कैसे होती है टाटा ट्रस्ट की कमाई: आपको बता दें कि साल 1892 में ही टाटा ट्रस्ट का गठन कर दिया था, जिससे कल्याणकारी कार्यों के लिए धन की कमी नहीं हो. यह भी जानना महत्वपूर्ण है कि टाटा समूह की सभी कंपनियों का प्रधान निवेशक टाटा संस है और उसकी 66 फीसदी हिस्सदारी टाटा ट्रस्ट के पास है. इस हिस्सेदारी का डिविडेंड ट्रस्ट के पास आता है, ताकि परोपकार के लिए धन का अभाव नहीं हो.
टाटा ट्रस्ट के बारे में जानिए: सिर्फ टाटा ट्रस्ट ही नहीं, इसके संरक्षण में चलने वाले जेएन टाटा एंडोमेंट, सर दोराबजी टाटा ट्रस्ट, सर रतन टाटा ट्रस्ट, लेडी टाटा मेमोरियल ट्रस्ट, लेडी मेहरबाई डी. टाटा एजूकेशन ट्रस्ट, जेआरडी और थेल्मा जे. टाटा ट्रस्ट आदि कुछ ऐसे नाम शामिल हैं, जो दशकों से स्वास्थ्य, शिक्षा, पर्यावरण रक्षा, सामुदायिक विकास जैसे क्षेत्रों में काम कर रहे हैं. टाटा समूह ने देश की आजादी से बहुत पहले ही राष्ट्र के के बारे में सोचना शुरू कर दिया था. तभी तो जमशेद जी टाटा ने वर्ष 1898 में इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस का खाका खींचा था, जिसका उद्देश्य विज्ञान की अत्याधुनिक शिक्षा की व्यवस्था करना था.
जमशेद जी ने अपनी आधी निजी संपत्ति दान में दी थी: इस ट्रस्ट के लिए उस समय जमशेद जी ने अपनी आधी निजी संपत्ति दान दे थी, जिसमें मुंबई की 14 बिल्डिंग और चार लैंड प्रॉपर्टी थी. बाद में इसमें मैसूर के राजा भी जुड़े और उन्होंने बेंगलुरु में 300 एकड़ जमीन दी. तब जाकर 1911 में तैयार हुआ इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस, जिसमें विश्वेसररैया, सी वी रमन और डॉ. होमी जहांगीर भाभा जैसे दिग्गज जुड़े. ऐसा संस्थान उस समय इंग्लैंड में भी नहीं था. सी वी रमन को इसी संस्थान में काम करते हुए 1930 में भौतिकी में नोबल पुरस्कार मिला था. इसी से पता चलता है कि वहां किस तरह की अनुसंधान की सुविधा होगी.
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