लग गई. 1994 में उनकी कंपनी ने पहला एंटी-वायरस डेवलप किया, जिसका नाम रखा गया क्विक हिल.
इसी समय कैलाश के भाई संजय ने पुणे यूनिवर्सिटी से कम्प्यूटर साइंस की पढ़ाई करने के बाद डीओएस के लिए एक एंटी-वायरस प्रोग्राम डेवलप किया. इसकी कीमत उन्होंने बाजार में उपलब्ध अन्य एंटी वायरस की तुलना में काफी कम महज 700 रुपए रखी. इसके साथ ही क्विक हिल जोरदार हिट हो गया.
बिजनेस में उतार-चढ़ाव आते ही रहते हैं. 1999 में एक वक्त ऐसा भी आया जब कैलाश ने बिजनेस बंद करने तक की सोच ली थी. लेकिन 2002 के बाद वे लगातार तरक्की करते चले गए और बिजनेस का विस्तार होता चला गया. आज देशभर में उनके कर्मचारियों की संख्या 600 से अधिक और देश में 23 से अधिक उनके ऑफिस हैं. आज उनकी कंपनी का वैल्यूशन 2000 करोड़ रुपए से भी अधिक है.
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