हाल ही में जारी आंकड़ों के अनुसार ऐसा लगता है कि भारत में प्राइवेट ट्यूशन का समय खत्म होता जा रहा है. छात्रों में इसके प्रति रुझान घटता हुआ नजर आ रहा है. नेशनल सैंपल सर्वे, एनएसएस (National Sample Survey, NSS) की शिक्षा पर दी गई एक रिपोर्ट के मुताबिक साल 2017-18 में सिर्फ 21 फीसदी छात्रों ने प्राइवेट ट्यूशन के विकल्प को चुना जो कि साल 2014 की तुलना में 6 प्वाइंट नीचे था
के अनुसार लगभग सभी राज्यों में प्राइवेट ट्यूशन में गिरावट देखी गई है साथ ही शहरी इलाकों में भी ट्यूशन क्लासेज में गिरावट देखने को मिली है. इस गिरावट का एक बड़ा कारण नज़र आता है कि सरकारी स्कूलों की तुलना में प्राइवेट स्कूलों की तरफ लोगों का रुझान बढ़ता जा रहा है , जिसकी वजह से प्राइवेट ट्यूशन में कमी आ रही है.
लाइव मिंट के मुताबिक नॉन प्रॉफिट संस्था एएसईआर सेंटर की डायरेक्टर विलिमा वाधवा ने कहा कि पैरेंट्स का मानना होता है कि प्राइवेट स्कूल ज्यादा अच्छी तरह से परफॉर्म करते हैं, हालांकि, ऐसा नहीं है. इसलिए जब इनकम बढ़ती है तो पैरेंट्स बच्चों को प्राइवेट स्कूलों में पढ़ाना पसंद करते हैं जिससे ट्यूशन पर उनकी निर्भरता कम होती जाती है. हालांकि, ग्रामीण इलाकों में सरकारी स्कूलों से प्राइवेट स्कूलों में शिफ्ट होने से ट्यूशन पर ज्यादा फर्क नहीं पड़ता क्योंकि वहां प्राइवेट स्कूलों की फीस तुलनात्मक रूप से ज्यादा नहीं होती.
पिछले कुछ सालों से प्राइवेट ट्यूशन का खर्च बढ़ता ही जा रहा है. इसलिए ज्यादा महंगे ट्यूटर और ज्यादा महंगे स्कूल में से पैरेंट्स ज्यादा महंगे स्कूल को चुनते हैं. कुछ पैरेंट्स पास के सरकारी स्कूल की परफॉर्मेंस ठीक न होने के कारण प्राइवेट स्कूल को चुनते हैं. बच्चों के लिए मुफ्त शिक्षा का प्रावधान किए जाने के बाद भी सरकारी स्कूलों की खराब हालत की वजह से ज्यादातर पैरेंट्स अभी भी प्राइवेट स्कूलों का रुख कर रहे हैं.
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